नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (3 दिसंबर) को मामलों के कम निपटारे के लिए एक महिला सिविल जज को बर्खास्त करने के मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले पर सवाल उठाया.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने गर्भपात के बाद महिला जज को पहुंचे शारीरिक और मानसिक आघात को नजरअंदाज कर दिया.
मालूम हो कि मध्य प्रदेश में छह महिला सिविल जजों की बर्खास्तगी पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है. सितंबर में शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप के बाद बर्खास्त की गई छह में से चार महिला जजों को बहाल कर दिया गया था.
इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा, ‘काश पुरुषों को पीरियड्स (मासिक धर्म) होता, तभी वे समझ पाते.’
जस्टिस नागरत्ना ने आगे कहा, ‘यह कहना आसान है कि मामला खारिज हो गया और घर जाओ. अगर हम इस मामले की विस्तृत सुनवाई कर रहे हैं, तो क्या वकील कह सकते हैं कि हम धीमे हैं? खासकर तब, जब महिला जज शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान हों. आप यह मत कहिए कि वे धीमी हैं और उन्हें हटा दिया जाए.’
ज्ञात हो कि पीठ सिविल जज अदिति कुमार शर्मा और सरिता चौधरी के मामलों पर विचार कर रही थी, जो क्रमशः 2018 और 2017 में एमपी न्यायिक सेवा में शामिल हुई थीं. इन दोनों अधिकारियों को 2023 में बर्खास्त कर दिया गया था. मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की पूर्ण अदालत ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपे गए सीलबंद लिफाफे में प्रतिकूल टिप्पणी दर्ज करते हुए उनके खिलाफ बर्खास्तगी का आदेश रद्द करने से इनकार कर दिया था.
हाईकोर्ट के अधिवक्ता अर्जुन गर्ग द्वारा प्रस्तुत रिकॉर्ड से में बताया गया था कि सिविल जज अदिति शर्मा का प्रदर्शन 2019-20 में ‘बहुत अच्छे’ और ‘अच्छे’ रेटिंग से गिरकर बाद के वर्षों में ‘औसत’ और ‘खराब’ हो गया. 2022 में उनके पास 200 से कम निपटान दर वाले लगभग 1,500 मामले लंबित थे. उन्होंने सिविल मामलों के लिए 44.16 यूनिट और आपराधिक मामलों के लिए 269 यूनिट अर्जित कीं.
अदिति शर्मा ने हाईकोर्ट को सूचित किया कि 2021 में उनका गर्भपात हो गया था. इसके बाद उनके भाई को कैंसर होने के बारे में पता चला था.
मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह की पीठ ने कहा, ‘पुरुष न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के लिए समान मानदंड होने चाहिए, फिर देखेंगे. आप जिला न्यायपालिका के लिए टारगेट यूनिट कैसे रख सकते हैं.’
शर्मा का प्रतिनिधित्व कर रही वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि उनकी मुवक्किल का रिकॉर्ड बेदाग है और पेशेवर व व्यक्तिगत प्रतिद्वंद्विता के कारण शिकायतों का सामना करना पड़ा है.
न्याय मित्र गौरव अग्रवाल ने कहा कि शर्मा की 2022 की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट जबलपुर क्षेत्र की तत्कालीन जिला न्यायाधीश (निरीक्षण) अनुराधा शुक्ला द्वारा दर्ज की गई थी, जो बाद में रतलाम की प्रधान जिला न्यायाधीश बनीं और अब एमपी उच्च न्यायालय की न्यायाधीश हैं.
अदालत ने सिविल न्यायाधीशों को बर्खास्त करने के मानदंडों पर हाईकोर्ट से स्पष्टीकरण मांगा और 12 दिसंबर के लिए आगे की सुनवाई निर्धारित की.
महिला जजों ने दावा किया कि उनकी बर्खास्तगी अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता का अधिकार) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.