महाराष्ट्र चुनाव में दलित और मुस्लिम प्रतिनिधित्व: कितना कागज़ी, कितना ज़मीनी

महाराष्ट्र चुनाव महायुति और महा विकास अघाड़ी के बीच का मुक़ाबला है. इसके बीच स्वयं को दलित-मुस्लिम या बहुजन समुदाय की रहनुमा बताने वाले एआईएमआईएम और वंचित बहुजन अघाड़ी अपनी जगह तलाश रहे हैं.

एआईएमआईएम और वीबीए की चुनावी रैलियों में आए समर्थक. (फोटो साभार: फेसबुक/@PartyAIMIM/@VBAforIndia)

मुंबई: महाराष्ट्र चुनाव 2024 इस समय‌ अपने अंतिम चरणों में पहुंच चुका है. 20 नवंबर को मतदान होना है जबकि 23 नवंबर नतीजों का दिन होगा. महाराष्ट्र की राजनीति पिछले कुछ सालों में इतनी बदली है कि वोटर के लिए मुश्किल हो गया है कि वे जिसे वोट देंगे वे कहीं पाला न बदल ले. पिछली विधानसभा के लिए चुनी गई पार्टियों के विभाजन के बाद ये पहला विधानसभा चुनाव होने जा रहा है. जहां एक तरफ़ भाजपा की अगुवाई वाली महायुति चुनावी मैदान में है तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस की अध्यक्षता वाली महा विकास अघाड़ी चुनाव लड़ रही है.

हिंदुत्व और सेकुलर राजनीति के इस जाल के बीच कुछ और दल हैं जो महाराष्ट्र की राजनीति में अपने कदम जमाने का प्रयास कर रहे हैं. विशेष रूप से दलित-मुस्लिम या बहुजन वोट बैंक को कई चुनावी क्षेत्रों में निर्णायक समझा जाता है. ऐसे में महाराष्ट्र में एक बार फिर मुस्लिम और दलित समुदाय का प्रतिनिधित्व कर रही ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) और वंचित बहुजन अघाड़ी (वीबीए)  अपनी क़िस्मत आज़मा रही है.

जहां पूरे राज्य में महायुति और महा विकास अघाड़ी के मुक़ाबला कड़ा माना जा रहा है, वहीं इन दोनों दलों से आने वाले बहुजन और मुस्लिम उम्मीदवार किस प्रकार चुनावी प्रचार कर रहे हैं और किन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. एआईएमआईएम प्रत्याशी एडवोकेट अतीक़ अहमद ख़ान ने द वायर हिंदी से बातचीत बताया कि इस दफा मजलिस को बड़ी कामयाबी मिलेगी.

अतीक़ अहमद महाराष्ट्र की हाई प्रोफाइल सीट मानखुर्द-शिवाजीनगर से चुनाव लड़ रहे हैं, जहां उनका मुकाबला महाराष्ट्र के कद्दावर नेता अबू आसिम आजमी और पूर्व मंत्री नवाब मलिक से है. इस सीट पर अतीक समीत कुल 5 मुस्लिम उम्मीदवार हैं.

अतीक़ अहमद आगे बताते हैं कि इलाके में शिक्षा व्यवस्था और नशे का कारोबार जोरों पर है जो उनका चुनावी मुद्दा है. जब मुस्लिम वोट बैंक के बंटवारे पर सवाल किया गया तो अतीक अहमद ने जवाब में कहा है कि क्षेत्र के लोग पारंपरिक नेताओं से परेशान हैं जिसके कारण वे उन्हें अपना समर्थन देकर एक उन्हें एक विकल्प के रूप में देख रहे हैं.

अतीक अहमद ने यह भी बताया कि उनका ये पहला चुनाव है, जो कुछ हद तक चुनौतीपूर्ण है लेकिन लोगों का समर्थन उन्हें मिल रहा है जिसके कारण जीत पर उसका विश्वास और मजबूत हो रहा है.

ज्ञात रहे कि एआईएमआईएम 16 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जिसमें 12 मुस्लिम उम्मीदवार हैं जबकि 4 सीटों पर दलित समुदाय को टिकट दिया गया है.

दूसरी तरफ, प्रकाश आंबेडकर की‌ वंचित बहुजन अघाड़ी (वीबीए) भी‌ 190 प्रत्याशियों के साथ इस चुनाव में है. वीबीए के एक उम्मीदवार आनंद जाधव ने बताया कि उनके दल ने कुल 10 मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा है. आनंद जाधव खुद मुंबई की चेंबूर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं

जाधव बताते हैं कि मुख्यधारा की अन्य पार्टियों की तरह उनके पास धन संपत्तियां नहीं हैं, न ही बड़ी-बड़ी गाड़ियां आदि, लेकिन लोगों का प्यार और‌ उनका समर्थन है. यह पूछे जाने पर कि वंचित बहुजन अघाड़ी किसी मुख्यधारा गठबंधन में शामिल नहीं होती, उन्होंने कहा, ‘पिछले कुछ सालों में महाराष्ट्र की जो राजनीति रही है उसमें जनता को मूर्ख बनाया जाता है, नेता वोट ले लेते हैं और किसी दूसरे दल में शामिल हो जाते हैं. वीबीए जनता के वोट का मान रखती है.’

जाधव ने यह भी कहा कि वंचित का वोटर ये देखकर वोट नहीं डालता कि उनके वोट से वंचित सत्ता में आ जाए, बल्कि हमारे वोटर की ये प्राथमिकता होती है कि बहुजन, दलित, मुस्लिम समुदाय और समाज के अन्य पिछड़े वर्गों से आने वाले लोगों के मुद्दों का सही प्रतिनिधित्व हो सके.

जाधव ने यह भी जोड़ा कि लोकसभा चुनाव 2024 के समय भी वंचित बहुजन अघाड़ी ने ‘इंडिया’ गठबंधन के सामने ये शर्त रखी थी कि गठबंधन के सहयोगी दल इस बात को लिखकर दें कि चुनाव जीतने के बाद वे भाजपा के साथ नहीं जाएंगे, जिस पर गठबंधन के कुछ दलों ने इनकार कर दिया था. इसके चलते वीबीए ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला लिया था.

क्या सोचते हैं मतदाता

ठाणे जिले के रहवासी अनिल बघत बौद्ध समाज से आते हैं और बहुजन राजनीति के कड़े समर्थक हैं.

वे कहते हैं कि वंचित बहुजन अघाड़ी अपनी विचारधारा से पीछे नहीं हटती. वंचित का वोटर हमेशा नैतिकता के आधार पर मतदान करता है. हम हमेशा से बांटने वाली राजनीति का विरोध करते आए हैं.

जब दलित-मुस्लिम राजनीति के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि दलित, बहुजन और मुस्लिम समुदाय को चाहिए कि वे सोच-समझकर उन नेताओं को वोट दें जो सदन में उनकी आवाज़ बन सकें. लेकिन मुस्लिम और दलित वोट बैंक काफ़ी हद तक बंटा हुआ है जिसके कारण सही उम्मीदवार विधानसभा नहीं पहुंच पाते जो उनका प्रतिनिधित्व कर सकें. अगर दलित, बहुजन और मुस्लिम समुदाय ठीक तौर पर एक तरफ़ हो कर मतदान करें तो राज्य की स्थिति ही कुछ और होगी.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)