अशोक परहैया झारखंड के लातेहार जिले के एक छोटे से गांव, उचवाबल, में कठिनाई से अपनी आजीविका चलाते हैं. उनके तीन बच्चों को छात्रवृत्ति मिलती है, लेकिन वे पैसे निकालने में असमर्थ हैं क्योंकि उनके बैंक खाते फ्रीज कर दिए गए हैं. ‘उनके खाते में क्वाइसी लगा हुआ है’, अशोक बताते हैं. ‘क्वाइसी’ इस क्षेत्र में ‘नो योर कस्टमर’ (केवाईसी) समस्याओं को बताने के लिए उपयोग किया जाता है.
अशोक के कहने का अर्थ है कि जब तक ग्राहक अपने केवाईसी औपचारिकताएं पूरी नहीं कर लेता, तब तक खाते से लेन-देन नहीं कर सकते.
इन औपचारिकताओं के लिए अशोक के प्रत्येक बच्चे को स्थानीय ग्राहक सेवा केंद्र (सीएससी) में अपना आधार नंबर प्रमाणित कराना होगा, फिर बैंक में जाकर एक फॉर्म भरना होगा साथ में आवश्यक दस्तावेजों के साथ जमा करना होगा. अशोक को इस प्रक्रिया की जानकारी नहीं है. सीएससी संचालक उससे मदद के बदले में रिश्वत मांग रहे हैं लेकिन वह उन्हें रिश्वत देने में असमर्थ है. इसलिए, अशोक ने फिलहाल हार मान ली है.
अशोक के गांव में कई अन्य लोगों की भी ऐसी ही समस्याएं हैं. कुछ लोग सीएससी संचालकों को रिश्वत देने का क्षमता रखते हैं, लेकिन इसके बाद अन्य बाधाएं भी हैं. सबसे पहले, बैंक परिसर में हताश कर देने वाला भीड़ है.
दूसरा, केवाईसी के लिए आधार जनसांख्यिकीय विवरण और संबंधित बैंक खाता विवरण में पूर्ण रूप से मिलान की आवश्यकता होती है. तीसरा, सत्यापित केवाईसी दस्तावेज़ जमा करने की कठिन प्रक्रिया के बाद, ग्राहक खाते को समय पर पुनः सक्रिय करने के लिए बैंक की दया पर निर्भर होता है. खाता पुनः सक्रिय होने में अक्सर लंबा समय लगता है, क्योंकि स्थानीय बैंकों में कर्मचारियों की कमी है.
आगे की पूछताछ से पता चला कि झारखंड में बड़े पैमाने पर बैंक खाते फ्रीज कर दिए गए हैं. लातेहार जिले के तीन गांवों के 72 घरों (उत्तरदाता वे थे, जो भी घर पर थे) के सर्वेक्षण में हमने पाया कि इनमें से लगभग 40% घर थे जिनमें किसी न किसी का बैंक खाता बंद था. ज्यादातर मामलों में, यह केवाईसी समस्याओं के कारण था.
पीड़ितों में बुजुर्ग पेंशन-लाभार्थी भी शामिल हैं, जिनके पास अपनी अल्प पेंशन के अलावा जीवनयापन के लिए कुछ और नहीं है. खाते में केवाईसी समस्या के चलते वे अपनी पेंशन का पैसा नहीं निकाल पा रहे हैं. ऐसे कई बच्चे जिन्हें छात्रवृत्ति मिलती है, और झारखंड की हाल ही में शुरू की गई ‘मैया सम्मान योजना’ के तहत प्रति माह 1,000 रुपये की हकदार महिलाएं भी अपना पैसा निकालने में असमर्थ हैं.
संयोग से, हमें इन गांवों में किसी विशेष केवाईसी समस्या का पहले से कोई अंदाज़ा नहीं था.
स्थानीय भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) प्रबंधक के अनुसार, बैंक खातों के फ्रीज होने की यह लहर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के हालिया निर्देशों के कारण है, जिसके तहत सभी आधार-लिंक्ड खातों को फिर से पंजीकृत करने की आवश्यकता है. उन्होंने स्वीकार किया कि बैंक के ऑनलाइन सिस्टम से बिना किसी पूर्व सूचना के खाते फ्रीज किए जा रहे हैं. पूरे प्रक्रिया को समय के साथ क्रमबद्ध किया जाएगा, और अधिक खातों को केवाईसी औपचारिकताएं पूरी होने तक फ्रीज कर दिया जाएगा.
हालांकि, राज्य की राजधानी रांची में एसबीआई के उच्च अधिकारियों ने इस बात से इनकार किया कि आरबीआई ने ऐसे निर्देश जारी किए हैं. उन्होंने दावा किया कि एसबीआई सिर्फ आरबीआई के सामान्य केवाईसी दिशानिर्देशों को लागू करने के अलावा और कुछ नहीं कर रहा है.
हमें बताया गया कि बैंकिंग प्रणाली में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी को देखते हुए समय-समय पर केवाईसी अपडेट करना आवश्यक है. यहां आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली (एईपीएस) में धोखाधड़ी विशेष रूप से उल्लेखनीय गया. इसमें कोई संदेह नहीं है, एईपीएस में धोखाधड़ी की संभावना है, जैसा कि झारखंड में ‘छात्रवृत्ति घोटाला’ की घटना दिखाती है. हालांकि, इस छात्रवृत्ति घोटाले और दोषपूर्ण केवाईसी समस्या का परस्पर कोई लेना-देना नहीं है.
आधार की गड़बड़ी है दोषपूर्ण केवाईसी की वजह?
इसे इनकार नहीं किया जा सकता कि आधार से जुड़े कुछ खातों में दोषपूर्ण केवाईसी एक समस्या हो सकती है. इसका मुख्य कारण जनधन योजना द्वारा पैदा की गई गड़बड़ी है. जब योजना शुरू की गई थी, तब केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने के लिए जल्दबाजी में करोड़ों खाते खोले गए थे. बायोमीट्रिक सत्यापन के बिना उन खातों को आधार से जोड़ दिया गया, और आधार कार्ड से जनसांख्यिकीय विवरण भी बेतरकीब ढंग से दर्ज किए गए. यह तो सभी जानते हैं कि आधार जनसांख्यिकीय विवरण विश्वसनीय नहीं हैं. शायद आधार से जुड़े खातों का दोबारा पंजीकरण इसी गड़बड़ी को दूर करने की कोशिश है.
कई लोगों के लिए, केवाईसी में एक बड़ी समस्या आधार कार्ड और बैंक खाते के बीच जनसांख्यिकीय विवरण का पूर्ण मिलान पर जोर दिया जाना है. ऐसे मामलों में जहां आधार खाता खोलने के लिए शुरू में उपयोग किया जाने वाला पहचान दस्तावेज है, वहां लगता है कि जानकारियों में कोई विसंगति नहीं होगी. पर अफ़सोस, असल में ऐसा नहीं होता.
लोग अक्सर अपने आधार विवरण को विभिन्न कारणों से अपडेट करते हैं, जैसे गलत डेटा पड़ जाना, पता बदलना इत्यादि. जब वे केवाईसी के लिए जाते हैं, तो बैंक खाते और आधार कार्ड के बीच विसंगति सामने आती है. इस स्थिति में, स्थानीय एसबीआई प्रबंधक के अनुसार, विसंगति को हल करने के लिए लोगों को आधार कार्ड को सुधारने के लिए कहा जाता है. हालांकि, इस ‘सुधार’ की वजह से आधार डेटाबेस और जॉब कार्ड या राशन कार्ड जैसे अन्य डेटाबेस के बीच नई विसंगतियां पैदा होने का जोखिम होता है.
जब हमने रांची में एक वरिष्ठ एसबीआई प्रबंधक को बताया कि आधार को कई डेटाबेस के साथ ‘मिलान’ कराना कई लोगों के लिए एक कठिन काम है, तो उन्होंने टालते हुए कहा, ‘यह एक ही बार का काम है’.
यह प्रतिक्रिया वरिष्ठ अधिकारियों की अनभिज्ञता का परिचायक है. डिजिटलीकरण के नशे में वे लोगों को सिस्टम से जूझने में आने वाली समस्याओं को देखने में असमर्थ और अनिच्छुक हैं.
बदहाल बैंकिंग व्यवस्था
हमें लगा, शायद लातेहार जिले में या एसबीआई में कोई विशेष समस्या है. इसलिए हमने लातेहार के पड़ोसी जिले लोहरदगा के चार गांवों में एक सर्वेक्षण किया, जहां अधिकांश लोगों के खाते बैंक ऑफ इंडिया में हैं. वहां की स्थिति लातेहार जितनी ही ख़राब थी, सिवाय एक गांव के जहां बैंक की शाखा थी. उस गांव में अधिकांश लोगों के खाते चालू स्थिति में थे, शायद इसलिए क्योंकि उनके पास बैंक तक आसान पहुंच थी. अन्य गांवों में, जिन 147 घरों का सर्वेक्षण किया, उनमें से 76% के पास कम से कम एक बंद खाता था.
इसी बीच हमें छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में भी ऐसी ही समस्याओं के बारे में सुनने को मिला. वहां इसी तरह के सर्वेक्षण की योजना है, हमने सरगुजा के लुंड्रा ब्लॉक के एक छोटे से गांव, गोटीडुमर, में एक पायलट सर्वेक्षण किया. गोटीडुमर में पहाड़ी कोरवाओं का निवास है, जो आदिम जनजाति हैं. निकटतम बैंक शाखा 8 किलोमीटर दूर धौरपुर में स्थित है, और अंबिकापुर, जिला मुख्यालय करीब 50 किलोमीटर दूर है.
कुछ साल पहले 35 किलोमीटर दूर बघिमा गांव के एसबीआई शाखा से एक बैंक मित्र गोटीडुमर आया और अधिकांश निवासियों के लिए बैंक खाते खोले. हाल ही में, जब उनमें से कुछ ने सीएससी से पैसे निकालने की कोशिश की, तो उन्हें कहा गया कि उन्हें केवाईसी के लिए बघिमा में होम ब्रांच में जाना चाहिए. जब वे बघिमा गए तो उन्हें बताया गया कि उनका खाता अंबिकापुर में ट्रांसफर कर दिया गया है. तब से, उनमें से कई को अंबिकापुर में एक काउंटर से दूसरे काउंटर तक दौड़ाया गया, लेकिन सब व्यर्थ.
इस बीच, वे नरेगा कार्य, पेंशन, पीएम-किसान योजना या तेंदू पत्तों के संग्रह से अर्जित पैसों को निकालने में असमर्थ हैं. एक स्थानीय सामाजिक सेवा संस्थान के हस्तक्षेप के बाद ही इनमें से कुछ केवाईसी समस्याओं का समाधान हुआ.
अक्टूबर की शुरुआत में हुए पायलट सर्वेक्षण में गोटीडुमर में स्थिति तब भी खराब मिली थी. तक़रीबन 50 घरों वाले एक छोटे से गांव में कम से कम 40 व्यक्तियों को केवाईसी समस्या थीं.
बहुत संभव है कि लातेहार, लोहरदगा और सरगुजा में हमें जो स्थिति मिली, वह व्यापक समस्या की एक छोटी झलक है. अभी भी पूछताछ जारी है.
लेकिन इन जांचों के मूल संदेश को बदलने की संभावना मुश्किल ही है: बैंकों और – अधिक महत्वपूर्ण रूप से – जनता पर पड़ने वाले बोझ के मद्देनजर पूरी केवाईसी प्रक्रिया की तत्काल समीक्षा की आवश्यकता है. केवल चरम परिस्थितियां ही लोगों को उनके अपने पैसे तक पहुंच से वंचित करने को उचित ठहरा सकती हैं.
(लेखक स्वतंत्र शोधकर्ता हैं. मनिका सहायता केंद्र और आरती सिंह के सहयोग के साथ.)
(मूल रूप से अंग्रेज़ी में ‘फ्रंटलाइन‘ में प्रकाशित इस लेख को लेखकों की अनुमति से पुनर्प्रकाशित किया गया है.)