मिज़ोरम के मुख्यमंत्री ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग उठाई

मिज़ोरम के मुख्यमंत्री लालदुहोमा ने मणिपुर में 18 महीनों से जारी जातीय हिंसा का हवाला देते हुए कहा कि मौजूदा प्रशासन की तुलना में राष्ट्रपति शासन बेहतर होगा. बीरेन सिंह पर राज्य में संकट का समाधान करने में विफल रहने का आरोप लगाते हुए उन्होंने सुझाव दिया कि नया नेतृत्व ज़रूरी है.

मिजोरम के मुख्यमंत्री लालदुहोमा. (फोटो साभार: X @Lal_Duhoma )

नई दिल्ली: मिजोरम के मुख्यमंत्री लालदुहोमा ने गुरुवार (28 नवंबर) को मणिपुर के अपने समकक्ष एन. बीरेन सिंह की कड़ी आलोचना की और उन्हें राज्य, उसके लोगों और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए बोझ बताया.

हिंदुस्तान टाइम्स के साथ एक साक्षात्कार में लालदुहोमा ने मणिपुर में 18 महीनों से जारी जातीय हिंसा का हवाला देते हुए कहा कि मौजूदा प्रशासन की तुलना में राष्ट्रपति शासन बेहतर होगा.

ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट का नेतृत्व करने वाले लालदुहोमा ने सिंह पर राज्य में संकट का समाधान करने में विफल रहने का आरोप लगाया और सुझाव दिया कि एक नया नेतृत्व आवश्यक है.

लालदुहोमा ने कहा, ‘मुझे यह कहते हुए दुख हो रहा है कि वह मणिपुर राज्य के लिए बोझ बन गए हैं. वह अपने लोगों और अपनी पार्टी के लिए बोझ बन गए हैं. अगर उनकी सेवा की अब भी ज़रूरत है, तो मेरी राय में यह ग़लत जरूरत है, जो ग़लत ज्यादा है और ज़रूरी कम.’

लालदुहोमा ने कहा, ‘अगर हम राष्ट्रपति शासन की तुलना मौजूदा सरकार से करें, तो राष्ट्रपति शासन कहीं ज़्यादा बेहतर है. लेकिन अगर एक ज़िम्मेदार सरकार हो, एक अलग नेता के साथ निर्वाचित निकाय हो, जो इस देश के स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी लोगों द्वारा किए गए महत्वपूर्ण योगदान को स्वीकार कर सके, जो उन्हें भारत का अभिन्न अंग और इस देश के वास्तविक नागरिक के रूप में पहचाने – तो उस स्थिति में, उस तरह का सीएम होना बेहतर हो सकता है.’

ज्ञात हो कि मणिपुर में मई 2023 में मेईतेई और कुकी समुदायों के बीच शुरू हुई हिंसा में अब तक करीब 260 लोगों की जान जा चुकी है और यह बढ़ती ही जा रही है. हाल ही में हुई घटनाओं में 10 आदिवासी और छह मेईतेई लोगों की हत्या शामिल है, जिससे तनाव और बढ़ गया है.

भाजपा के अंदर और बाहर से बढ़ते दबाव के बावजूद बीरेन सिंह ने उन्हें हटाने की मांग का विरोध किया है. पिछले हफ़्ते नेशनल पीपुल्स पार्टी ने उनकी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया, जबकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली में आपातकालीन बैठकें कीं.

लालदुहोमा ने शांति की दिशा में पहला कदम बताते हुए सशस्त्र समूहों पर प्रतिबंध लगाने और मिलिशिया को निशस्त्र करने का सुझाव दिया.

उन्होंने कहा, ‘मणिपुर में मिलिशिया के पास मौजूद सभी हथियार और गोला-बारूद को सरेंडर कर दिया जाना चाहिए. अगर ये लोग इन सभी अत्याधुनिक हथियारों को अपने पास रखना जारी रखते हैं, तो कौन जानता है- एक दिन वे अपनी बंदूकें दिल्ली की ओर तान सकते हैं.’

उन्होंने आदिवासी नेताओं से ईमानदारी से बातचीत करने का आह्वान किया और कहा, ‘हो सकता है कि वे मुख्यमंत्री और मेईतेई नेताओं की मौजूदगी में इस चर्चा को पसंद न करें. हो सकता है कि वे अलग से बैठक करना चाहें.’

मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की मांग पिछले एक साल से चल रही है, हाल ही में इसने जोर पकड़ लिया है, जब पूर्वोत्तर के सांसदों और पत्रकारों ने इसकी मांग शुरू की, जबकि इसका कोई वैकल्पिक समाधान नजर नहीं आ रहा है.

मिजोरम के मुख्यमंत्री ने भारत-म्यांमार सीमा पर प्रस्तावित बाड़बंदी का भी विरोध किया है, उनका तर्क है कि इससे ज़ो लोगों के पुनर्मिलन में बाधा आएगी. उन्होंने कहा, ‘जब हम पुनर्मिलन की बात कर रहे हैं तो हम सीमा पर बाड़बंदी कैसे कर सकते हैं? एक बार जब सीमा पर बाड़बंदी हो जाएगी, तो हमारे भाई-बहन कभी हमारी ओर नहीं देखेंगे. हम हमेशा के लिए बंटे रहेंगे.’

उन्होंने दावा किया कि उन्होंने इस मुद्दे को शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष उठाया है. हालांकि, उन्होंने सीमा पार तस्करी पर चिंता जताई, लेकिन लालदुहोमा ने अवैध गतिविधियों को रोकने में बाड़ लगाने की प्रभावशीलता को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा, ‘भारत-बांग्लादेश सीमा पर बाड़ लगाने के बावजूद इन चीजों को रोका नहीं जा सका.’

मालूम हो कि हाल ही में मिजोरम के मुख्यमंत्री द्वारा कुकी-ज़ो एकता का आह्वान करने पर विवाद खड़ा हो गया था. मुख्यमंत्री द्वारा संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में आयोजित एक सम्मेलन के दौरान कुकी-ज़ो एकता के आह्वान का भाषण वायरल हुआ था, जिसमें लालदुहोमा ने दावा किया कि कुकी-ज़ो को विभाजित करने वाली सीमाएं थोपी गई हैं और समुदायों से कभी सलाह नहीं ली गई.

उन्होंने कहा था, ‘1988 में ज़ोरो आंदोलन का मुख्य उद्देश्य भारत के भीतर ज़ो-पुनर्मिलन था. क्या आज भारत, बर्मा और बांग्लादेश में रहने वाले ‘ज़ो’ लोग भारत के अंतर्गत फिर से एकजुट होने की आकांक्षा रखते हैं? हमारे समय की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को देखते हुए यह सोचना दूर की कौड़ी नहीं है कि एक दिन यह संभव हो सकता है. शायद, क़िस्मत ने भविष्य में हमारे लिए यह मिलन तैयार रखा है.’

मिजो नेशनल फ्रंट ने भी मणिपुर सीएम के इस्तीफे की मांग की

उधर, मिजोरम की मुख्य विपक्षी पार्टी मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) ने भी गुरुवार को मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह से उनके राज्य में जारी जातीय हिंसा को रोकने में कथित रूप से विफल रहने के लिए इस्तीफे की मांग की.

मिजो नेशनल फ्रंट ने मुख्यमंत्री की इस्तीफे की मांग करते हुए कहा था कि केंद्र सरकार को इस संकट को हमेशा के लिए खत्म करने के लिए तत्काल, निर्णायक कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि मणिपुर के लोग अपने लोकतांत्रिक अधिकारों और सम्मान को पुनः प्राप्त कर सकें.

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मणिपुर सरकार की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, ‘मिजोरम स्थित राजनीतिक पार्टी, जिसके मुख्यमंत्री (जोरामथांगा) पिछले राज्य विधानसभा चुनावों में राष्ट्र-विरोधी म्यांमार शरणार्थी प्रचार और मणिपुर विरोधी रुख की तीखी लहर पर सवार होने के बावजूद हार गए थे, ने प्रेस बयान जारी कर मणिपुर के मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग की है.’

वहीं, भाजपा के नेतृत्व वाली मणिपुर सरकार ने मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) की कड़ी आलोचना की है और इसे राष्ट्र-विरोधी पार्टी बताया है.

बयान में आरोप लगाया गया कि म्यांमार के साथ खुली सीमा को सुरक्षित करने के केंद्र सरकार के प्रयासों का विरोध करके एमएनएफ ने लगातार एक राष्ट्र-विरोधी पार्टी के रूप में अपना असली चेहरा दिखाया है.

सरकार के बयान में कहा गया है, ‘मणिपुर में चल रहा संकट म्यांमार से आए अवैध प्रवासियों की देन है, जिनकी अर्थव्यवस्था अवैध अफीम की खेती से संचालित होती है, और मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के ड्रग्स के खिलाफ युद्ध के कारण उसे भारी नुकसान पहुंचा है.’