मुंबई की कोली मछुआरिनें पारंपरिक मछली बाज़ारों को बचाने के लिए लड़ रही हैं

मुंबई के मूल निवासी माने जाने वाले कोली समुदाय की महिलाएं कई पीढ़ियों से शहर के सौ से ज़्यादा बाज़ारों में मछली बेचने का काम करती रही हैं. हालांकि, अब शहरी विकास के नाम पर मछली बाज़ारों को शिफ्ट करने या गिराने की कवायद ने उनकी आजीविका संकट में ला दी है.

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मुंबई के भायकुला के मछली बाज़ार में विक्रेता महिलाएं. (सभी फोटो: श्रीराम विट्ठलमूर्ति, शमशीर यूसफ)

(पुलित्ज़र सेंटर और रोहिणी नीलेकणि फ़िलंथ्रोपीस के सहयोग से तैयार यह रिपोर्ट भारत की मछुआरी महिलाओं पर की जा रही सीरीज़ का हिस्सा है. श्रृंखला का पहला,दूसरा, तीसरा, चौथा और पांचवां भाग यहां पढ़ सकते हैं.)

दिसंबर 2021 की एक शांत दोपहर थी. नर्मदा पांडुराव कोली मुंबई के चेंबूर मछली बाज़ार में आधी टूटी हुई इमारत में बैठी थीं. अर्थमूवर मशीन (आम भाषा में जेसीबी) ने किसी दूसरे हिस्से में दीवार गिराई और पूरी इमारत दहल गई. फिर भी, कोली हिली नहीं. उन्हें डर था कि वह हमेशा के लिए अपनी जगह खो सकती थीं.

बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) बिल्डिंग को तोड़ने के लिए लोगों को भेजती है, कोली ने कहा. ‘वे इसे थोड़ा-थोड़ा करके तोड़ते रहते हैं, खासकर जब हम दोपहर में आराम करते हैं. यह उनकी एक चाल है ताकि वे इसे असुरक्षित इमारत करार दें और इसे  कानूनी रूप से गिरा सकें.’

नर्मदा पांडुराव कोली चेंबूर बाज़ार में मछली विक्रेता हैं. वे कहती हैं, ‘हम अपने बाज़ार के लिए लड़ना नहीं छोड़ेंगे. चाहे कोई हमारा साथ न दे, हम लड़ेंगे. क्योंकि बाज़ार हम औरतों ने बनाया है और यह जगह हमारी है.’

यह बाजार आजादी से पहले भाऊराव हरिश्चंद्र चेंबूरकर मंडई के रूप में निजी तौर पर स्थापित किया गया था. बाद में,  बीएमसी ने इसे अपने नियंत्रण में ले लिया. अब,  बीएमसी इस जगह के पुनर्विकास की योजना बना रही है. मछली विक्रेताओं को यह खतरनाक लगता है क्योंकि उन्हें यह आश्वासन नहीं दिया गया है कि पुनर्विकसित बाज़ार में उनकी जगह बनी रहेगी.

कोली ने कहा, ‘हमने बिल्डर और बीएमसी अधिकारियों से लिखित में देने को कहा है कि जब वे इस जगह का पुनर्विकास कर लेंगे, तो हमें अपनी जगह मिल जाएगी. वह मान लें तो हम यहां से चले जाएंगे और वे अपनी योजना पूरी कर सकते हैं. लेकिन, वे ऐसा वादा करने को तैयार नहीं हैं. इसलिए, हम नहीं हट रहे हैं.’

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कोली लोग – जो पारंपरिक रूप से अपनी आजीविका के लिए समुद्र पर निर्भर हैं- मुंबई के मूल निवासी माने जाते हैं. कोली महिलाएं कई पीढ़ियों से सौ से ज़्यादा बाज़ारों में मछली बेचने का काम करती रही हैं. वो भारत की शहरी महिला मछली विक्रेताओं का सबसे बड़ा समुदाय हैं.

पुराने समय में कोली महिलाएं अपने घर पर बची हुई मछलियां लेकर नज़दीक किसी जगह अनौपचारिक रूप से इकट्ठा होती थीं और उन्हें बेचती थीं. रेखा तुलसीदास केनी माहिम स्ट्रीट मार्केट में काम करती हैं और मुंबई मछली विक्रेताओं की एक नेता हैं. वे कहती हैं, ‘यही जगहें धीरे-धीरे मछली बाज़ार बन गईं. उनमें से कई को बाद में बीएमसी ने अपने कब्ज़े में लिया और बिजली और पानी जैसी सुविधाएं दीं.’

इसके बावजूद कोली महिलाएं महसूस कर रही हैं कि उन्हें उनके शहर से बाहर धकेला जा रहा है. मुंबई भारत की व्यावसायिक राजधानी है, और शहरी विकास प्राथमिकताएं इन महिलाओं की आजीविका संबंधी चिंताओं को नज़रअंदाज़ करती हैं.

मछली बाज़ार जिन ज़मीनों पर हैं उनपर हमेशा से सरकार और निजी बिल्डर्स की नज़र रही है. पिछले दो दशकों में नगरपालिका बाज़ारों का निजी पुनर्विकास बड़े पैमाने पर शुरू हुआ है 

बाजार पुनर्विकास नीति (विकास नियंत्रण और संवर्धन विनियम 2034 की धारा 33 (21)) का मसौदा सबसे पहले 2004 में तैयार किया गया था और तब से इसमें कई संशोधन हुए हैं. एकोमोडेशन रिजर्वेशन स्कीम (आवास आरक्षण योजना) के तहत, निजी डेवलपर बाजार के लिए आरक्षित प्लॉट को डेवलप करके बीएमसी को मुफ्त में सौंप देते हैं, और इसके लिए बीएमसी उन्हें इस जगह पर ​बहुमंजिला बिल्डिंग बनाने की इजाज़त देता है जिसे वो बेच या किराये पर दे सकते हैं. 

पुनर्विकास का यह मुद्दा बेहद विवादास्पद रहा है. मछली विक्रेताओं ने आरोप लगाया है कि पुनर्विकास उन्हें बाज़ार से विस्थापित कर देता है जबकि निजी डेवलपर्स उस जगह को मछली-संबंधित गतिविधियों के लिए इस्तेमाल न करके भारी दामों पर बेच देते हैं. कई मामलों में, बिल्डर ने मछली विक्रेताओं की बिजली और पानी जैसी आवश्यक सेवाएं काटकर जबरन बाज़ार खाली कराए हैं. इसका एक उदाहरण दक्षिण मुंबई में सीएसटी बाजार का पुनर्विकास है, जो दुनिया के सबसे महंगे रियल एस्टेट में से एक है. 

मार्च 2022 में महाराष्ट्र राज्य विधानमंडल में पेश, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में कहा गया है कि निजी बिल्डरों द्वारा पुनर्विकसित 103 बहुमंजिला नगरपालिका बाजारों में से लगभग आधे (43.7%) या तो पूरी तरह उपयोग में नहीं हैं या अन्य उद्देश्यों के लिए आवंटित हैं. रिपोर्ट ने इन बाजारों के प्रबंधन और रखरखाव में भी खामियां बताईं.

क्रांति रमेश खोलांबे शेटये बाज़ार में मछलियां बेचती हैं. उनका कहना है, ‘इस प्राइवेट बाज़ार के टैक्स, रेंट और सारे शुल्क हम भरते हैं, मालिक नहीं. पुनर्विकास का दबाव डाल रहे हैं लेकिन ये वादा नहीं करते कि उसके बाद भी यहां हमारी जगह बनी रहेगी.’

मछली बेचने वाली महिलाएं बीएमसी के गठन से पहले से ही इन बाजारों में काम कर रही हैं, एक शोधार्थी शुद्धवती पेके ने कहा, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय संगठन (इंटरनेशनल कलेक्टिव इन सपोर्ट ऑफ फिश वर्कर्स) के लिए शहर के मछली बाजारों का अध्ययन किया है. 

‘जिन बाज़ारों के बिल्डिंग बीएमसी के स्वामित्व और संचालन में हैं, वहां हर मछली विक्रेता को लाइसेंस मिलता है. यह उस जगह का मालिकाना हक़ नहीं है; केवल वहां पर मछली बेचने का लाइसेंस है. यह लाइसेंस विरासत में दिया जा सकता है (एक विक्रेता से उसके बच्चों को) लेकिन इसे किसी अन्य व्यक्ति को हस्तांतरित नहीं किया जा सकता है. महिलाएं मानती हैं कि यह जगह उनकी है जबकि बीएमसी मानती है कि यह जगह उसकी है और उसने इसे महिलाओं को मामूली शुल्क पर दिया हुआ है.’

पेके ने कहा कि बीएमसी बाज़ार पर मछली विक्रेता के पारंपरिक अधिकार को मान्यता नहीं देती है. ‘महिलाओं के पारंपरिक अधिकारों और इन बाजारों के निर्माण और संरक्षण में उनकी अद्वितीय भूमिका को शहरी विकासकर्ताओं को समझने की आवश्यकता है.’

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नर्मदा कोली हाल ही के दो उदाहरणों से खास तौर पर चिंतित हैं.

एक बात तब की है जब महिला विक्रेताओं को ऐरोली जाने के लिए मजबूर किया गया था. जुलाई 2021 में जब बीएमसी ने उन्हें 40 किलोमीटर दूर एक बाजार में स्थानांतरित करने की पेशकश की, महिला मछली विक्रेताओं ने ज़ोरदार विरोध किया.

कोली कहती हैं, ‘ऐरोली बहुत दूर और उजाड़ है. यह जंगल जैसा है… कौन वहां जाना चाहेगा? यह असुरक्षित है और वहां कोई बिक्री भी नहीं होती.’

वह बताती हैं कि महिला मछली विक्रेता सुबह-सुबह विभिन्न घाटों से मछली खरीदती हैं. ‘अगर हमें ससून डॉक पर मनचाही मछली या कीमत नहीं मिलती है, तो हम भाऊचा धक्का (न्यू फेरी वार्फ़) या क्रॉफर्ड मार्केट जाते हैं. जब आप बीच शहर में हैं तो आपके पास बहुत सारे विकल्प होते हैं. ऐरोली से कोई कहां जा सकता है? आप फंस जाते हैं. इसके अलावा, जब हम दूसरी जगह जाते हैं तो हमारे ग्राहक हमारे पीछे नहीं आते. हमारा कारोबार खत्म हो जाता है.’

चेंबूर बाज़ार.

दूसरा उदाहरण, जिसने कोली की रातों की नींद गायब कर दी है, वह है परेल में शिरोडकर मछली बाजार का पुनर्विकास. शिरोडकर मार्केट ब्रिटिश काल में एक गौशाला में बसाया गया था. 1956 में बीएमसी ने थोड़ी दूर पर एक जगह पर मार्केट बनाया. 2021 में बीएमसी ने उन्हें वापिस गौशाला की ज़मीन पर भेज दिया, लेकिन इस जगह पर अब एक बहुमंजिला इमारत खड़ी है और मछली बाजार को उसके बेसमेंट तक सीमित कर दिया गया है. 

यह स्थानांतरण और पुनर्विकास धोखे और झूठ के आधार पर किया गया था, श्यामला प्रशांत वर्लीकर कहती हैं, जो शिरोडकर बाज़ार में मछली बेचती हैं. ‘बीएमसी और स्थानीय नेताओं ने हमें कुछ दिनों के लिए बाजार से बाहर जाने के लिए मना लिया. उन्होंने कहा यह हमारे बाजार की मरम्मत के लिए है और विशेष रूप से ‘अस्थायी’ शब्द का इस्तेमाल किया.अस्थायी उपाय में उन्होंने हमें इस बेसमेंट में जगह दी, लेकिन अब वे कह रहे हैं कि यही हमारी स्थायी जगह है.’ 

वर्लीकर कहती हैं कि जब महिलाएं बेसमेंट मार्केट में चली गईं, तो उन्हें लिफ्ट और रैंप के साथ वातानुकूलित बाजार का वादा किया गया था. ‘आज, बाजार में कोई वेंटिलेशन (खड़की या रोशनदान) नहीं है और कोई सुविधाएं नहीं हैं.’ गीता धुंगा कहती हैं कि ज़्यादातर ग्राहकों को पता ही नहीं कि यह (नया) बाजार इस बिल्डिंग में है क्योंकि यह बेसमेंट में है और बाहर से दिखता नहीं है. ‘जिनको पता है, वो भी यहां आने से कतराते हैं, क्योंकि उन्हें 16 सीढ़ियां उतरनी पड़ती हैं. बाजार की सीढ़ियां और फर्श अक्सर फिसलन भरे होते हैं, क्योंकि बेसमेंट के नीचे से गुजरने वाली नालियां ओवरफ्लो करती हैं. 

बारिश का मौसम यहां खास तौर पर कष्टदायक है. जून 2021 में अचानक हुई बारिश ने उन्हें चौंका दिया, जब उनका बाजार बारिश के पानी के साथ नाली के गंदे पानी (सीवरेज) से भर गया. ‘मैं रेस्तरां को मछली सप्लाई करती हूं, इसलिए मैंने अगली सुबह बिक्री के लिए 25,000 रुपये की मछलियां खरीदी थीं,’ सुशीला भगवान खेडेकर कहती हैं. ‘अचानक बारिश शुरू हो गई. मैंने जो भी पोमफ्रेट, किंगफिश और झींगा खरीदा था, वह दो दिनों तक गंदे पानी में डूबा रहा, उसके बाद बीएमसी ने मार्केट साफ किया. मुझे बहुत नुकसान हुआ. यहां के सभी अन्य विक्रेताओं को भी इसी तरह का नुकसान हुआ; हम कोई मछली नहीं बचा सके.’

सभी महिलाएं नए बाजार में कारोबार में गिरावट की शिकायत करती है. इस पर वर्लीकर कहती हैं, ‘पिछले बाजार की तुलना में हमारी कमाई आधी रह गई है.’ वर्लीकर कहती हैं कि उनकी गिरती आय ने उन्हें अपने बेटे को माउंट आबू के बोर्डिंग स्कूल से निकालकर स्थानीय स्कूल में दाखिला दिलाने पर मजबूर कर दिया. 

उनकी सहकर्मी और 60 साल की कैंसर मरीज गुलाब कासकर के लिए इसके परिणाम जानलेवा हो सकते हैं. ‘इस बाज़ार की कमाई से खर्चा नहीं चलता. पिछले बाजार में मैंने जो भी बचत की थी, वह सब खर्च हो चुके. अब मेरे पास दवाइयां ख़रीदने तक के पैसे नहीं हैं.’

नर्मदा कोली को डर है कि उनके बाजार के साथ भी ऐसा हो सकता है. ‘उन्होंने मछली बाजार की ज़मीन छीन ली और मछली विक्रेताओं को बेसमेंट में ठूंस दिया. मैं अपने साथ ऐसा नहीं होने दूंगी.’ इसलिए, जब बीएमसी ने चेंबूर बाजार के पुनर्विकास की बात शुरू की, तो वह चिंतित हो गईं. ‘यहां की सभी महिलाओं के पास बीएमसी के लाइसेंस है, लेकिन 2017 से बीएमसी ने हमारे लाइसेंस का नवीनीकरण या किराया लेना बंद कर दिया है. वे इस बाजार से हमारे दावे को मिटाने के लिए ऐसा कर रहे हैं. अब, उन्होंने बाजार के कुछ हिस्सों को तोड़-फोड़ कर इसे असुरक्षित घोषित कर दिया है ताकि हमें बाहर निकाला जा सके. हम यह चाल समझते हैं; बीएमसी एक बिल्डर के साथ मिलीभगत करके काम कर रही है जो हमारी ज़मीन पर एक इमारत बनाकर फ़ायदा कमाना चाहता है. वे बस हमारी जगह हड़पना चाहते हैं.’

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पिछले दशक में महिला विक्रेताओं ने खुद को संगठित किया है ताकि शहर की विकास योजना में उनकी आवाज़ सुनाई दे.

उनकी मांग है कि इन बाजारों को संरक्षित किया जाए या उनका पुनर्विकास उनके परामर्श से हो. मछुआरी महिलाओं का एक समूह-दरियावर्दी महिला संघ (डीएमएस)- शहर के प्रशासकों पर दबाव डाल रहा है कि उनके पारंपरिक स्थानों को मान्यता दी जाए.

उन्होंने मुंबई भर में 102 मछली बाजार- नगरपालिका, निजी और सड़क बाजार- चिह्नित किए. अब, वे उन्हें नगर विकास योजना में शामिल करने के लिए लड़ रही हैं. 

2021 में गिराया गया चेम्बूर के बाजार का कुछ हिस्सा.

डीएमएस की नेता उज्ज्वला पाटिल कहती हैं कि जब वे मुंबई की विकास योजना 2034 पर काम कर रहे थे, तब बीएमसी के सहयोग से बाज़ारों की मैपिंग की गई थी. ‘हम अधिकारियों और सांसदों के साथ अनौपचारिक चर्चाओं में इस मैप ​का उपयोग कर रहे हैं. लेकिन, बीएमसी ने औपचारिक रूप से इस मानचित्र को मान्यता नहीं दी है. इसलिए, यह बाजारों को बचाने की गारंटी नहीं है.’

फिर भी, मुंबई की महिला मछली विक्रेता अपने बाजारों को बचाने के लिए लड़ने के लिए दृढ़ हैं.

‘उनको जो भी बनाना हैं, वे बनाएं, बस यह सुनिश्चित करें कि हमारा बाजार बना रहे,’ कोली कहती हैं. ‘और, हमारे बाजारों का पुनर्निर्माण मछली विक्रेताओं की ज़रूरतों और मांगों के हिसाब से हो.’

इस आश्वासन के बिना महिलाएं बाज़ारों से हटने को तैयार नहीं हैं.

‘हमारा खून भी गिरेगा तो हम हटेंगे नहीं,’ कोली कहती हैं. ‘हम उन्हें अपना बाजार गिराने नहीं देंगे,’ उन्होंने दिसंबर 2021 की उस दोपहर को ज़ोर देकर कहा.

जुलाई 2022 में भारी बारिश के बीच बीएमसी ने चेंबूर मछली बाज़ार की इमारत को यह कहते हुए गिरा दी थी कि इमारत C-1 श्रेणी (खतरनाक और जीर्ण-शीर्ण इमारतों की) में थी.

मछली विक्रेताओं को इस टूटे हुए बाज़ार की बगल में एक खुले प्लॉट में जाने को मजबूर किया गया. बीएमसी ने उनके लिए एक शेड दिया, लेकिन ग़ुस्साए विक्रेताओं ने उसमे जाने से इनकार कर दिया. उन्होंने एक तिरपाल के नीचे काम करना चुना, जिसे उन्होंने अपने खर्च पर लगवाया था.

(मूल अंग्रेज़ी लेख से सोनालिका झा द्वारा अनूदित. अंग्रेजी में मूल मल्टीमीडिया रिपोर्ट यहां देख सकते हैं.)

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