संभल: संभल की सड़कों पर रात उतरने वाली है. पुलिसिया जूतों के टाप से शहर पूरा दिन गूंजता रहा है. बंद दुकानों, बाधित इंटरनेट सेवा, जगह-जगह लगे पुलिस बैरिकेड के बीच शाही जामा मस्जिद को जाती सूनी सड़क पर स्ट्रीट लाइट चमक रही है. संभल की हिंसा में हुई पांच मुसलमानों की मृत्यु को हफ़्ता भर हुआ, सुप्रीम कोर्ट का स्थानीय अदालत को आदेश देता निर्णय भी आ गया, लेकिन इस हिंसा से जुड़े तमाम प्रश्न अभी भी अनुत्तरित हैं.
क्या यह विवाद किसी वृहद योजना का अंग था?
पीछे मुड़कर देखने पर समूचा घटनाक्रम इस कदर नाटकीय दिखाई देता है, मानो यह सुनियोजित था. 19 नवंबर को जामा मस्जिद के हरिहर हिंदू मंदिर होने का दावा करते हुए चंदौसी कोर्ट में याचिका दायर की गई. संभल के केला देवी मंदिर के महंत ऋषिराज गिरि और पांच अन्य वादियों ने अपनी याचिका में दावा किया था कि 1529 में मुगल सम्राट बाबर ने ‘प्राचीन हरिहर मंदिर’ को मस्जिद में बदल दिया था.
इसी रोज़ कोर्ट ने मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश दे दिया और सर्वेक्षण के लिए एडवोकेट कमिश्नर रमेश सिंह राघव को नियुक्त भी कर दिया. हालांकि अदालत ने सर्वेक्षण की कोई तारीख तय नहीं की थी, लेकिन राघव ने सर्वेक्षण के लिए संभल के जिलाधिकारी राजेंद्र पेंसिया से अनुमति भी ले ली और फिर राघव के नेतृत्व में सर्वेक्षण करने एक टीम भी पहुंच गई और उसी दिन सर्वेक्षण भी हो गया. गौर करें, जिस दिन याचिका दायर हुई, उसी दिन अदालत ने सर्वेक्षण का आदेश दे दिया और उसी रोज़ सर्वेक्षण भी हो गया.
क्या इतनी हड़बड़ी किसी पूर्वनियोजित योजना की ओर संकेत करती है?
सर्वेक्षण के दौरान मस्जिद पर भीड़ जुटी थी, लेकिन पूरी प्रक्रिया शांति से पूरी हो गई. लेकिन जब 24 नवंबर को सर्वेक्षण के लिए दोबारा टीम पहुंची, तो भारी हिंसा हुई. पांच लोगों की जान चली गई, हालांकि पुलिस चार लोगों की मौत का दावा कर रही है क्योंकि पांचवें मृतक के परिजनों ने लाश का पोस्टमार्टम नहीं कराया.
पुलिस का दावा है कि हिंसा के दौरान करीब 20 सरकारी कर्मचारी घायल हुए हैं.
क्या मस्जिद कमेटी को इस सर्वेक्षण के बारे में मालूम था या सर्वेक्षण टीम अचानक से मस्जिद पहुंच गई?
मस्जिद कमेटी का कहना है कि उन्हें इस सर्वेक्षण की जानकारी उचित समय पर नहीं दी गई थी. साथ ही, दूसरे सर्वेक्षण के लिए अदालत से अनुमति नहीं ली गई गई.
द वायर हिंदी को संभल के सर्किल ऑफिसर (सीओ) अनुज चौधरी ने बताया, ‘सर्वे के संबंध में ज़फ़र अली (मस्जिद प्रबंधन समिति के सदर) को नोटिस देने मैं और एसडीएम साहब गए थे. रिसीव भी कराया था.’
जफर ने द वायर हिंदी से बात करते हुए इन दावों का खंडन किया. ‘19 तारीख को अदालत की सुनवाई में हमारी तरफ से कोई मौजूद नहीं था. सर्वे से मात्र पांच मिनट पहले बताया गया. 24 तारीख के सर्वे के लिए (पिछली) रात नौ बजे नोटिस दिया गया. वो भी कोर्ट का आदेश नहीं था. डीएम ने सर्वे की अनुमति दी थी. अगर पहले दिन सर्वे पूरा नहीं हुआ था तो उन्हें कोर्ट जाना चाहिए था, वहां अनुमति मिलती, फिर डीएम अनुमति देते. कोर्ट से दोबारा सर्वे कराने का आदेश नहीं था,’ उन्होंने कहा.
जब हिंसा के बाद स्थिति बिगड़ती गई, आखिरकार 28 नवंबर को शाही जामा मस्जिद कमेटी ने सर्वेक्षण के आदेश को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 29 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत को तब तक कोई कार्रवाई न करने का आदेश दिया कि जब तक सर्वेक्षण के आदेश को चुनौती देने वाली मस्जिद कमिटी की याचिका हाई कोर्ट में सूचीबद्ध नहीं हो जाती.
पहला सर्वेक्षण रात में और दूसरा एकदम सुबह: ऐसी क्या हड़बड़ी थी?
द वायर हिंदी ने जब स्थानीय लोगों से बातचीत की, अधिकतर का यही सवाल था कि जब 19 नवंबर को सर्वेक्षण हो गया था तो 24 नवंबर को दोबारा क्यों किया गया? सबसे बढ़कर, क्या सर्वेक्षण से पहले मस्जिद प्रबंधन को सूचित किया गया था?
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक़, 23 नवंबर को रमेश सिंह राघव ने जिलाधिकारी को पत्र लिखकर बताया था कि सर्वेक्षण का काम पूरा नहीं हुआ. 24 नवंबर को सुबह सात से ग्यारह के बीच दोबारा सर्वेक्षण किया जाएगा.
एक प्रेस वार्ता में दोबारा सर्वेक्षण का कारण बताते हुए ज़िलाधिकारी राजेंद्र पेंसिया ने कहा था, ‘पहले दिन एक घंटे के क़रीब सर्वे चला. सब कुछ अच्छे से हुआ. लेकिन वह सर्वे रात में हुआ था और आपको पता है कि रात में बहुत सारे फीचर नहीं आ पाते हैं, इसलिए एडवोकेट कमिश्नर ने हमसे 23 नवंबर को दोबारा रिक्वेस्ट की. हम 24 नवंबर की सुबह पौने सात बजे हम कोतवाली संभल पहुंचे. वहां इंतजामिया कमेटी के सदस्यों को बुलाया. उन्होंने अपने चार सदस्यों को ले जाने (सर्वे में) की बात कही. इसके अलावा एडवोकेट कमिश्नर थे और दो वकील वादी की तरफ़ से थे. इन सब को लेकर साढ़े सात बजे सर्वे शुरू हुआ.’
गौरतलब है कि पहला सर्वेक्षण रात को आनन-फानन में हुआ, तो दूसरा एकदम सुबह हो गया. जो आधिकारिक प्रक्रिया दिन की रौशनी में आराम से पूरी हो सकती थी, उसे बेवक्त अंजाम दिया गया. ऐसा कब होता है कि किसी ऐतिहासिक इमारत का सर्वेक्षण पहले अंधेरे में हो, और उसके बाद सुबह जब लोग अमूमन दुकान भी नहीं खोल पाते. क्या सर्वेक्षण टीम इतनी सुबह आती है? किसी ज़िले का पूरा महकमा इतनी सुबह आखिर क्यों एकत्र हो गया?
ज़िलाधिकारी के मुताबिक हिंसा सर्वेक्षण खत्म होने के बाद शुरू हुई. ‘सुबह 10 बजे सर्वे पूरा हो गया. …सवा नौ तक कहीं पत्थरबाजी नहीं थी. पौने दो घंटे आराम से सर्वे चला. लेकिन उसके बाद थोड़ी पत्थरबाजी हुई तो हमने हल्का बल प्रयोग कर उन्हें पीछे हटा दिया. जैसे ही मस्जिद से ऐलान हुआ कि सर्वे पूर्ण हो चुका है वैसे ही जबरदस्त तरीके से पत्थरबाजी और फायरिंग शुरू हो गई.’
मस्जिद के पीछे के इलाके में जहां सबसे ज्यादा हिंसा हुई, लकड़ी की दुकान चलाने वाले शहाबुद्दीन उस सुबह को बयान करते हैं. ‘मैं सुबह क़रीब सात बजे अपनी दुकान खोलने आया तो देखा पुलिस ने बैरिकेडिंग की है. आगे मेरी दुकान थी तो मैं बैरिकेडिंग पार कर आ गया, पुलिस ने रोका नहीं. मस्जिद के पास पहुंचा तो देखा कि सामने की गली में लोगों की भीड़ जुट रही थी.’
मास्टर शरीफ बताते हैं कि जब मस्जिद के भीतर सर्वे चल रहा था तभी अफ़वाह फैली कि अंदर खुदाई चल रही है क्योंकि पीछे की नाली से अचानक तेजी से पानी बहने लगा था. इससे लोगों में खलबली मच गई. बाद में पता चला कि वज़ू टैंक को खाली करने से पानी बहा था.
पुलिस ने मुस्लिम समुदाय को हिंसा का आरोपी ठहराया है. पुलिस का दावा है कि सर्वेक्षण के दौरान भीड़ ने पुलिस पर पत्थरबाजी की, जिसके बाद पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा. हिंसा के दौरान पांच लोगों की मौत हो गई, जिसमें से चार की गोली लगने से हुई.
पुलिस ने सपा नेताओं पर भी आरोप लगाया है. सीओ अनुज चौधरी के मुताबिक, अब तक 12 एफआईआर दर्ज की जा चुकी हैं. तीस लोग गिरफ्तार हुए हैं. 250 से ज्यादा लोग नामजद किए गए हैं, जिसमें सपा सांसद जिया उर रहमान बर्क और सपा विधायक इकबाल महमूद के बेटे नवाब सुहैल इकबाल का भी नाम शामिल है. हालांकि दोनों ने हिंसा में किसी भी तरह की संलिप्तता से इनकार किया है और प्रशासन पर स्थिति को ठीक से नहीं संभालने का आरोप लगाया है.
अनुज चौधरी ने कहा, ‘उस दिन विधायक (इकबाल महमूद) का बेटा (नवाब सुहैल इकबाल) सुबह पांच बजे नमाज़ पढ़ने पहुंच गया था, जबकि वह वहां कभी नमाज़ पढ़ता भी नहीं.’
पुलिस और प्रशासन के बयानों में विरोधाभास
सर्किल ऑफिसर अनुज चौधरी पर गोली चलाने का आरोप लगा है लेकिन द वायर हिंदी से बातचीत में चौधरी ने दावा किया कि पुलिस ने किसी भी लीथल वेपन का इस्तेमाल नहीं किया. आंसू गैस के गोले छोड़ने वाले जैसे नॉन लीथल हथियारों का इस्तेमाल किया गया था. घटना के तुरंत बाद किए प्रेस वार्ता में जिलाधिकारी ने कहा था कि पुलिस की तरफ से पैलेट गन का इस्तेमाल किया गया था.
इसके विपरीत उस दिन मौके पर तैनात पुलिसकर्मी कर्म सिंह ने द वायर हिंदी को बताया कि पुलिस की तरफ़ से हवाई फायरिंग की गई थी.
अनुज चौधरी का यह भी दावा है कि उस दिन पुलिस किसी ‘तैयारी’ के साथ नहीं गई थी क्योंकि उन्हें कोई आशंका नहीं थी. ‘हमें तैयार रहने की क्या ज़रूरत थी. ज़मीन पर कब्जा करने थोड़े जा रहे थे. हमें नहीं लगा था कि ऐसा कुछ होगा.’
मस्जिद कमेटी का दावा है कि 24 नवंबर को कम-अस-कम 1000 पुलिसवाले सर्वे टीम के साथ आये थे. पुलिस अधीक्षक कृष्ण कुमार के मुताबिक, दूसरे सर्वेक्षण के दौरान मस्जिद के पीछे के इलाकों में ही 200 पुलिसकर्मी मौजूद थे. जिलाधिकारी के मुताबिक, दूसरे सर्वे के दौरान पहले सर्वे से अधिक पुलिस बल तैनात किया गया था.
लेकिन सर्कल ऑफिसर कह रहे हैं कि उनकी पुलिस तैयार नहीं थी.
इसी तरह 28 नवंबर की प्रेस वार्ता में कमिश्नर आंजनेय कुमार ने बताया कि प्रशासन के पास पहले से इनपुट था कि हिंसा हो सकती है. इससे पहले जिलाधिकारी ने भी कहा था, ‘हमारे इंटेलिजेंस ने जितनी बातें हमें बताई थी, हम उससे अधिक तैयारी के साथ पहुंचे थे. पर्याप्त मात्रा में फोर्स था. इसे आप ऐसे समझे कि हमने एक भी व्यक्ति को जामा मस्जिद के सामने नहीं आने दिया.’
प्रशासन की लापरवाही?
अगर प्रशासन को पता था कि हिंसा संभव है, तो मस्जिद कमेटी और स्थानीय समुदाय को विश्वास में क्यों नहीं लिया गया? एक प्रमुख धार्मिक स्थल को इस तरह पुलिस द्वारा क्यों घेरा गया?
बेहिसाब पुलिस बल: हवा में पसरती आशंका और भय
इन प्रश्नों की धुंधली रौशनी में आप 24 नवंबर को दूसरे सर्वेक्षण के दौरान हुई हिंसा को पढ़ सकते हैं. उस हिंसा को हफ़्ता भर हुआ, लेकिन हवाओं में भय और आशंका बनी हुई है. पुलिस कहती है कि चार लोग मारे गए, लेकिन कम-अस-कम पांच मृतकों के नाम सामने आ चुके हैं.
मस्जिद के आसपास कड़ी निगरानी के लिए नए सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं. ‘एक आरएएफ़, दो आरआरएफ, 13 कंपनी पीएसी, कुल 16 कंपनी तैनात है. बाहर की फोर्स है, हमारी लोकल फोर्स भी है, कुछ को स्टैंडबाय पर भी रखा है,’ मुरादाबाद के कमिश्नर आंजनेय कुमार कहते हैं.
संभल शहर की आबादी दो लाख से ज्यादा है. 2011 की जनगणना के मुताबिक कुल आबादी में मुस्लिम 70 प्रतिशत से अधिक और हिंदू 20 प्रतिशत से थोड़े ज्यादा हैं. शहर की अधिकतर आबादी निम्न मध्यम वर्गीय या अत्यंत गरीब है. कुछ ही दिनों में यह गरीब जीवन बिखर चुका है.
मस्जिद के पास गली में जनरल स्टोर चलाने वाले मास्टर शरीफ कहते हैं, ‘हमने तो सदर साहब (मस्जिद प्रबंधन समिति के सदर एडवोकेट जफ़र अली) के कहने पर दुकान खोली है लेकिन ग्राहक नहीं हैं.’
28 नवंबर को हुई आंजनेय कुमार की प्रेस वार्ता से संकेत मिलता है कि शहर का माहौल जल्द सामान्य नहीं होने वाला है. ‘यह व्यवस्था जारी रहेगी. स्थिति जब तक पूरी तरह सामान्य न हो जाए, हम हर जगह निगरानी रखेंगे.’
किसकी गोली से मरे लोग?
संभल हिंसा में पांच लोगों के मौत की पुष्टि हुई है- नोमान, बिलाल, अयान, कैफ़ और नईम. नोमान के अलावा शेष चार की गोली लगने से मौत हुई है. द वायर हिंदी की टीम नोमान, बिलाल, अयान और नईम के परिवारवालों और पड़ोसियों से बातचीत की.
अयान की उम्र 17 साल थी. वह मस्जिद के पास के ही एक होटल में काम करता था. उस रोज़ भी घर से काम के लिए ही निकला था. अयान की बहन रेशमा बताती हैं, ‘अचानक कुछ लोग अयान को कंधे पर लादकर लाए. तब उसकी सांस चल रही थी. उनसे बताया कि उसे पुलिस ने गोली मारी है.’
घटना के इतने दिन बाद भी परिवार के पास न तो एफआईआर की कॉपी है, न ही पोस्टमार्टम की रिपोर्ट.
यही हाल नईम के परिवार का है. वह मिठाई की दुकान चलाते थे और सामान खरीदने के लिए निकले थे. परिवार के मुताबिक़ नईम ने भी पुलिस की गोली लगने की बात बताई थी. अस्पताल ले जाने के दौरान उनका मौत हो गई थी. इसके बाद पुलिस घर पहुंची और लाश को पोस्टमार्टम के लिए ले गई. लेकिन अभी तक परिवार को पोस्टमार्टम की रिपोर्ट नहीं मिली है.
मस्जिद से चार किमी दूर सराय तरीन का रहने वाला 22 वर्षीय बिलाल, शाही जामा मस्जिद के पास ही रेडिमेड कपड़ों की दुकान चलाता था. पिता हनीफ़ ठेले पर फल बेचते हैं.
घटना स्थल से चार किमी दूर हयात नगर निवासी नोमान (45) साइकिल पर कपड़ा बेचा करते थे. उस रोज़ मस्जिद की तरफ़ फेरी के लिए गए थे. परिवार के मुताबिक़ पहले से उनकी तबीयत नासाज़ थी. दंगे में भीड़ के तले कुचलकर उनकी मौत हो गई. उनके शरीर और चेहरे पर लोगों के निशान थे.
घटना के बाद पुलिस नोमान के परिवार के पास पहुंची थी और पोस्टमार्टम कराने के लिए कहा था लेकिन परिवार ने मना कर दिया. यही वजह है कि पुलिस इस मौत को दंगे में मारे गए लोगों में नहीं गिन रही है.
‘चार लोगों की मृत्यु हुई है. जिसकी मृत्यु होती है उसका पोस्टमार्टम होता है. चार लोगों का पोस्टमार्टम हुआ है. मुरादाबाद का एक व्यक्ति उपचाराधीन है,’ कमिश्नर आंजनेय कुमार ने द वायर हिंदी के सवालों के जवाब में कहा.
किसकी गोली से मौत हुई के सवाल पर कमिश्नर ने कहा, ‘आरोप एक नहीं दस लगेंगे. 100 लगेंगे. हम जो भी कह रहे हैं साक्ष्य के आधार पर कह रहे हैं. किसने गोली चलाई, इसके साक्ष्य दीजिए, अगर पुलिस ने चलाई होगी तो हम उसे भी बरी नहीं करेंगे. …केवल एक वीडियो को आधार बनाकर आप सब कुछ नहीं कह सकते.’
उनका संकेत सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो को लेकर था, जिसमें पुलिस के हाथ में बंदूक थी. एसपी का दावा है कि वह पेलेट गन थी.
मृतकों के परिजनों को पोस्टमार्टम की रिपोर्ट न दिए जाने पर कमिश्नर ने कहा, ‘इसकी एक प्रक्रिया होती है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट की तीन कॉपी बनती है. प्रक्रिया के तहत परिवारवालों को भी दिया जाएगा. हम छुपा कुछ भी नहीं रहे हैं.’
सरकार दावा भले करे, लेकिन वह क्या छुपा रही है, यह किसी से छुपा नहीं है. सबसे पहले पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार है.