मणिपुर: भाजपा की सहयोगी एनपीएफ नगा बहुल क्षेत्रों में म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने के विरोध में

सुरक्षा मामलों की केंद्रीय मंत्रिमंडलीय समिति ने भारत और म्यांमार के बीच 1,643 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर 31,000 करोड़ रुपये की लागत से बाड़ लगाने और सड़कों के निर्माण को मंजूरी दी है. नगा पीपुल्स फ्रंट ‘पारंपरिक सीमाओं को सही किए बिना’ बाड़ लगाने के विरोध में है.

भारत-म्यांमार सीमा की एक तस्वीर. (फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

नई दिल्ली: मणिपुर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सहयोगी नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) ने बुधवार (23 अक्टूबर) को कहा कि वह राज्य के नगा बहुल इलाकों में भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने के प्रस्ताव के खिलाफ है.

समाचार एजेंसी पीटीआई की खबर के मुताबिक, एनपीएफ के महासचिव होनरेइखुई काशुंग ने एक बयान में कहा कि पार्टी नगा बहुल इलाकों में ‘पारंपरिक सीमाओं को सही किए बिना’ सीमा पर बाड़ लगाने का विरोध करती है.

मालूम हो कि सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने भारत और म्यांमार के बीच 1,643 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर 31,000 करोड़ रुपये की लागत से बाड़ लगाने और सड़कों के निर्माण को मंजूरी दी है.

इसके तहत मोरेह के पास लगभग 10 किलोमीटर की बाड़ लगाने का काम पहले ही पूरा हो चुका है और मणिपुर के अन्य इलाकों में सीमा के 21 किलोमीटर हिस्से पर बाड़ लगाने का काम फिलहाल जारी है.

गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने पहले ही भारत-म्यांमार मुक्त आवागमन व्यवस्था (एफएमआर) को खत्म कर दिया है. इस व्यवस्था के तहत सीमा के करीब रहने वाले लोगों को बिना किसी दस्तावेज के एक-दूसरे के इलाके में 16 किलोमीटर तक जाने की अनुमति थी.

इसे भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के तहत 2018 में लागू किया गया था. भारत-म्यांमार सीमा मणिपुर, मिजोरम, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है.

भारत-म्यांमार सीमा मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है.

ज्ञात हो कि नगा पीपुल्स फ्रंट प्रदेश में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार का हिस्सा है और एनपीएफ ने हिल एरिया कमेटी के प्रस्ताव की सराहना की है, जिसने सरकार से लंबे समय से लंबित स्वायत्त जिला परिषद (ए़डीसी) चुनाव कराने का आग्रह किया है.

हालांकि, एनपीएफ का ये भी कहना है कि वो किसी भी असंवैधानिक प्रस्ताव का विरोध करता है ,जो प्रशासन के सुचारू कामकाज में बाधा डालता है.

ध्यान रहे कि 14 अक्टूबर को हिल एरिया कमेटी ने अपने के प्रस्ताव में यह भी कहा था कि चुनाव होने तक एडीसी का प्रशासन चलाने के लिए 20 सदस्यों वाली समितियां गठित की जानी चाहिए. इनमें पूर्व एडीसी सदस्य, स्थानीय स्वशासन के विशेषज्ञ, प्रतिष्ठित व्यक्ति, बुद्धिजीवी और दो सरकारी नामांकित व्यक्ति होंगे.

इस प्रस्ताव की कांग्रेस ने भी निंदा की थी और इसे असंवैधानिक, अवैध और संविधान के खिलाफ बताया था.

गौरतलब है कि बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग के विरोध में राज्य के पहाड़ी जिलों में आदिवासी एकजुटता मार्च के बाद पिछले साल 3 मई को मणिपुर में जातीय हिंसा भड़क गई थी. तब से अब तक कुकी और मेईतेई दोनों समुदायों के 220 से अधिक लोग और सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं.