नगा शांति पर 2015 के समझौते को नहीं माना गया तो फिर सशस्त्र प्रतिरोध करेंगे: एनएससीएन-आईएम

एनएससीएन-आईएम के इसाक-मुइवा गुट ने संघर्ष विराम पर सहमति के 27 साल बाद केंद्र सरकार को अल्टीमेटम दिया है कि अगर केंद्र ने 2015 के नगा शांति को लेकर हुए फ्रेमवर्क समझौते का सम्मान नहीं किया तो वे फिर से भारत के ख़िलाफ़ हिंसक सशस्त्र प्रतिरोध शुरू करेंगे.

14 अगस्त को एनएससीएन-आईएम का स्वतंत्रता दिवस समारोह. (प्रतीकात्मक फोटो साभार: X/@MIP_GPRN)

नई दिल्ली: नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (एनएससीएन-आईएम) के इसाक-मुइवा गुट ने संघर्ष विराम पर सहमति के 27 साल बाद केंद्र सरकार को एक अल्टीमेटम जारी किया है कि अगर केंद्र ने नगा राजनीतिक समस्या को हल करने के लिए दोनों दलों द्वारा हस्ताक्षरित 2015 के फ्रेमवर्क समझौते का सम्मान नहीं किया तो वे भारत के खिलाफ हिंसक सशस्त्र प्रतिरोध फिर से शुरू करेंगे.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र पर 2015 में हस्ताक्षरित फ्रेमवर्क समझौते से विश्वासघात करने का आरोप लगाया.

यह ‘विश्वासघात’ केंद्र द्वारा कथित तौर पर अलग नगा ध्वज और नगा संविधान को मान्यता देने से इनकार की ओर इशारा करता है, जिसकी मांग एनएससीएन (आई-एम) ने 1940 के दशक में शुरू हुए संघर्ष को समाप्त करने के लिए की थी.

संगठन ने दावा किया कि भारत सरकार नगाओं के ‘अद्वितीय इतिहास’ और ‘साझा संप्रभुता’ के विचार को मान्यता देने के लिए सहमत हुई थी. उधर केंद्र का कहना है कि उसने ऐसी कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई है.

एनएससीएन (आई-एम) के महासचिव थुइंगलेंग मुइवा, जो मुख्य राजनीतिक वार्ताकार भी हैं, ने शुक्रवार को एक बयान में कहा, ‘एक सम्मानजनक राजनीतिक समझौते को पूरा करने और उसे साकार करने के लिए हम भारत सरकार द्वारा 3 अगस्त, 2015 के फ्रेमवर्क समझौते के साथ अपमानजनक विश्वासघात के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीकों की संभावना को खारिज करते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘हालांकि, सबसे पहले हम फ्रेमवर्क समझौते के उल्लंघन को हल करने के लिए तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप का प्रस्ताव करते हैं, लेकिन यदि भारत सरकार द्वारा इस तरह की राजनीतिक पहल को अस्वीकार कर दिया जाता है, तो एनएससीएन नगालिम के अद्वितीय इतिहास और उसके संप्रभु अस्तित्व की रक्षा के लिए भारत के खिलाफ हिंसक सशस्त्र प्रतिरोध फिर से शुरू कर देगा.’

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सूत्रों के कहा कि बयान में जिस तीसरे पक्ष का उल्लेख किया गया है, वह विदेशी मध्यस्थ है.

एनएससीएन (आई-एम) का दावा है कि पूर्वोत्तर के नगा-बसावट के इलाकों को लोगों की सहमति के बिना भारत का हिस्सा बनाया गया था. नगा समूहों ने 14 अगस्त, 1947 को ‘स्वतंत्रता’ की घोषणा की, जिसके कारण भारतीय सुरक्षा बलों के साथ दशकों तक सशस्त्र संघर्ष चला.

जनवरी 1980 में गठित एनएससीएन ने संघर्ष जारी रखा लेकिन 1988 में दो समूहों में विभाजित हो गया- एक का नेतृत्व इसाक-मुइवा ने किया और दूसरे का नेतृत्व एसएस खापलांग ने. एनएससीएन (आई-एम) ने जुलाई 1997 में केंद्र के साथ युद्ध विराम की घोषणा की और उसके सदस्य तब से अपने निर्धारित शिविरों में रह रहे हैं.

मुइवा ने कहा, ‘भारत और नगालिम के बीच हिंसक टकराव पूरी तरह से भारत और उसके नेतृत्व द्वारा फ्रेमवर्क समझौते का सम्मान करने की प्रतिबद्धता के प्रति जानबूझकर विश्वासघात और उल्लंघन के कारण होगा. इसलिए, भारत और उसके नेतृत्व को भारत और नगालिम के बीच हिंसक सशस्त्र संघर्ष से उत्पन्न होने वाली प्रतिकूल स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा.’

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, यह पिछले महीने दिल्ली में एनएससीएन (आईएम) नेताओं (90 वर्षीय मुइवा के बिना) और केंद्र के वार्ताकार एके मिश्रा के बीच हुई कुछ दौर की बातचीत के बाद हुआ है. यह ऐसे समय में हुआ है जब केंद्र सरकार एनएससीएन (आईएम) को छोड़कर सात नगा संगठनों के एक निकाय नगा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुप्स (एनएनपीजी) के साथ समानांतर बातचीत कर रही है.

पिछले सप्ताह एनएनपीजी ने केंद्र से आग्रह किया था कि वह 2017 में उनके साथ हस्ताक्षरित एक अलग ‘स्थिति’ (Agreed Position) के आधार पर इसी वर्ष नगा समझौते को अंतिम रूप दे.

खबर के मुताबिक, नगा शांति वार्ता में शामिल छह सशस्त्र विद्रोही समूहों के संयुक्त मंच एनएनपीजी ने हाल ही में कहा कि केंद्र सरकार को 2019 में समूह के साथ हस्ताक्षरित समझौते की शर्तों के अनुसार नगा शांति समझौते को अंतिम रूप देना चाहिए, जिसके प्रावधानों में नगाओं के लिए भारतीय पासपोर्ट में एक अलग पृष्ठ और नगालैंड में द्विसदनीय विधायिका शामिल है.

एनएनपीजी ने कहा कि केंद्र सरकार के साथ हुए राजनीतिक समाधान में नगा पहचान को पूर्ण मान्यता दी गई है, जिसमें भारतीय पासपोर्ट में एक अलग पृष्ठ, सभी अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में नगाओं का एक अलग दल और संसद के दोनों सदनों में उनका प्रतिनिधित्व बढ़ाया गया है.

दूसरी ओर, अलग नगा ध्वज और संविधान के सवाल पर गतिरोध एनएससीएन (आईएम) और केंद्र सरकार के बीच बातचीत में सबसे बड़ी रुकावट है. अपने बयान में मुइवा ने कहा है कि फ्रेमवर्क समझौते ने आधिकारिक तौर पर एक संप्रभु नगा राष्ट्रीय ध्वज और संविधान को मान्यता दी है और स्वीकार किया है. अपनी इस स्थिति को दोहराते हुए कि नगा मुद्दे पर एक राजनीतिक समझौता, फ्रेमवर्क समझौते पर आधारित होना चाहिए .

मुइवा ने कहा, ‘नगालिम और एनएससीएन हमेशा भारत सरकार द्वारा फ्रेमवर्क समझौते को सम्मान देने का इंतजार नहीं करेंगे… न ही हम भारत सरकार द्वारा राजनीतिक समझौते में नगालिम संप्रभु राष्ट्रीय ध्वज और नगालिम संप्रभु राष्ट्रीय संविधान को मान्यता देने और स्वीकार करने का इंतजार करेंगे.’

केंद्र नगालैंड को अलग झंडा और संविधान देने को तैयार नहीं: पूर्व मुख्यमंत्री

इसी बीच, नगालैंड के पूर्व मुख्यमंत्री एससी जमीर ने शुक्रवार को कहा कि केंद्र एनएससीएन (आई-एम) को अलग झंडा और संविधान देने को तैयार नहीं है.

डेक्कन क्रॉनिकल की रिपोर्ट के मुताबिक, जमीर ने संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने बुधवार को नई दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और नगालैंड के लिए अलग झंडा और संविधान की मांग पर स्पष्टता मांगी. उन्होंने कहा कि अलग झंडा और संविधान संभव नहीं है.

इस बात पर जोर देते हुए कि नगा लोग नगा शांति वार्ता के शीघ्र समाधान की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जमीर ने चेतावनी दी कि राज्य के लोग नगा शांति वार्ता का समाधान खोजने में हो रही देरी से तंग आ चुके हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ अपनी चर्चा का जिक्र करते हुए जमीर ने कहा, ‘भारत में केवल एक प्रधानमंत्री, केवल एक संविधान और केवल एक झंडा है.’

नगा शांति प्रक्रिया का इतिहास

गौरतलब है कि उत्तर पूर्व के सभी उग्रवादी संगठनों का अगुवा माने जाने वाला एनएससीएन-आईएम अनाधिकारिक तौर पर सरकार से साल 1994 से शांति प्रक्रिया को लेकर बात कर रहा है. इन संगठनों का दावा है कि नगा कभी भारत का हिस्सा नहीं थे और अपनी संप्रभुता को लेकर उन्होंने कई दशकों तक हिंसक आंदोलन चलाए हैं.

सरकार और संगठन के बीच औपचारिक वार्ता वर्ष 1997 से शुरू हुई. नई दिल्ली और नगालैंड में बातचीत शुरू होने से पहले दुनिया के अलग-अलग देशों में दोनों के बीच बैठकें हुई थीं.

18 साल चली 80 दौर की बातचीत के बाद अगस्त 2015 में भारत सरकार ने एनएससीएन-आईएम के साथ अंतिम समाधान की तलाश के लिए फ्रेमवर्क समझौते (फ्रेमवर्क एग्रीमेंट) पर हस्ताक्षर किए.

एनएससीएन-आईएम के महासचिव थुलिंगलेंग मुईवा और तत्कालीन वार्ताकार आरएन रवि ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में तीन अगस्त, 2015 को इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. लेकिन एनएससीएन-आईएम के नगाओं के लिए अलग ध्वज और संविधान पर जोर देने और सभी नगा निवासी क्षेत्रों (नगालैंड और मणिपुर व असम के कुछ हिस्सों) के ‘एकीकरण’ के कारण इस ढांचे पर आधारित अंतिम समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए गए थे.

हालांकि, संगठन के अलग झंडे, संविधान और ग्रेटर नगालिम की अपनी मांग पर अड़े होने की वजह से वार्ता किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है. संगठन का कहना है कि सरकार ने एनएससीएन-आईएम की अलग झंडे और संविधान की मांग को माना था लेकिन आरएन रवि ने इसे खारिज कर दिया था.

इसके अलावा, एनएससीएन-आईएम आस-पास के राज्यों असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के नगा-बहुल क्षेत्रों के एकीकरण के माध्यम से एक ‘ग्रेटर नगालिम‘ (नगालिम) बनाने पर जोर दे रहा है.