नई दिल्लीः बिहार से अलग हो कर स्वतंत्र राज्य बने झारखंड में पांचवे विधानसभा चुनाव के लिए मतों की गिनती कल (23 नवंबर) को होनी है. राज्य की 81 विधानसभा सीटों के लिए दो चरणों में संपन्न हुए मतदान में 67.74 प्रतिशत वोटिंग दर्ज की गई.
43 सीटों के लिए पहले चरण का मतदान 13 नवंबर को संपन्न हुआ था, 66 प्रतिशत की वोटिंग दर्ज की गई थी. दूसरे चरण के लिए मतदान 20 नवंबर को हुए, जहां 12 जिलों की 38 सीटों पर 68.95 प्रतिशत का मतदान रिकॉर्ड किया गया.
किसके बीच है मुख्य मुकाबला ?
एक ओर भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन का पूरा प्रचार अभियान ‘घुसपैठिए’ पर केंद्रित रहा, तो दूसरी ओर मुख्य मुक़ाबला मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच बन गया. यह स्थिति झारखंड के चुनाव को महाराष्ट्र से भिन्न थी, जहां कई स्थानीय कद्दावर नेता अपनी साख बचाने के लिये लड़ रहे थे.
क्या थे मुख्य मुद्दे ?
राज्य गरीबी, कुपोषण, बेरोजगारी, कम साक्षरता दर, पलायन, विस्थापन, भ्रष्टाचार, राजनीतिक अस्थिरता सहित कई अन्य विकास संबंधी चुनौतियों से जूझ रहा है. लेकिन चुनाव प्रचार में भाजपा ने सबसे ज्यादा जिस राग को अलापा, वह है ‘झारखंड की बदलती डेमोग्राफी.’ इसके लिए उन्होंने ‘घुसपैठिए’ (बांग्लादेश और म्यांमार के मुसलमानों) के आगमन को जिम्मेवार ठहराया और हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली ‘इंडिया’ गठबंधन की सरकार पर आरोप लगाया कि वह आदिवासियों का हक़ छीन कर घुसपैठिओं को दे रही है.
प्रधानमंत्री मोदी ने 13 नवंबर को सारथ में एक चुनावी संबोधन के दौरान हेमंत सोरेन की नेतृत्व वाली सरकार पर बांग्लादेशियों को राज्य में अवैध तरीके से प्रवेश देने का आरोप लगाया था.
वहीं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि ‘संथाल परगना और पूरे झारखंड के अंदर आदिवासियों की आबादी घट रही है, ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि बांग्लादेशी घुसपैठी झारखंड के अंदर आ रहे हैं. और ये हेमंत सोरेन की सरकार उन्हें नहीं रोक सकती है, इन्होंने हाईकोर्ट में हलफनामा डालकर कह दिया है कि हम रोकना नहीं चाहते हैं.’
हालांकि, अगर आंकड़ों पर नज़र डालें तो झारखंड में आदिवासियों की आबादी आजादी के पहले से ही घट रही थी.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, साल 2001 में रांची के शोधकर्ता एलेक्सियस एक्का ने इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली (ईपीडब्ल्यू) जर्नल में प्रकाशित एक पेपर में बताया था कि आज़ादी के पहले झारखंड (तब दक्षिणी बिहार का छोटा नागपुर क्षेत्र) में सबसे ज्यादा आदिवासी आबादी साल 1911 में थी, जब यह पूरी आबादी का 38.42% फीसदी था. और सबसे कम आबादी साल 1941 में, 30.89% थी.
आदिवासी वोट पर रही भाजपा की नज़र
भाजपा नेताओं द्वारा इस तरह की बयानबाज़ी झारखंड में आदिवासी वोट को साधने के लिए की गई.
झारखंड की कुल 81 सीटों में से 28 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं. जबकि कुल 39 सीटें ऐसी हैं जहां पर आदिवासियों की आबादी 25 प्रतिशत से अधिक है. आदिवासियों की आबादी पूरे राज्य की आबादी का 27 प्रतिशत है.
हालांकि आदिवासियों को झारखंड में भाजपा का पारंपरिक वोटर नहीं माना जाता है. इस साल हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा सभी एसटी आरक्षित सीटें हार गई थी.
हेमंत सोरेन की मनी लौंडरिंग केस में गिरफ्तारी और फिर उनकी रिहाई भी इस बार के इलेक्शन के अहम मुद्दे रहे. झारखंड की सत्ताधीन पार्टी इस गिरफ़्तारी को राजनीतिक लाभ से प्रेरित बताती रही, वहीं भाजपा का कहना था कि जेएमएम भ्रष्टाचार में लीन पार्टी है इसलिए उनके ऊपर कार्रवाई की गई.
‘इंडिया’ गठबंधन और एनडीए में किसको कितनी सीटें
सबसे ज्यादा 42 सीटें जेएमएम को मिलीं. कांग्रेस को 30 सीटें तो आरजेडी के हिस्से 6 सीटें आईं. सीपीआई (एमएल) ने 3 सीटों पर चुनाव लड़ा.
एनडीए में भाजपा ने सर्वाधिक 68 सीटों पर चुनाव लड़ा, ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) के हिस्से 10 सीटें आईं, जेडीयू और लोजपा क्रमशः दो और एक सीटों पर लड़ीं.
मइयाँ सम्मान योजना बनाम गोगो दीदी योजना
मुख्यमंत्री मइयां सम्मान योजना हेमंत सोरेन की सरकार के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है. इस योजना के तहत 19 से 50 वर्ष की आयु के बीच की महिलाओं को झारखंड सरकार द्वारा 1000 रुपये प्रति महीने दिए जाते हैं. इस योजना का असर सबसे ज्यादा उन गरीब महिलाओं पर पड़ा है, जो छोटी छोटी जरूरतों के लिए अपने घर के मर्दो पर निर्भर होती हैं.
इसी योजना के बाद भाजपा ने गोगो दीदी योजना की घोषणा की, जिसके तहत भाजपा के सरकार में आने के बाद महिलाओं को 2100 रुपये प्रतिमाह दिए जायेंगे.
गोगो दीदी योजना के दावे के बाद जेएमएम विधायक कल्पना सोरेन ने घोषणा की कि जेएमएम की सरकार में वापसी के बाद मइयां योजना ने तहत मिलने वाली राशि को बढ़ा कर 2500 कर दिया जाएगा.
भाजपा और जेएमएम के इन दावों में कितनी सच्चाई है यह तो वक्त ही बतायेगा, लेकिन इतना तो तय है कि दोनों पार्टियां महिला वोटर्स को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. और ऐसा इसलिए क्योंकि तकरीबन 50 प्रतिशत वोटर महिलाएं हैं. और राज्य में 32 सीटें ऐसी हैं जहां पर महिला वोटर की संख्या अधिक है.
इन चेहरों पर रहेंगी नज़रें
राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन साहेबगंज की बरहेट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. उनका मुकाबला भाजपा के गमलियल हेम्ब्रम से है. वहीं झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी धनवार सीट से मैदान में हैं, उनके मुकाबले जेएमएम के निजामुद्दीन अंसारी खड़े हैं. जेएमएम की स्टार प्रचारक और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन गिरिडीह ज़िले की गांडेय विधानसभा सीट से मैदान में हैं. उनका मुकाबला भाजपा की मुनिया देवी से है.
टाइगर जयराम महतो नाम से मशहूर 30 वर्षीय झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेकेएलएम) के मुखिया डुमरी और बेरमो, दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं. युवा नेता के तौर पर उभर रहे जयराम महतो पर निगाहें रहेंगी.
पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन सरायकेला सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, भाजपा के लिए अहम सोरेन की इस सीट पर सब की नज़रें हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी और पूर्व लोकसभा सांसद गीता कोड़ा जगनाथपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रही हैं.
जयराम महतो फैक्टर
भले ही मुकाबला भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए का जेएमएम के नेतृत्व वाली ‘इंडिया’ गठबंधन से है, 30 वर्षीय जयराम महतो की झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेकेएलएम) सुर्खियों में है.
3 महीने पहले अस्तित्व में आई यह पार्टी झारखंड की 81 में से 73 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.
दूसरे चरण के चुनाव से पहले जयराम महतो झारखंड में काफ़ी लोकप्रिय हो गए हैं, ख़ास कर कुर्मी-महतो समुदाय के बीच. जयराम की बढ़ती लोकप्रियता राज्य की प्रमुख पार्टियों के लिए सरदर्द इसलिए भी बन रही है क्योंकि आदिवासियों के बाद राज्य में सबसे ज्यादा आबादी कुर्मियों की है, जो की पूरे राज्य की आबादी का 15 प्रतिशत है.
जेकेएलएम सीटें जीते या ना जीते, लेकिन यह मुख्य पार्टियों के वोट जरूर काट कर उनका समीकरण जरूर बिगाड़ सकती है.
हालांकि यह पहली दफ़ा नहीं है जब जयराम चुनाव लड़ रहे हैं, इसके पहले वह 2024 के लोकसभा चुनाव में गिरिडीह सीट से लड़े थे, और 3,47,322 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर आए थे.