नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट के मौजूदा जज जस्टिस शेखर कुमार यादव ने बीते दिनों कट्टर हिंदुत्ववादी संगठन विश्व हिंदू परिषद (विहिप) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में दिए विवादित बयानों की चौतरफा आलोचना हो रही है. उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि भारत केवल ‘बहुसंख्यकों’ की इच्छाओं के अनुसार चलेगा.
अब कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीसीआई) ने इसे संविधान के खिलाफ बताते हुए सांसदों से जस्टिस यादव के खिलाफ कार्रवाई करने का आह्वान किया है.
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में कैथोलिक समुदाय की शाीर्ष संस्था सीबीसीआई ने बुधवार (11 दिसंबर) को एक प्रेस बयान जारी कर कहा कि भारत में कानून ‘बहुसंख्यकवादी शासन’ नहीं है.’
सीबीसीआई ने कहा कि बहुसंख्यकवादी शासन ‘अनुच्छेद 14 और भारत की संवैधानिक नैतिकता के उद्देश्यों के विपरीत है.’ संविधान का अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष सभी व्यक्तियों को समानता की गारंटी देता है.
कैथोलिक संस्था ने अपने बयान में यह भी कहा कि जिस व्यक्ति को देश के संविधान और उसकी नैतिकता पर भरोसा नहीं है, उसे भारत में न्यायपालिका से कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए, जज बनना तो दूर की बात है.
मालूम हो कि जस्टिस यादव ने विहिप कार्यक्रम में कई विवादास्पद बयान दिए थे. ये कार्यक्रम इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पुस्तकालय हॉल के अंदर आयोजित किया गया था. इसमें जस्टिस यादव ने मुसलमानों के एक वर्ग को संदर्भित करने के लिए कठमुल्लाह शब्द का इस्तेमाल भी किया था, जिसे कुछ लोगों के अनुसार, मुसलमानों के लिए गाली के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
विहिप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ही शाखा है, जिसे मुसलमानों और ईसाईयों को निशाना बनाते देखा गया है. इस कार्यक्रम में जस्टिस यादव ने कहा था, ‘कानून बहुमत के अनुसार काम करता है. चाहे वह परिवार के संदर्भ में हो या समाज के संदर्भ में. केवल बहुसंख्यकों के कल्याण और खुशी को ही स्वीकार किया जाएगा.’
यह देखते हुए कि ऐसे मामलों में कार्रवाई शुरू करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 124 और 217 के तहत संसद के पास है. प्रमुख कैथोलिक संस्था ने कहा कि अगर सरकार इस मामले में विफल हो जाती है, तो विपक्ष का येप्राथमिक कर्तव्य है कि वह हस्तक्षेप करे.
सीबीसीआई ने कहा कि ये दुख की बात है कि सभी राजनीतिक दल इस गंभीर मुद्दे की ओर ध्यान आकर्षित करने में विफल रहे हैं. हालांकि संस्था ने उन सांसदों को आशा की किरण भी बताया, जिन्होंने जस्टिस यादव के खिलाफ निष्कासन की कार्यवाही शुरू करने की मांग की है. शीर्ष अदालत में भी जस्टिस यादव के खिलाफ जांच शुरू करने की मांग की गई है.
बिशप निकाय ने इस विषय पर सांसदों से अपनी राजनीतिक संबद्धता की परवाह किए बिना आगे बढ़ने और जस्टिस यादव के खिलाफ संवैधानिक कार्रवाई का सक्रिय समर्थन करने के लिए कदम उठाने का आह्वान किया, जिससे भविष्य में किसी ओर के द्वारा इसे दोहराया न जाएं.
सीबीसीआई द्वारा अपना प्रेस बयान जारी करने के बाद द वायर ने सूत्रों के हवाला से रिपोर्ट किया है कि संसद के दोनों सदनों में विपक्षी सांसद जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने के लिए नोटिस सौंपने की तैयारी कर रहे थे.
राज्यसभा में निर्दलीय सांसद कपिल सिब्बल के नेतृत्व में लाए नोटिस को आवश्यक 50 में से 40 सांसद अपना समर्थन दे चुके हैं, जबकि लोकसभा में नेशनल कांफ्रेंस के सांसद रुहुल्ला मेहदी द्वारा जारी नोटिस को अपेक्षित 100 में से 50 सांसदों का समर्थन मिला है.
सीबीसीआई ने अपने बयान के आखिर में बाबा साहेब बीआर आंबेडकर का भी हवाला दिया, जिन्होंने नवंबर 1949 में संविधान प्रस्तुत करते समय कहा था, ‘इतना तो तय है कि अगर पार्टियां धर्म को देश से ऊपर रखेंगी, तो हमारी आज़ादी दूसरी बार ख़तरे में पड़ जाएगी और शायद हमेशा के लिए खो जाएगी. इस स्थिति से हम सभी को दृढ़तापूर्वक सावधान रहना चाहिए. हमें अपने खून की आखिरी बूंद तक अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए दृढ़ संकल्पित होना चाहिए.’
ज्ञात हो कि अन्य संगठनों ने भी जस्टिस यादव को बर्खास्त कर उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की है. वकीलों और नागरिक अधिकार समूहों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना को पत्र लिखकर यादव के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई और उन्हें निलंबित करने की मांग की है. 10 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उसने मामले का संज्ञान लिया है.
न्यायिक जवाबदेही और सुधार अभियान (सीजेएआर) ने सीजेआई खन्ना को पत्र लिखकर इस मामले में एक समिति गठित कर ‘इन-हाउस जांच’ कराने का आग्रह किया है.
सीजेएआर के संयोजक और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने यह मांग की कि यादव के खिलाफ जांच पूरी होने तक उन्हें न्यायिक कार्य से वंचित रखा जाए.
भूषण ने कहा कि विहिप के कार्यक्रम में जस्टिस यादव की भागीदारी और उनके द्वारा दिया गया बयान संविधान की प्रस्तावना के साथ पढ़े जाने वाले अनुच्छेद 14, 21, 25 और 26 का घोर उल्लंघन है.
सीजेएआर के पत्र में भूषण ने लिखा, ‘जस्टिस यादव का भाषण भेदभावपूर्ण है और हमारे संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता और समानता के बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं. हाईकोर्ट के एक मौजूदा जज द्वारा एक सार्वजनिक कार्यक्रम में इस तरह के सांप्रदायिक बयान से न केवल धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं, बल्कि न्यायिक संस्थान की ईमानदारी और निष्पक्षता में आम जनता का विश्वास पूरी तरह से खत्म हो जाता है.’
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने भी सीजेआई खन्ना को पत्र लिखकर मांग की कि यादव से न्यायिक कार्य वापस ले लिया जाए. पीयूसीएल ने कहा कि ‘उनकी टिप्पणी संविधान में उनकी पूर्ण आस्था की कमी को दर्शाती है जो संवैधानिक नैतिकता का गंभीर उल्लंघन है.’
वकीलों के अखिल भारतीय संगठन, ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस ने भी मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर यादव के खिलाफ तत्काल अनुशासनात्मक कार्रवाई करने और उनके सभी प्रशासनिक और न्यायिक कार्यों को वापस लेने की मांग की है.