अरुणाचल प्रदेश: जलविद्युत परियोजना के विरोध के मद्देनज़र गांवों में केंद्रीय बलों की तैनाती

अरुणाचल प्रदेश में प्रस्तावित 11,000 मेगावाट अपर सियांग जलविद्युत परियोजना के लिए सर्वेक्षण शुरू करने के लिए केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की तैनाती की तैयारी हो रही है. वहीं, नागरिक समूहों ने प्रस्तावित बांध का विरोध करते हुए कहा है कि यह भारत द्वारा हस्ताक्षरित अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन करता है.

सियांग बांध के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे ग्रामीण. (फोटो साभार X/@intlrivers वीडियो स्क्रीनग्रैब)

नई दिल्ली: अरुणाचल प्रदेश के सियांग जिला में प्रस्तावित 11,000 मेगावाट अपर सियांग जलविद्युत परियोजना, जिसे जमीन पर लगातार प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है, के लिए प्री-फिजिबिलिटी रिपोर्ट (पीएफआर) सर्वेक्षण कार्य शुरू करने के लिए केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) की तैनाती की तैयारी हो रही है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस वर्ष, सियांग अपर बहुउद्देशीय परियोजना (एसयूएमपी) के लिए अधिकारियों द्वारा निर्माण-पूर्व गतिविधियों में नए सिरे से तेजी लाई गई है, तथा जिला प्रशासन द्वारा प्री-फिजिबिलिटी रिपोर्ट- किसी परियोजना की संभावित लागत तथा किसी दिए गए क्षेत्र में उसकी व्यवहार्यता का आकलन करने के लिए एक प्रारंभिक विश्लेषण – के लिए सर्वेक्षण हेतु आधार तैयार करने के लिए कई प्रयास किए गए हैं.

जलविद्युत पीएसयू एनएचपीसी को इस परियोजना का निर्माण करना है और उसने सियांग नदी के किनारे तीन प्रस्तावित स्थलों को चुना है – उगेंग, डिटे डाइम और पारोंग. बताया गया है कि इस साल जून से सर्वेक्षण शुरू करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन स्थानीय ग्रामीणों द्वारा विस्थापन और पर्यावरणीय प्रभाव के डर से परियोजना का विरोध करने के कारण ये प्रयास रुक गए हैं.

बीते 29 नवंबर को मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने सियांग और अपर सियांग जिलों के अन्य मंत्रियों और विधायकों के साथ परियोजना पर एक बैठक की अध्यक्षता की, जिसके बाद उन्होंने कहा कि उन्होंने परियोजना के निर्माण में तेजी लाने का प्रस्ताव किया है.

मंगलवार को सियांग के डिप्टी कलेक्टर पीएन थुंगोन ने अखबार को बताया कि प्रशासन रियू और पारोंग गांवों में सीएपीएफ सैनिकों को तैनात करने की तैयारी कर रहा है.

डिप्टी कलेक्टर ने कहा, ‘इस परियोजना के राष्ट्रीय महत्व को देखते हुए यहां के 70-80% लोग इसके दीर्घकालिक लाभों के कारण इससे सहमत हैं, लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जो अभी भी इसका विरोध कर रहा है. पीएफआर की आवश्यकता है, जिसमें 3-4 महीने का काम शामिल होगा, जिसमें ड्रिलिंग भी शामिल है, ताकि यह देखा जा सके कि साइट पर बांध बनाया जा सकता है या नहीं, लेकिन कुछ असामाजिक तत्वों के कारण यह अभी तक नहीं हो पाया है.’

थुंगोन ने कहा, ‘अगर कुछ लोग ऐसा नहीं होने दे रहे हैं, तो सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने होंगे कि ऐसा हो. यह कदम ग्रामीणों को डराने के लिए नहीं है, बल्कि उन्हें और सर्वेक्षण पर काम करने वालों को किसी भी तरह की प्रतिकूल घटना से बचाने के लिए है.’

बताया गया है कि लगभग एक महीने से स्थानीय लोग रियू और पारोंग में निगरानी रख रहे हैं, ताकि सर्वेक्षणकर्ताओं को वहां आने से रोका जा सके.

परियोजना के विरोध का नेतृत्व कर रहे सियांग इंडिजिनस फार्मर्स फोरम के कानूनी सलाहकार भानु तातक ने कहा, ‘महिलाओं और युवाओं को चौबीसों घंटे गार्ड के रूप में वहां तैनात किया गया है… वे लगभग एक महीने से ऐसा कर रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई सर्वेक्षक नहीं आया है. यह देखते हुए कि सभी विरोध और प्रदर्शन पूरी तरह से शांतिपूर्ण रहे हैं, बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि अर्धसैनिक बलों को यहां लाया जा रहा है. प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है, इसलिए लोगों में डर पैदा करने के लिए ऐसा किया जा रहा है.’

इससे पहले परियोजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में कथित रूप से शामिल होने के लिए अपर सियांग जिले के कई सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ नोटिस जारी किए गए थे. अपर सियांग जिला प्रशासन द्वारा बैठकें भी की गई हैं, जिसमें लोगों से सर्वे करने में सरकार के साथ सहयोग करने के लिए कहा गया है और एनएचपीसी ने परियोजना के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से क्षेत्र के लिए 325 करोड़ रुपये का सीएसआर पैकेज भी मंजूर किया है.

एसयूएमपी को चीन की त्सांगपो पर जलविद्युत परियोजनाओं का मुकाबला करने के लिए एक रणनीतिक अनिवार्यता के रूप में पेश किया गया है, तथा इसे अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर तिब्बत के मेडोग काउंटी में 60,000 मेगावाट के एक ‘सुपर बांध’ की योजना के कारण संभावित रूप से कम हो जाने वाले प्रवाह के प्रभावों का मुकाबला करने के लिए एक जलाशय के रूप में कार्य करने के रूप में पेश किया गया है.

बांध विरोधी गांवों में सेना की तैनाती के ख़िलाफ़ नागरिक समूह

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अरुणाचल प्रदेश में नागरिक समूहों ने प्रस्तावित सियांग बांध के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे गांवों में सैन्य बलों की तैनाती को लेकर मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के समक्ष कड़ा विरोध दर्ज कराया है. समूहों का दावा है कि प्रस्तावित बांध उन अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन करता है, जिन पर भारत ने हस्ताक्षर किए हैं.

6 दिसंबर को लिखे गए पत्र में कहा गया है कि एसयूएमपी के लिए प्री-फिजिबिलिटी रिपोर्ट तैयार करने के लिए रियू गांव में सीएपीएफ की एक टीम तैनात की जानी है.

इसके जवाब में कई महिलाएं और पुरुष प्री-फिजिबिलिटी रिपोर्ट को पूरा होने से रोकने के लिए प्रस्तावित बांध स्थल की रखवाली कर रहे हैं.

बांध विरोधी कार्यकर्ता और वकील ईबो मिली ने कहा, ‘यह निर्देश न केवल परियोजना की पारदर्शिता और नैतिकता पर सवाल उठाता है, बल्कि स्वदेशी लोगों के अधिकारों की रक्षा करने वाले अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय कानूनों का भी घोर उल्लंघन है.’

नॉर्थ-ईस्ट ह्यूमन राइट्स (एनईएचआर) के बैनर तले नागरिक समूह ने मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को पत्र भेजकर बांध के लिए समर्थन व्यक्त करने वाले नेताओं की निंदा की.

पत्र में कहा गया है, ‘हम एसयूएमपी बांध का समर्थन करने वाले मुख्यमंत्री पेमा खांडू, उपमुख्यमंत्री चाउना मीन और विधायकों ओजिंग तासिंग, निनॉन्ग एरिंग, एलो लिबांग और ओनी पयांग जैसे नेताओं की निंदा करते हैं. कुछ दिन पहले उपमुख्यमंत्री ने एसजेवीएन और नीपको जैसे बांध डेवलपर्स के साथ दिल्ली में एक बैठक की थी, ताकि 13 अन्य मेगा हाइड्रोपावर परियोजनाओं पर उनके काम में तेजी लाई जा सके.’

पत्र में आगे तर्क दिया गया कि प्रस्तावित एसयूएमपी स्वदेशी लोगों के अधिकारों की रक्षा करने वाली अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन करता है.

पत्र में कहा गया है, ‘भारत संयुक्त राष्ट्र के स्वदेशी लोगों के अधिकारों की घोषणा (यूएनडीआरआईपी) अनुच्छेद 32 (2) और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) कन्वेंशन 169 जैसी संधियों पर हस्ताक्षरकर्ता है, जो स्पष्ट रूप से कहते हैं कि स्वदेशी लोगों को उनकी भूमि संसाधनों को प्रभावित करने वाली परियोजनाओं की योजना और कार्यान्वयन में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए.’

सैन्य बलों की तैनाती ने बांध के नैतिक और कानूनी निहितार्थों पर एक बड़ी बहस को जन्म दे दिया है, जिससे स्थानीय समुदायों और अधिकार समूहों का विरोध और भी तीव्र हो गया है.