नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि विस्थापित कश्मीरी पंडित महिलाएं गैर-प्रवासियों से शादी करने के बाद भी उनका प्रवासी का दर्जा बरकारर रहेगा और कश्मीर में उनके लिए आरक्षित नौकरियों की वे हकदार होंगी.
गैर-प्रवासियों में बाहरी लोगों के अलावा वे स्थानीय लोग भी शामिल हैं जो पलायन नहीं कर पाए.
मालूम हो कि 1990 के दशक में आतंकवाद और कट्टरपंथ में वृद्धि के कारण अत्यधिक कश्मीरी पंडित कश्मीर घाटी से भाग गए थे.
2008 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर के साथ मिलकर कश्मीरी पंडित प्रवासियों के लिए प्रधानमंत्री रोजगार पैकेज पेश किया था, जिसका उद्देश्य कश्मीर में उनकी वापसी और पुनर्वास था.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस मोहम्मद यूसुफ वानी की पीठ ने कहा कि एक महिला का प्रवासी के रूप में उसका दर्जा केवल इसलिए छिन जाना क्योंकि उसे परिवार बसाने की इच्छा और मौजूदा परिस्थितियों के कारण एक गैर-प्रवासी से विवाह करना पड़ा, घोर भेदभावपूर्ण होगा और न्याय की अवधारणा के विरुद्ध होगा.
अदालत ने जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश और अन्य बनाम सीमा कौल और अन्य के बीच एक मामले में यह फैसला सुनाया. पीठ ने जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश की अपील को खारिज कर दिया और सरकार को सीमा कौल और विशालनी कौल की नियुक्ति आदेश जारी करने का निर्देश दिया.
प्रतिवादियों को नियुक्ति का आदेश जारी करने का निर्देश देते हुए पीठ ने कहा, ‘इस अदालत की राय है कि न्यायाधिकरण द्वारा पारित आदेश न्यायसंगत और उचित है. एसआरओ 412 में ‘प्रवासी’ की परिभाषा के अनुसार, यह परिभाषित करता है कि प्रवासी कौन है. लेकिन इसके बाद एक बार दिए गए दर्जे को उलटने का कोई प्रावधान नहीं है. इस प्रकार उक्त परिभाषा के अनुसार, प्रवासी वह व्यक्ति है जिसे 1989 के बाद कश्मीर घाटी से बाहर निकाल दिया गया था. इस तथ्यात्मक पहलू पर अपीलकर्ताओं द्वारा विवाद नहीं किया गया है. इस प्रकार प्रतिवादियों को दिए गए प्रवासी दर्जे के संबंध में कोई संदेह नहीं है.’
अदालत ने कहा कि इन महिलाओं को बिना किसी गलती के कश्मीर छोड़ना पड़ा और उनसे यह अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए कि वे सिर्फ अपनी प्रवासी स्थिति को बचाए रखने और घाटी में नौकरियों के लिए अर्हता प्राप्त करने के लिए अविवाहित रहें.
इसमें आगे कहा गया, ‘यह मानना भी उचित है कि सामूहिक पलायन के कारण हर प्रवासी महिला को ऐसा जीवनसाथी नहीं मिल पाएगा जो खुद प्रवासी हो. ऐसी स्थिति में यह मान लेना कि महिला प्रवासी के रूप में अपनी स्थिति खो देगी, क्योंकि उसे परिवार बनाने की स्वाभाविक इच्छा के कारण मौजूदा परिस्थितियों में गैर-प्रवासी से शादी करनी पड़ी, घोर भेदभावपूर्ण होगा और न्याय की अवधारणा के विरुद्ध होगा.’
पीठ ने कहा, ‘यह भेदभाव तब और भी बेशर्मी से बढ़ जाता है जब एक पुरुष प्रवासी इस तथ्य के बावजूद प्रवासी बना रहता है कि उसने एक गैर-प्रवासी से शादी की है. ऐसी स्थिति केवल पितृसत्ता के कारण उत्पन्न हुई है. राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के तहत रोजगार से संबंधित मामलों में इस तरह के भेदभाव को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है.’
यह मामला जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा दायर एक अपील से उपजा था, जिसमें केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें आपदा प्रबंधन, राहत, पुनर्वास और पुनर्निर्माण विभाग में दो कश्मीरी पंडित महिलाओं को कानूनी सहायक के रूप में नियुक्त करने का निर्देश दिया गया था.
इन महिलाओं को अंतिम चयन सूची से इसलिए हटा दिया गया था, क्योंकि उन्होंने गैर-प्रवासियों से विवाह किया था. राज्य ने तर्क दिया था कि महिलाओं ने इस तथ्य को छिपाया था.