नई दिल्ली: केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक की स्थिति का विवरण देने से इनकार कर दिया है, जिसमें जुलाई 2024 में चुनिंदा हितधारकों को भेजे गए विधेयक की प्रति और उन लोगों की सूची भी शामिल है जिनके साथ यह साझा किया गया था. सूचना के अधिकार से प्राप्त प्रतिक्रियाओं से यह पता चला है.
पारदर्शिता कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने एक आरटीआई के माध्यम से उन सभी हितधारकों के नामों की सूची मांगी थी, जिनके साथ जुलाई 2024 में प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक साझा किया गया था. साथ ही, विधेयक की सामग्री की प्रति और विधेयक साझा करने के लिए अधिकृत करने वाले रिकॉर्ड की भी प्रति मांगी थी.
अपने जवाब में मंत्रालय ने कहा है कि प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक का मसौदा ‘10.11.2023 को हितधारकों और आम जनता की टिप्पणियों के लिए व्याख्यात्मक नोटों के साथ सार्वजनिक डोमेन में रखा गया था, जो इस मंत्रालय की वेबसाइट www.mib.gov.in पर उपलब्ध है. जवाब में, विभिन्न संघों सहित कई सिफारिशें/टिप्पणियां/सुझाव प्राप्त हुए थे.’
विधेयक की वर्तमान स्थिति पर मंत्रालय की चुप्पी
मंत्रालय के जवाब में कहा गया है कि मसौदा विधेयक के कुछ हिस्सों को बाद में अपडेट किया गया था और विस्तृत परामर्श के बाद ही नया मसौदा प्रकाशित किया जाएगा.
जवाब में कहा गया है, ‘बाद में मसौदा विधेयक पर हितधारकों के साथ कई परामर्श किए गए और उनमें हुई चर्चा के आधार पर विधेयक के कुछ हिस्सों को अपडेट किया गया और कुछ प्रतिभागियों के साथ टिप्पणियों के लिए साझा किया गया. हालांकि, 10.11.2023 को सार्वजनिक डोमेन में रखे गए मसौदा विधेयक पर टिप्पणियां/सुझाव मांगने के लिए 15.10.2024 तक अतिरिक्त समय देने का निर्णय लिया गया है और विस्तृत परामर्श के बाद एक नया मसौदा प्रकाशित किया जाएगा.’
जवाब में कहा गया है कि विधेयक अभी मसौदा तैयार करने की अवस्था में है और और मंत्रालय द्वारा अगस्त में एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर दिए गए एक बयान का हवाला दिया गया.
मंत्रालय ने जिस पुराने मसौदा संस्करण का उल्लेख किया है, उसमें पूरी तरह से नियंत्रित मीडिया वातावरण और डिजिटल मीडिया को सरकार और कार्यकारी नियंत्रण में धकेलने की सभी कठोर विशेषताएं थीं. सूचना के अधिकार या आरटीआई आवेदनों से कम से कम आंशिक रूप से इतना तो पता चला है कि पहले मसौदे के प्रसारित होने के बाद मंत्रालय को नकारात्मक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई थीं.
विधेयक की प्रति तथा इसे वितरित किए जाने वाले हितधारकों के नाम मांगने वाले आरटीआई अनुरोध के जवाब में मंत्रालय ने सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 8 (1)(डी) का हवाला देते हुए जानकारी उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया है.
मंत्रालय ने जवाब में कहा है, ‘यह सूचित किया जाता है कि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 8(l)(d) में प्रावधान है कि इस अधिनियम में निहित किसी भी बात के बावजूद वाणिज्यिक विश्वास, व्यापार रहस्य या बौद्धिक संपदा सहित कोई भी नागरिक जानकारी देने की कोई बाध्यता नहीं होगी, जिसके प्रकटीकरण से किसी तीसरे पक्ष की प्रतिस्पर्धी स्थिति को नुकसान पहुंचेगा, जब तक कि सक्षम प्राधिकारी इस बात से संतुष्ट न हो कि व्यापक सार्वजनिक हित ऐसी जानकारी के प्रकटीकरण को उचित ठहराता है.’
जवाब आगे कहता है, ‘अधिनियम की धारा 8(एल)(ई) में प्रावधान है कि किसी व्यक्ति को उसके प्रत्ययी संबंध में उपलब्ध कोई भी नागरिक जानकारी देने की बाध्यता नहीं होगी, जब तक कि सक्षम प्राधिकारी इस बात से संतुष्ट न हो कि व्यापक जनहित में ऐसी जानकारी का खुलासा करना उचित है. उपरोक्त स्थिति को देखते हुए, आरटीआई आवेदन में मांगी गई जानकारी देने से इनकार किया जाता है.’
भारद्वाज ने एक बयान में कहा कि मंत्रालय ने छूट का लाभ उठाते हुए ‘यह प्रदर्शित नहीं किया कि प्रकटीकरण से ‘तीसरे पक्ष की प्रतिस्पर्धी स्थिति को किस प्रकार नुकसान पहुंचेगा’ और वह तीसरा पक्ष कौन है जिसके हितों को नुकसान पहुंचेगा.’
‘विधेयक का एक संस्करण चुनिंदा तरीके से साझा करना गंभीर सवाल खड़े करता है’
भारद्वाज के बयान में कहा गया है, ‘इस विधेयक के दूरगामी परिणामों को देखते हुए विचार-विमर्श और परामर्श प्रक्रिया में गोपनीयता चिंताजनक है. विधेयक के एक संस्करण को चुनिंदा रूप से साझा करना परामर्श प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाता है.’
बयान में आगे कहा गया है, ‘मंत्रालय ने इस बारे में पूछे गए सवालों का कोई निश्चित जवाब नहीं दिया है कि प्रसारण विधेयक के 2023 या 2024 संस्करण को वापस लिया गया है या नहीं. मांगी गई जानकारी को अस्वीकार करने के लिए कोई विशेष छूट खंड का हवाला नहीं दिया गया है. नतीजतन, प्रसारण विधेयक की स्थिति पर कोई स्पष्टता नहीं है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘यह लोगों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करता है और कानून बनाने की प्रक्रिया में जनता के विश्वास को खत्म करता है. अपेक्षित जानकारी प्रदान करने में विफलता को आरटीआई अधिनियम के तहत अपील प्रक्रिया में चुनौती दी जाएगी.’
बता दें कि मसौदा विधेयक की आलोचना इस बात के लिए की गई थी कि इसमें सभी समाचार और समाचार-संबंधी ऑनलाइन सामग्री – टेक्स्ट, पॉडकास्ट, ऑडियो, वीडियो – को इसके नियंत्र में लाने की बात कही गई थी. इसे ऑनलाइन सूचना, समाचार और मनोरंजन माध्यमों पर सरकारी नियंत्रण के रूप में देखा गया था.