नई दिल्ली: मणिपुर के 10 कुकी-जो विधायकों ने बुधवार को मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की अध्यक्षता में हुई बैठक में पारित प्रस्तावों पर प्रतिक्रिया व्यक्त की, जिसमें सोमवार को 26 एनडीए विधायकों ने भाग लिया था.
उन्होंने विधायकों पर जिरीबाम में 11 नवंबर की घटना का ‘फायदा उठाने’ का आरोप लगाया, जिसमें एक मेईतेई परिवार की तीन महिलाओं और तीन बच्चों का अपहरण कर उनकी हत्या कर दी गई थी.
दस विधायकों, जिनमें से सात भाजपा के, एक निर्दलीय और दो कुकी पीपुल्स अलायंस के हैं, ने एक बयान जारी किया, ‘पक्षपाती राज्य सरकार ने वंचित आदिवासी समुदाय के अधिकारों को दबाने के लिए जिरीबाम में हुई घटना का अनुचित फायदा लिया है.’
विधायकों ने कहा, ‘(मणिपुर सरकार) इतनी हिम्मतवर हो गई है कि वह केंद्र की एनडीए सरकार को धमकी देने लगी है.’ उन्होंने बैठक के प्रस्ताव का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि यदि उनकी मांगों को ‘निर्धारित अवधि के भीतर लागू नहीं किया गया तो एनडीए विधायक राज्य के लोगों के परामर्श से आगे की कार्रवाई का फैसला करेंगे.’
मालूम हो कि मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की अध्यक्षता में 18 नवंबर को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में विधायकों ने 11 नवंबर की हिंसा के दौरान जिरीबाम में महिलाओं और बच्चों के अपहरण और हत्या के लिए जिम्मेदार कुकी उग्रवादियों को सात दिनों के भीतर गैरकानूनी संगठन घोषित करने और केंद्र से ‘आफस्पा लगाने की समीक्षा’ करने का आग्रह किया गया था. साथ ही कुकी उग्रवादियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान चलाने की मांग की थी.
सिर्फ़ एक समुदाय के खिलाफ़ बड़े पैमाने पर अभियान को पक्षपातपूर्ण बताते हुए कुकी-ज़ो विधायकों ने कहा, ‘सभी मिलिशिया समूहों से सभी अवैध हथियार बरामद करने के लिए पूरे राज्य में बड़े पैमाने पर अभियान चलाए जाने चाहिए.’
प्रस्ताव में हाल के तीन मामलों को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंपने की मांग की गई है जबकि विधायकों ने मांग की कि घाटी और पहाड़ियों – दोनों इलाकों में नागरिक हत्याओं के सभी मामलों को एनआईए को सौंप दिया जाए.
उनके बयान में आगे कहा गया, ‘छह निर्दोष लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार ‘कुकी उग्रवादियों’ को भारत सरकार द्वारा गैर-कानूनी घोषित करने के प्रस्ताव से पहले संबंधित कानूनों के तहत अरमबाई तेंगोंल और मेईतेई लीपुन को गैरकानूनी संगठन घोषित किया जाना चाहिए. गांव के स्वयंसेवक (village volunteers) कोई संगठन नहीं हैं, बल्कि युवा हैं जो अपने गांवों को अरमबाई तेंगोल, तथाकथित जी5 (पांच भूमिगत मेईतेई संगठनों का एक समूह) द्वारा किए जाने वाले जानलेवा हमलों से बचाते हैं, जिन्हें राज्य पुलिस और जिरीबाम के मामले में सीआरपीएफ द्वारा मदद की जाती है.’
विधायकों ने शांतिपूर्ण बातचीत शुरू करने का भी आग्रह किया और 11 नवंबर की घटना के विरोध में प्रदर्शन कर रही भीड़ द्वारा मेईतेई विधायकों के घरों पर किए गए हमलों की निंदा की.
बैठक में शामिल न होने वाले चार विधायकों ने सीएम की मंशा पर सवाल उठाए
मुख्यमंत्री बीरेन सिंह द्वारा सोमवार को इंफाल में बुलाई गई एनडीए विधायकों की बैठक में शामिल नहीं होने वाले चार विधायकों ने बैठक के पीछे की मंशा पर सवाल उठाया है और इसे ऐसे समय में ‘छवि निर्माण की कवायद’ बताकर खारिज कर दिया है, जब राज्य सरकार विश्वास के संकट से जूझ रही है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सत्तारूढ़ भाजपा के एक वरिष्ठ विधायक ने कहा कि बैठक का घोषित एजेंडा ‘राज्य में बिगड़ रही कानून व्यवस्था की स्थिति की समीक्षा करना’ था. मुख्यमंत्री को डीजीपी, सुरक्षा सलाहकार, सीआरपीएफ और असम राइफल्स के आईजी और मुख्य सचिव सहित एकीकृत कमान के साथ बैठक बुलानी चाहिए थी. विधायकों की बैठक से इसमें क्या हासिल होने वाला है?’
वरिष्ठ भाजपा विधायक ने कहा, ‘बैठक में पारित प्रस्ताव का कानून और व्यवस्था से कोई लेना-देना नहीं है. केवल शांति वापस लाने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, और इसका उस बात से कोई लेना-देना नहीं है.’
बैठक में शामिल न होने वाले एक अन्य भाजपा विधायक ने बीरेन सिंह पर निशाना साधते हुए कहा, ‘उनकी मंशा ठीक नहीं है, इसलिए संकट जारी है. इसे दोनों पक्षों के बीच बातचीत से ही सुलझाया जा सकता है.’
विधायक ने कहा, ‘हम संघर्ष की शुरुआत से लेकर अब तक सीएम द्वारा बुलाई गई कई बैठकों में शामिल हुए हैं… हमें बुलाया जाता है, साथ बैठते हैं, तस्वीरें ली जाती हैं, हस्ताक्षर लिए जाते हैं और तस्वीरें दिल्ली ले जाई जाती हैं. लेकिन हमसे कभी प्रस्ताव या सुझाव नहीं मांगे जाते. इसलिए हम इसमें शामिल नहीं हुए. अगर सदन के नेता के तौर पर स्पीकर विधायकों की बैठक बुलाते हैं, तो हम जाएंगे. अभी पिछले दिन ही कैबिनेट की बैठक हुई थी. उसके बाद इसका क्या उद्देश्य था?’
संयोगवश, विधानसभा अध्यक्ष सत्यव्रत सिंह भी उन लोगों में शामिल थे जो बैठक में शामिल नहीं हुए, हालांकि उन्होंने कथित तौर पर इसके बारे में पहले ही सूचित कर दिया था.
बैठक में उपस्थित नहीं रहने वाले एक अन्य भाजपा विधायक ने बैठक में उपस्थित नहीं होने वाले विधायकों की सूची जारी करने तथा यह स्पष्ट करने के पीछे के विचार पर सवाल उठाया कि किसने सूचना देकर बैठक में भाग लिया था और किसने नहीं.
विधायक ने कहा, ‘उनकी (बीरेन सिंह की) स्थिति असुरक्षित है और यह दिखता है. बैठक का प्रस्ताव साझा करना एक बात है. लेकिन वह किसे समझा रहे हैं कि कौन आया, कौन अनुपस्थित रहा, कौन छुट्टी लेकर गया, जैसे कि हम स्कूली बच्चे हैं.’
उन्होंने इस दावे पर भी सवाल उठाया कि बिना सूचना दिए अनुपस्थित रहने वाले विधायकों को नोटिस जारी किए गए थे, उन्होंने कहा कि उन्हें नोटिस नहीं मिला है. विधायक ने कहा, ‘यह दावा… असंतुष्टों के लिए किसी तरह की धमकी है जो कह रहे हैं कि हमें मणिपुर का मुख्यमंत्री चाहिए, मेईतेई का नहीं.’
सोमवार को बैठक समाप्त होने के तुरंत बाद एक बुकलेट जारी की गई जिसमें बैठक में पारित प्रस्ताव के साथ-साथ 26 विधायकों के नाम और हस्ताक्षर शामिल थे. दो अतिरिक्त सूचियों में 18 विधायकों के नाम थे जो बैठक में मौजूद नहीं थे.
वहीं, सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम (आफस्पा) को निरस्त करने की मांग को लेकर 16 साल तक भूख हड़ताल पर रहीं मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला ने मणिपुर के सीएम के इस्तीफे और शांति बहाल करने के लिए प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप की मांग की.
शर्मिला ने राज्य और केंद्र दोनों सरकारों से विभिन्न जातीय समूहों की आशंकाओं और भय को प्रेम और करुणा के साथ दूर करने का आह्वान किया.
मालूम हो कि 3 मई 2023 को मणिपुर में मेईतेई और कुकी-जो समुदायों के बीच जातीय हिंसा भड़कने के बाद से अब तक लगभग 226 लोग जान गंवा चुके हैं, सैकड़ों की संख्या में लोग घायल हुए हैं और 60,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं.