फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों से वन मंज़ूरी लेकर परसा कोयला ब्लॉक को हरी झंडी दी गई: एसटी आयोग

छत्तीसगढ़ अनुसूचित जनजाति आयोग ने पाया कि सरगुजा ज़िले में परसा कोयला ब्लॉक के लिए वन मंज़ूरी की प्रक्रिया में कई अनियमितताएं थीं और फ़र्ज़ी प्रविष्टियां हुईं. 2015 में राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लि. को परसा ब्लॉक आवंटित हुआ था, जिसके संचालन का ठेका अडानी समूह को मिला था.

(फोटो साभार: फेसबुक/@Savehasdeoaranya)

नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ अनुसूचित जनजाति आयोग ने पाया है कि सरगुजा जिले में परसा कोयला ब्लॉक के लिए वन मंजूरी (एफसी) प्राप्त करने की प्रक्रिया में कई अनियमितताएं थीं और तीन गांवों के मामले में फर्जी प्रविष्टियां की गई थीं.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, परसा कोल ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले तीन गांवों – साल्ही, हरिहरपुर और फतेहपुर – के 41 निवासियों ने 8 अगस्त, 2021 को एसटी आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि खनन के लिए उनकी सहमति फर्जी थी. उन्होंने आरोप लगाया कि ग्राम सभाओं ने खनन से संबंधित खंड पर कभी चर्चा नहीं की.

आयोग ने तीन वर्षों तक दावे की जांच की और मंगलवार को सरगुजा के जिला कलेक्टर विलास भोस्कर को 18 अक्टूबर से शुरू हुई वनों की कटाई की प्रक्रिया को रोकने की सिफारिश की. सिफारिश पत्र में यह भी सुझाव दिया कि परियोजना के तहत आने वाले चार गांवों में से तीन के लिए परसा कोयला खदान को दी गई वन मंजूरी रद्द कर दी जाए, तीनों गांवों में नई ग्राम सभाएं बुलाई जाएं और आयोग को निर्णय के बारे में सूचित किया जाए.

आयोग के प्रमुख भानु प्रताप सिंह ने कहा, ‘हमने विस्तृत जांच की और पाया कि परसा कोयला ब्लॉक के लिए तीन ग्राम सभाओं की सहमति नहीं ली गई थी.’

सिफारिश पत्र में कहा गया है, ‘आयोग छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति रायपुर के माध्यम से सिफारिश करता है कि वन विभाग द्वारा परसा कोल ब्लॉक को जारी अंतिम अनुमोदन आदेश रद्द किया जाना चाहिए और साल्ही, हरिहरपुर और फतेहपुर में फिर से ग्राम सभा बुलाई जानी चाहिए और आयोग को 15 दिनों के भीतर सूचित किया जाना चाहिए.’

केंद्र सरकार की कोयला खदान विकासकर्ता-सह-संचालक योजना के तहत 2015 में राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को परसा ब्लॉक आवंटित किया गया था. अडानी एंटरप्राइजेज ने प्रतिस्पर्धी बोली के माध्यम से खदान के संचालन का ठेका जीता.

अपने सिफारिश पत्र में आयोग ने कहा कि जांच से पता चला है कि 1 जनवरी 2018 को साल्ही और 21 जनवरी 2018 को हरिहरपुर में आयोजित ग्राम सभा में ग्रामीणों ने केवल जिला पंचायत द्वारा भेजे गए एजेंडा क्रमांक 1 से 21 तक के मुद्दों पर चर्चा की और प्रस्ताव पारित किया – जो सभी विकास कार्यों से संबंधित थे.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘तत्कालीन सरपंच, वर्तमान सरपंच और पंचायत सचिव ने पुष्टि की कि प्रस्ताव संख्या 21 तक के लिए चर्चा हुई थी. एजेंडा आइटम 22, जो कोयला खदान शुरू करने के लिए अनापत्ति के बारे में था, पर चर्चा नहीं हुई.’

आयोग ने कहा कि बैठक के समापन के बाद आइटम संख्या 22 की प्रविष्टियां रिकार्ड में दर्ज कर ली गईं.

आयोग ने सरगुजा जिला कलेक्टर विलास भोस्कर को लिखे अपने पत्र में कहा, ‘सचिव ने इस प्रविष्टि को स्वीकार किया, जब उससे पूछताछ की गई तो उसने ग्रामीणों और जिला प्रशासन के अधिकारियों की मौजूदगी में स्वीकार किया कि 22 नंबर की प्रविष्टि उदयपुर रेस्ट हाउस में की गई थी. कथित तौर पर प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा सरपंच और सचिव को इस अतिरिक्त प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने के लिए सरपंच के घर ले जाया गया था. हालांकि, तत्कालीन सरपंच ने अतिरिक्त प्रस्ताव संख्या 22 पर हस्ताक्षर करने से साफ इनकार कर दिया. अगले दिन उन्हें फिर से उदयपुर रेस्ट हाउस बुलाया गया, जहां उन पर हस्ताक्षर करने के लिए अनुचित दबाव डाला गया, लेकिन दोनों ने इनकार कर दिया.’

आयोग ने इस मामले पर 10 सितंबर 2024 को सरगुजा जिले के अंबिकापुर स्थित जिला पंचायत के सभागार में सुनवाई की.

सुनवाई उप-विभागीय अधिकारी (राजस्व), जिला वन प्रभाग अधिकारी के प्रतिनिधियों, दोनों पक्षों के वकीलों और ग्रामीणों की उपस्थिति में आयोजित की गई. आयोग ने निष्कर्ष निकाला कि वन विभाग द्वारा भूमि हस्तांतरण के लिए प्रस्तुत ग्राम सभा के प्रस्तावों में ‘कई अनियमितताएं और मनगढ़ंत प्रविष्टियां’ की गई थीं.

सिफारिश पत्र में कहा गया है, ‘दोनों पक्षों द्वारा आयोग के समक्ष प्रस्तुत किए गए बयानों, साक्ष्यों और दस्तावेजों से यह स्पष्ट है कि वन विभाग द्वारा भूमि परिवर्तन के लिए प्रस्तुत ग्राम सभा के प्रस्ताव दस्तावेज में कई अनियमितताएं हैं और यह अवैध है तथा इसे जाली तरीके से लिखा गया है.’

आयोग ने सिफारिश की कि परसा कोयला खदान को दी गई वन मंजूरी रद्द कर दी जानी चाहिए और तीनों गांवों में नए सिरे से ग्राम सभा बुलाई जानी चाहिए. चार पृष्ठों के सिफारिश पत्र पर अनुसूचित जनजाति आयोग के सदस्य अमृत टोप्पो, गणेश सिंह ध्रुव और अध्यक्ष भानुप्रताप सिंह के हस्ताक्षर हैं.

भानु प्रताप सिंह ने कहा कि आयोग के एक सचिव ने रिपोर्ट पर हस्ताक्षर नहीं किए और उन्होंने इस मुद्दे के बारे में राज्यपाल रमेन डेका को पत्र लिखा.

परसा कोल ब्लॉक हसदेव क्षेत्र में है, जो संविधान की पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत आता है. यहां किसी भी वन भूमि के हस्तांतरण से पहले प्रभावित ग्राम पंचायतों की सहमति लेना और वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत सभी वन अधिकारों की मान्यता प्रक्रिया को पूरा करना अनिवार्य है.

मालूम हो कि पिछले महीने इस इलाके में पेड़ों की कटाई को लेकर ग्रामीणों और वन अधिकारियों के बीच झड़पें हुईं थीं. कार्यकर्ताओं का कहना है कि परियोजना के कारण लगभग 700 लोग विस्थापित होंगे और लगभग 840 हेक्टेयर घना जंगल नष्ट हो जाएगा. वन विभाग की 2009 की जनगणना के अनुसार, लगभग 95,000 पेड़ों के कटने की आशंका है.

बता दें कि हसदेव अरण्य एक घना जंगल है, जो 1,500 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों का निवास स्थान है. इस घने जंगल के नीचे अनुमानित रूप से पांच अरब टन कोयला दबा है. इलाके में खनन बहुत बड़ा व्यवसाय बन गया है, जिसका स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं.