नई दिल्ली: मणिपुर के कुकी-जो समुदाय के सात विधायकों ने मंगलवार को नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर केंद्र सरकार के खिलाफ जान-माल की हानि को रोकने के लिए तत्काल कदम नहीं उठाने के लिए मौन विरोध किया और अपने समुदाय के लिए एक अलग प्रशासन की मांग दोहराई.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इन सात विधायकों में से पांच सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के हैं. मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के खिलाफ कुल 10 कुकी-जो विधायकों ने विद्रोह कर दिया है, जिनमें उनके मंत्रिमंडल के दो मंत्री भी शामिल हैं.
हालांकि, उनमें से तीन विधायक विरोध प्रदर्शन के लिए नई दिल्ली नहीं आ सके.
मंगलवार को विधायकों की ओर से जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया, ‘हम, मणिपुर में सताए गए अल्पसंख्यक समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले दस विधायक, आज जंतर-मंतर पर मौन धरना दे रहे हैं, ताकि यह प्रदर्शित किया जा सके कि सरकार उन लोगों की आवाज सुनने से इनकार कर रही है, जिनका हम प्रतिनिधित्व करते हैं.’
विधायकों ने मीडिया से बात करने से इनकार कर दिया और बयान जारी कर कहा कि चूंकि भारत सरकार पिछले 19 महीनों से उनकी बातों पर ध्यान नहीं दे रही है, इसलिए उन्होंने अपनी आवाज उठाने के लिए प्रतीकात्मक रूप से मुंह पर गमछा बांध रखा है और क्योंकि हमारे लोगों की आवाज दबा दी गई है.
बयान में आगे कहा गया, ‘आज हमारी चुप्पी न्याय को चुप कराने का प्रतीक है, लेकिन हमारा विरोध भारत और न्याय के प्रति हमारे प्रेम को दर्शाता है. हम अपने लोगों के खिलाफ जातीय सफाए की हिंसा को जल्द से जल्द खत्म करना चाहते हैं, जो इस महान राष्ट्र, भारत के नागरिक हैं.’
विधायकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संबोधित एक ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किए, जिसमें हिंसाग्रस्त राज्य के लिए उनकी मांगें सूचीबद्ध की गईं, जिनमें शांति बहाल करने के लिए राजनीतिक वार्ता में तेजी लाना, पहाड़ी क्षेत्रों के विकास के लिए धन की मांग, जहां कुकी-जो जनजातियां रहती हैं, मुख्यमंत्री के माध्यम से नहीं बल्कि निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से करना शामिल है.
नाम न बताने की शर्त पर भाजपा के एक विधायक ने कहा, ‘हम सभी ने एक आधिकारिक ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं और इसे प्रधानमंत्री को संबोधित किया है… हम व्यक्तिगत बयान नहीं दे रहे हैं, लेकिन हम यहां जान-माल के नुकसान को रोकने के लिए तत्काल कदम नहीं उठाने पर केंद्र के खिलाफ विरोध जताने आए हैं.’
विधायक ने कहा, ‘यह (विरोध) मुख्यमंत्री बीरेन सिंह द्वारा संचालित मणिपुर सरकार के खिलाफ भी है, जो हिंसा में उनकी भूमिका और पहाड़ी लोगों के साथ उनके सौतेले व्यवहार के लिए है.’
मुख्यमंत्री बीरेन सिंह, जो मेइतेई समुदाय से हैं, पर पहाड़ी जिलों के लिए धन जारी नहीं करने का आरोप लगाया गया है. हालांकि, सीएम कार्यालय ने इन आरोपों का बार-बार खंडन किया है.
जंतर-मंतर पर पिछले 19 महीनों में पहली बार विधायकों ने केंद्र के खिलाफ प्रदर्शन किया. प्रदर्शन स्थल पर मौजूद विधायकों में वुंगजागिन वाल्टे भी शामिल थे, जो ह्वीलचेयर पर थे. पिछले साल 4 मई को इंफाल में भीड़ के हमले के बाद थानलोन के विधायक वाल्टे लकवाग्रस्त हो गए थे.
नाम न बताने की शर्त पर एक दूसरे भाजपा विधायक ने कहा, ‘हमने पिछले साल गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. उन्होंने हमें बताया कि किसी भी राजनीतिक समाधान के लिए सबसे पहले शांति होनी चाहिए. यह घाटी के लोग ही हैं, जो हिंसा की शुरुआत कर रहे हैं. याद रखें, पिछले महीने हिंसा का सबसे हालिया चक्र उन लोगों द्वारा शुरू किया गया था, जिन्होंने हमार महिला की हत्या की थी. केंद्र भी यह जानता है, लेकिन कार्रवाई नहीं कर रहा है, इसलिए हम विरोध कर रहे हैं.’
ज्ञात हो कि मणिपुर में पिछले साल 3 मई से ही मेइतेई और कुकी-ज़ो समुदायों के बीच हिंसा जारी है. जातीय संघर्ष में कम से कम 260 लोगों की जान जा चुकी है और हज़ारों लोग अपने घरों से बेघर हो गए हैं.
अलग प्रशासन की मांग
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, विरोध प्रदर्शन कर रहे विधायकों ने अलग प्रशासन पर बातचीत में तेजी लाने की मांग की.
एक विधायक ने कहा कि सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस समझौते (Suspension of operations) के तहत 24 कुकी-ज़ो विद्रोही समूहों में से कुछ द्वारा कथित तौर पर बुनियादी नियमों के उल्लंघन के कारण बातचीत अटकी हुई है. विधायकों ने प्रधानमंत्री को दिए ज्ञापन में कहा कि इसे अलग प्रशासन की मांग पर चर्चा में देरी करने के लिए ‘एक बहाने के रूप में’ इस्तेमाल किया जा रहा है.
ज्ञापन में कहा गया है, ‘एसओओ समझौते का उद्देश्य राजनीतिक मुद्दों को हल करना और शांति स्थापित करना था और यदि सरकार एसओओ ढांचे के भीतर चुनिंदा सशस्त्र समूहों के साथ एसओओ का विस्तार करने में हिचकिचा रही है तो यह समझौते की मूल भावना के खिलाफ है.’
2008 में हस्ताक्षरित इस समझौते को समय-समय पर बढ़ाया जाता रहा है, इस साल 29 फरवरी तक बढ़ाया गया था, जब मणिपुर सरकार त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए कोई प्रतिनिधि भेजने में विफल रही, जिससे इसका भाग्य अधर में लटक गया. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने तब से समझौते के आधारभूत नियमों की समीक्षा शुरू कर दी है और गृह मंत्रालय के सलाहकार (पूर्वोत्तर) एके मिश्रा द्वारा वार्ता का नेतृत्व किया जा रहा है.
राज्य में जातीय हिंसा शुरू होने से कुछ दिन पहले दो एसओओ समूहों- यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट और कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन ने मंत्रालय के साथ दशकों पुराने मुद्दे को खत्म करने के लिए राजनीतिक समझौता किया था, जिसके तहत राज्य में कुकी-जो लोगों के लिए एक प्रादेशिक परिषद के रूप में स्वशासन मॉडल पर सहमति व्यक्त की गई थी. 3 मई 2023 के बाद मांग को संशोधित कर एक विधानसभा के साथ केंद्र शासित प्रदेश के रूप में एक अलग प्रशासन की मांग की गई.
मणिपुर में बीते 3 मई 2023 को जातीय हिंसा बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) के दर्जे की मांग के कारण भड़की थी, जिसे पहाड़ी जनजातियां अपने अधिकारों पर अतिक्रमण के रूप में देखती हैं. इस हिंसा के बाद सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सहित प्रदर्शनकारी कुकी विधायकों और आदिवासी संगठन अब अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं.
मणिपुर की आबादी में मेईतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी समुदाय शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.