नई दिल्ली: दिल्ली भयंकर वायु प्रदूषण की चपेट में है. ऐसे में सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में थर्मल पावर प्लांट पराली जलाने की तुलना में 16 गुना अधिक वायु प्रदूषक उत्सर्जित करते हैं.
बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के अनुसार, सीआरईए अध्ययन में कहा गया है कि एनसीआर में थर्मल पावर प्लांट 8.9 मिलियन टन धान के भूसे को जलाने से निकलने वाले 17.8 किलोटन से 16 गुना अधिक प्रदूषक उत्सर्जन करते हैं.
ये अध्ययन ऐसे समय में सामने आया है, जब दिल्ली के वायु गुणवत्ता की स्थिति बेहद गंभीर है और एक्यूआई करीब 500 पहुंच गया है. ये देश का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर बन गया है.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, ‘गंभीर’ एक्यूआई स्वस्थ व्यक्तियों के लिए जोखिम पैदा करता है. वहीं, पहले से स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे लोगों पर गंभीर प्रभाव डालता है.’
सीआरईए के अनुमान के अनुसार, जून 2022 और मई 2023 के बीच एनसीआर में कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांटों द्वारा 281 किलोटन सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ₂) जारी किया गया था.
मालूम हो कि भारत फिलहाल में दुनिया का सबसे बड़ा SO₂ उत्सर्जक है. यह वैश्विक मानवजनित SO₂ उत्सर्जन के 20% से ज्यादा के लिए जिम्मेदार है. ऐसा मुख्य रूप से इसके कोयला-निर्भर ऊर्जा क्षेत्र के कारण है. बिजली उत्पादन से भारत का SO₂ उत्सर्जन 2023 में 6,807 किलोटन मापा गया था, जो तुर्की (2,206 किलोटन) और इंडोनेशिया (2,017 किलोटन) जैसे अन्य प्रमुख उत्सर्जकों के उत्सर्जन से कहीं अधिक था .
अध्ययन में पाया गया कि एनसीआर थर्मल पावर प्लांट उत्सर्जन और पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने वाले उत्सर्जन के बीच तुलना SO₂ प्रदूषण के पैमाने पर की बात करती है. एनसीआर में थर्मल पावर प्लांट सालाना 281 किलोटन SO₂ उत्सर्जित करते हैं, जो 89 लाख टन पराली जलाने से उत्सर्जित 17.8 किलोटन से 16 गुना ज़्यादा है.
अध्ययन में आगे कहा गया है कि पराली जलाने से मौसमी उछाल आता है, जबकि थर्मल पावर प्लांट साल भर प्रदूषण का एक बड़ा और स्थायी स्रोत हैं. यह थर्मल पावर प्लांट उत्सर्जन पर सख्त नियंत्रण की जरूरत पर जोर देता है, लेकिन ऐसे प्लांटों को अक्सर नियमों से ढील मिलती है. जबकि पराली जलाने पर भारी जुर्माना लगाया जाता है.
सीआरईए अध्ययन के मुकाबिक, ग्रिप गैस डिसल्फराइजेशन (एफजीडी) तकनीक को तेजी से अपनाने से एनसीआर में उत्सर्जन 93 किलोटन तक कम हो जाएगा, जो 67 प्रतिशत की कटौती दर्शाता है.
इस संबंध में सीआरईए के विश्लेषक मनोज कुमार ने कहते हैं कि एनसीआर में कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों से निकलने वाले 96 प्रतिशत से अधिक कण प्रदूषण द्वितीयक (secondary) प्रकृति के होते हैं, जो मुख्य रूप से SO2 से उत्पन्न होते हैं. SO2 उत्सर्जन को कम करने से द्वितीयक कण पार्टिकल का भार काफी कम हो सकता है, जिससे इन कणों के लंबे समय तक संपर्क से जुड़े स्वास्थ्य जोखिम कम हो सकते हैं.
वे आगे कहते हैं, ‘SO2 का स्तर अक्सर NAAQS को पूरा करता है, क्योंकि एक बार जारी होने के बाद, यह जल्दी से सल्फेट्स में तब्दील हो जाता है – द्वितीयक कण जो PM2.5 के प्रमुख घटक हैं. इन द्वितीयक कणों का जीवनकाल लंबा होता है, और ये गंभीर स्वास्थ्य जोखिम को जन्म देते हैं. SO2 का हानिकारक कणों में यह छिपा हुआ परिवर्तन FGD स्थापना की आवश्यकता पर जोर देता है.’
हालांकि, वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए केंद्र के निर्णय समर्थन प्रणाली के अनुसार, रविवार को दिल्ली के प्रदूषण में वाहनों के उत्सर्जन का योगदान लगभग 15.8 प्रतिशत था. सिस्टम ने यह भी बताया कि शनिवार (16नवंबर) को राजधानी के वायु प्रदूषण में पराली जलाने का मुख्य योगदान था, जो कुल प्रदूषण का 25 प्रतिशत था.