नई दिल्ली: उत्तराखंड में जंगलों की आग मामले में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) गौरव बंसल द्वारा दायर एक रिपोर्ट के जवाब में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को पक्षकार बनाने का निर्देश दिया है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने मंत्रालय को पर्यावरण के प्रमुख सचिव,वन विभाग के प्रमुख मुख्य संरक्षक, मुख्य वन्यजीव वार्डन, देहरादून के प्रभागीय वन अधिकारी और भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) देहरादून के माध्यम से पक्षकार बनाने का आदेश दिया है. साथ ही तीन सप्ताह के भीतर इस मामले में व्यापक जवाब प्रस्तुत करने को भी कहा है.
मालूम हो कि एनजीटी ने अप्रैल में ऋषिकेश-देहरादून रोड के पास बड़कोट वन रेंज में पत्ती जलाने के संबंध में कार्यवाही में सहायता के लिए वकील गौरव बंसल को न्याय मित्र नियुक्त किया था. इस संबंध में अपनी रिपोर्ट में बंसल ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जंगलों में लगी पर काबू पाने के लिए उत्तराखंड के पास बुनियादी ढांचे की कमी है.
पिछले सप्ताह पेश रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदेश में वनाग्नि प्रबंधन के लिए जरूरी बुनियादी ढांचे की कमी है. इसमें अग्निशमन उपकरण (जैसे- प्रोटेक्टिव चश्मे, प्रोटेक्टिव गियर, हथियार आदि) के अलावा दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुंचने के लिए वाहनों तक का कमी है. इतना ही नहीं, वनकर्मियों के पास आपात परिस्थितियों में काम आने वाला वायरलेस सेट और सैटेलाइट फोन तक नहीं है.
रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि वन विभाग कई चुनौतियों का सामना कर रहा है. विभाग के पास पर्याप्त स्टाफ भी नहीं है. ऐसे में जंगल की आग जैसी घटनाओं को रोकने के लिए अग्नि प्रबंधन को मजबूत करना होगा. साथ ही, फायर लाइन और उनका रखरखाव भी जरूरी है.
बंसल ने अपनी रिपोर्ट में ये भी कहा है कि उत्तराखंड सरकार ने काफी समय से अपनी फायर लाइनों की समीक्षा नहीं की है, जिससे राज्य के अग्नि प्रबंधन प्रयासों से समझौता हुआ है.
एमिकस क्यूरी रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड में 2,448 हेक्टेयर वन क्षेत्र के लिए केवल एक वन रक्षक है, जिस पर अवैध कटाई, खनन, वन्यजीव शिकार और वन्यजीव संबंधी अन्य अपराधों पर नियंत्रण करने का जिम्मा है, जो असंभव है. इससे ज्यादा परेशानी की बात ये है कि उत्तराखंड में अवैध कटाई के कारण राजस्व के नुकसान की भरपाई वन रक्षकों या वनपालों के वेतन से करने की व्यवस्था है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस साल उत्तराखंड में जंगल की आग की बड़ी संख्या में घटनाएं दर्ज की गई हैं, जिसमें 1,276 मामले रिपोर्ट किए गए और इससे 1,771.6 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित हुआ है.