नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (9 दिसंबर) को मणिपुर सरकार को मई 2023 में शुरू हुई जातीय हिंसा के दौरान जलाई गई, आंशिक रूप से जलाई गई, क्षतिग्रस्त की गई, लूटी गई और अतिक्रमण की गई इमारतों और संपत्तियों का ब्यौरा देने का निर्देश दिया.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और संजय कुमार की पीठ ने इन संपत्तियों पर अनाधिकृत रूप से कब्जा करते हुए पाए गए व्यक्तियों के खिलाफ की गई आपराधिक कार्रवाई और उन्हें कब्जा शुल्क या मध्यवर्ती लाभ (किसी संपत्ति पर अवैध कब्जे वाले व्यक्ति द्वारा उसके वास्तविक मालिक को दिया जाने वाला धन) का भुगतान कराने के लिए राज्य द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में भी जानकारी मांगी है.
सीजेआई खन्ना ने मणिपुर राज्य की ओर से उपस्थित सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को संबोधित करते हुए कहा, ‘हम उन संपत्तियों का पूरा विवरण चाहते हैं जिन्हें जला दिया गया है, लूट लिया गया है और जिन पर अतिक्रमण किया गया है… आप हमें यह एक सीलबंद लिफाफे में दे सकते हैं.’
मेहता ने कहा कि राज्य की पहली प्राथमिकता हिंसा को रोकना और फिर हथियार एवं गोला-बारूद वापस लाना है. मेहता ने कहा, ‘हम विवरण दाखिल करेंगे.’
राज्य में पुनर्वास की निगरानी के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त जस्टिस गीता मित्तल समिति की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विभा मखीजा ने कहा कि रुकावटों के कारण पुनर्वास प्रभावित हो रहा है.
मेहता ने कहा कि राज्य में ऐसी परिस्थितियां हैं जिनसे बिना आक्रामकता के निपटा जाना चाहिए.
एक वकील ने पूर्वोत्तर राज्य में हिंसा से विस्थापित लोगों द्वारा दायर एक आवेदन का हवाला दिया. एक वकील ने दलील दी कि राज्य में हिंसा खत्म नहीं हुई है और स्थिति बदतर से बदतर होती जा रही है. वकील ने कहा, ‘राज्य और भारत संघ पर लोगों का भरोसा दांव पर है.’
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘हमें इसकी जानकारी है.’
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि ऐसी शिकायतें जस्टिस मित्तल समिति के समक्ष रखी जा सकती हैं.
मामले में पेश हुए एक वकील ने कहा कि अदालत को राज्य से बरामद हथियारों की कुल मात्रा का ब्यौरा पूछना चाहिए. मेहता ने कहा कि राज्य जानकारी देने के लिए तैयार है, लेकिन उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि वह आदेश में इस तथ्य को दर्ज न करे.’
एसजी ने अदालत को यह भी बताया कि जलाई गई, क्षतिग्रस्त की गई, लूटी गई या अवैध रूप से कब्जे वाली संपत्तियों का विवरण अदालत को सीलबंद लिफाफे में दिया जाएगा, क्योंकि इसे सार्वजनिक करने से हिंसा भड़क सकती है. उन्होंने कहा, ‘हम लूटे गए हथियारों और गोला-बारूद की बरामदगी का विवरण भी देंगे.’
इससे पहले मणिपुर ट्राइबल फोरम द्वारा दायर एक याचिका में दावा किया गया था कि मणिपुर से लगभग 18000 आंतरिक रूप से विस्थापित लोग हैं, जो 3 मई, 2023 को शुरू हुई हिंसा से भागकर अन्य राज्यों में रह रहे हैं.
‘मणिपुर में केंद्र और राज्य सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए, हमें नहीं’
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा कि अदालत अन्य व्यक्तियों द्वारा दायर पूरक आवेदनों पर कोई आदेश पारित नहीं करने जा रही है, क्योंकि केंद्र और राज्य सरकारों को कार्रवाई करनी है, हमें नहीं.
मेहता ने अदालत को बताया कि सरकारें जमीनी स्थिति से अवगत हैं और सुधारात्मक कदम उठा रही हैं. उन्होंने कहा, ‘हमें सलाह दी जाती है कि हम आक्रामक कार्रवाई न करें, क्योंकि इससे राज्य में शांति बहाल करने की प्राथमिकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.’
पीठ ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से कहा कि वह मणिपुर सरकार के साथ समन्वय स्थापित कर यह सुनिश्चित करे कि विस्थापित व्यक्तियों के पुनर्वास के लिए अनुशंसित उपायों को जल्द से जल्द लागू किया जाए.
अदालत ने मामले की सुनवाई 20 जनवरी 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह में निर्धारित की है.
सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले वर्ष 8 मई को डिंगांगलुंग गंगमेई द्वारा दायर याचिका पर पहली बार सुनवाई की थी, तब से अब तक 27 सुनवाइयां की हैं, जिसके दौरान इसने डेढ़ वर्ष से अधिक समय पहले जस्टिस मित्तल समिति का गठन किया था, तथा जातीय संकट में उनकी भूमिका के लिए दोनों समुदायों के सदस्यों के विरुद्ध दायर आपराधिक मामलों की जांच की निगरानी के लिए एक ‘अनुभवी गुप्तचर’ की नियुक्ति की थी.
यह सब मणिपुर हाईकोर्ट के अप्रैल 2023 के आदेश से शुरू हुआ, जिसमें राज्य सरकार को केंद्र सरकार के एक दशक से भी पुराने पत्र का जवाब देने का निर्देश दिया गया था, जिसमें मेईतेई समुदाय की मांग पर उसका विचार मांगा गया था, ताकि उन्हें सरकारी नौकरियों और सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में कुकी लोगों की तरह आरक्षण का हकदार आदिवासी समुदाय घोषित किया जा सके.
17 मई 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हाईकोर्ट के आदेश को गलत बताया था तत्कालीन सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था, ‘हमें मणिपुर हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगानी होगी. यह तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह से गलत है. हमने जस्टिस मुरलीधरन को उनकी गलती सुधारने के लिए समय दिया और उन्होंने ऐसा नहीं किया. हमें अब इसके खिलाफ कड़ा रुख अपनाना होगा. यह स्पष्ट है कि अगर हाईकोर्ट के न्यायाधीश संविधान पीठ के निर्णयों का पालन नहीं करते हैं तो हम क्या करें. यह बहुत स्पष्ट है.’
मालूम हो कि राज्य में बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने के मुद्दे पर पनपा तनाव 3 मई को तब हिंसा में तब्दील हो गया, जब इसके विरोध में राज्य भर में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ निकाले गए थे. इस हिंसा में अब तक कम से कम 250 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और हजारों लोग बेघर हो गए हैं.