12 ज़िलों में असमिया अल्पसंख्यक, इज़रायल से सीखें दुश्मनों से घिरकर कैसे ज़िंदा रहें: असम सीएम

असम आंदोलन के शहीदों की स्मृति में भारतीय जनता युवा मोर्चा द्वारा आयोजित कार्यक्रम में सीएम हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा कि असम आंदोलन असमिया लोगों की पहचान की रक्षा के लिए था, लेकिन हमें यह स्वीकार करना होगा कि ख़तरा ख़त्म नहीं हुआ है. हर दिन जनसांख्यिकी बदल रही है.

हिमंता बिस्वा शर्मा. (फोटो साभार: फेसबुक/@cmofficeassam)

नई दिल्ली: असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने मंगलवार (10 दिसंबर) को कहा कि राज्य के 35 जिलों में से 12 में स्वदेशी असमिया लोग अल्पसंख्यक हैं और उन्हें इज़रायल से सीखना चाहिए कि दुश्मनों से घिरे होने के बावजूद कैसे जीवित रहना है और समृद्ध होना है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सोनितपुर जिले के जमुगुरीहाट में ‘शहीद दिवस’ के अवसर पर एक कार्यक्रम से इतर पत्रकारों से बात करते हुए शर्मा ने कहा कि असम की सीमाएं कभी भी सुरक्षित नहीं थीं. असम में हर साल शहीद दिवस मनाया जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य 1979 से 1985 के बीच चले असम आंदोलन के दौरान शहीद हुए लोगों को श्रद्धांजलि देना है. इसे खड़गेश्वर तालुकदार की मृत्यु की याद में मनाया जाता है, जिन्हें असम आंदोलन का पहला ‘शहीद’ माना जाता है. ये आंदोलन 15 अगस्त 1985 को असम समझौते पर हस्ताक्षर के साथ समाप्त हुआ था.

इस अवसर पर भारतीय जनता युवा मोर्चा द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा, ‘ऐतिहासिक रूप से हमारी सीमाएं बांग्लादेश, म्यांमार और पश्चिम बंगाल के साथ साझा होती हैं. हम (असमिया लोग) 12 जिलों में अल्पसंख्यक हैं. हमें इजरायल जैसे देशों के इतिहास से सीखना होगा कि कैसे ज्ञान, विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग करके और अदम्य साहस के साथ, दुश्मनों से घिरे होने के बावजूद भी यह एक मजबूत देश बन गया है. तभी हम एक जाति (समुदाय) के रूप में जीवित रह सकते हैं.’

शर्मा ने यह भी जोड़ा कि असम समझौते के लगभग 40 साल बाद भी बाहरी लोगों से ‘खतरा’ खत्म नहीं हुआ है.

हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के अनुसार, शर्मा ने यह भी कहा कि उनकी सरकार ने असम समझौते के खंड 6 पर एक उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को लागू करने के कदमों सहित कई पहल की हैं, जो स्वदेशी लोगों को अधिक सुरक्षा देने का प्रयास करती है.

उन्होंने कहा, ‘राज्य में विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि असमिया और भारतीय मूल के लोग आने वाले कई वर्षों तक कम से कम 105 सीटों (कुल 126 में से) पर निर्वाचित होंगे. इससे हमारे राजनीतिक अधिकार सुरक्षित हो गए हैं.’

उन्होंने दावा किया कि असम आंदोलन असमिया लोगों की पहचान की रक्षा के लिए था. लेकिन हमें यह स्वीकार करना होगा कि ख़तरा ख़त्म नहीं हुआ है. हर दिन, जनसांख्यिकी बदल रही है, हर दिन स्वदेशी लोग भूमि अधिकार खो रहे हैं.

सीएम ने आगे कहा कि पिछले तीन वर्षों में राज्य सरकार ने पिछले तीन वर्षों में चंडीगढ़ के क्षेत्रफल के बराबर 10,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि से अवैध अतिक्रमण हटाया है. उन्होंने कहा, ‘मेरी सरकार ने राज्य में तेजी से विकास सुनिश्चित करते हुए असमिया लोगों की पहचान को संरक्षित करने पर समान ध्यान दिया है. मैं ऐसा कोई विकास नहीं चाहता जिससे असमिया के अस्तित्व को खतरा हो.’

उन्होंने कहा कि जहां असम आंदोलन का राजनीतिक उद्देश्य घुसपैठियों को बाहर निकालना था, वहीं इसका आर्थिक उद्देश्य वित्तीय आत्मनिर्भरता हासिल करना था और इस संबंध में युवाओं की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है.

उन्होंने कहा, ‘हमने अपनी ज़मीनों पर टाइल लगाने, रिक्शा खींचने, बसें चलाने से दूरी बना ली है. ‘अचिनक्तो’ (अज्ञात) लोग ये काम कर रहे हैं और हमारी अर्थव्यवस्था पर कब्ज़ा कर रहे हैं. युवाओं को इससे हमारी रक्षा करनी होगी.’

शर्मा ने आगे कहा, ‘भावनाओं से ‘जाति’ नहीं बनती, यह काम और विवेक से बनती है. हमें आत्मनिर्भर बनने के लिए काम करना होगा. आंदोलन खेती के क्षेत्र, औद्योगिक क्षेत्र में होना चाहिए. असमिया लोग अब बंद, धरना का समर्थन नहीं करते, वे ‘आंदोलन’ का समर्थन करते हैं जो इन अज्ञात लोगों को बाहर कर देगा.’

सीएम ने कहा कि निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन ने ‘कुछ वर्षों’ के लिए राजनीतिक सुरक्षा सुनिश्चित की है और इस समय का उपयोग सांस्कृतिक और आर्थिक पहचान की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किया जाना है. उन्होंने कहा कि सरकार सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा पर भी काम कर रही है.