आईआईटी-बीएचयू: गैंगरेप के आरोपी सालभर बाद जेल से बाहर; पीड़िता ने कैंपस छोड़ा, हालात बदतर

पीड़ित छात्रा आरोपियों को जमानत मिलने के बाद कैंपस छोड़कर अपने घर चली गई हैं. उनके करीबियों का कहना है कि उन्हें कैंपस में डर और तनाव का सामना करना पड़ रहा था. उन्हें सुनवाई के लिए अदालत जाने में भी काफी दिक्कतें आ रही थीं. इस दौरान उन्होंने अपनी परीक्षाओं को लेकर भी बहुत संघर्ष किया है. उनके वकील ने अदालत से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेशी कराने का अनुरोध भी किया है.

आईआईटी बीएचयू. (फोटो साभार: आधिकारिक वेबसाइट)

नई दिल्ली: बीते साल नवंबर 2023 में देश के प्रतिष्ठित प्रौद्योगिकी संस्थान बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के आईआईटी बीएचयू के परिसर में एक छात्रा के साथ गैंगरेप की भयावह घटना सामने आई थी. इस वारदात ने देशभर के छात्रों-अभिभावकों को झकझोर कर रख दिया था, और शासन-प्रशासन के रवैये पर भी तमाम सवाल उठाए थे.

हाल ही में इस मामले के तीसरे आरोपी सक्षम पटेल को भी अदालत से जमानत मिल गई है, जिसके बाद एक साल के भीतर ही तीनों आरोपी जेल से बाहर है. अन्य दो आरोपियों कुणाल पांडे और अभिषेक चौहान को जुलाई में ही हाईकोर्ट ने जमानत दे दी थी. इन आरोपियों को सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के सोशल मीडिया सेल का सदस्य बताया जाता है और स्थानीय विधायक सौरभ श्रीवास्तव का भी करीबी माना जाता है.

मालूम हो कि पीड़ित छात्रा आरोपियों को जमानत मिलने के बाद कैंपस छोड़कर अपने घर चली गई हैं. उनके करीबियों का कहना है कि उन्हें कैंपस में डर और तनाव का सामना करना पड़ रहा था. उन्हें सुनवाई के लिए अदालत जाने में भी काफी दिक्कतें आ रही थीं. इस दौरान उन्होंने अपनी परीक्षाओं को लेकर भी बहुत संघर्ष किया है. उनके वकील ने अदालत से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेशी कराने का अनुरोध भी किया है.

ज्ञात हो कि इस मामले की गूंज देश ही नहीं विदेश में भी सुनने को मिली थी. विश्वविद्यालय के छात्रों ने कई दिनों तक आरोपियों की गिरफ्तारी को लेकर सड़कों पर प्रदर्शन किया था, तो वहीं पूर्व छात्रों ने सोशल मीडिया के माध्यम से कई कैंपन चलाए थे.

हालांकि, अब जब इस घटना को एक साल हो गए है, तो भी इसका हासिल शून्य ही नज़र आता है. सभी आरोपी जेल से बाहर हैं, विश्वविद्यालय में छात्राओं के साथ बदसलूकी और शोषण की घटनाएं जारी हैं, सुरक्षा व्यवस्था में कोई सुधार नहीं है, प्रशासन का रवैया इन घटनाओं के प्रति लगातार असंवेदनशील बना हुआ है और छात्रों की सबसे बड़ी मांग विश्वविद्यालय में जेंडर सेंसिटाइजेशन कमेटी अगेंस्ट सेक्सुअल हैरेसमेंट (जीएसकैश) को लागू करने पर स्थिति सालों से जस की तस बनी हुई है.

आरोपियों की गिरफ्तारी में महीनों की देरी और फिर न्यायपालिका द्वारा जमानत में जल्दी पर उठे सवाल

बीते सोमवार (9 दिसंबर) को इस संबंध में नागरिक समाज, छात्र संगठन और महिलावादी संगठनों द्वारा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया था, जिसमें इन आरोपियों के खिलाफ गंभीर धाराएं होने के बावजूद पहले इनकी गिरफ्तारी में महीनों की देरी और फिर न्यायपालिका द्वारा इनकी जमानत में जल्दी को लेकर कई सवाल उठाए गए. इसे कार्यपालिका और न्यायपालिका का गठजोड़ बताया गया.

बीएचयू की छात्रा और भगत सिंह स्टूडेंट मोर्चा की सदस्य आकांक्षा आजाद द वायर हिंदी को बताती हैं कि विश्वविद्यालय में छात्राओंं की सुरक्षा और यौन शोषण के लेकर पहले भी कई बड़े प्रदर्शन हुए, 2017 का ऐतिहासिक आंदोलन हुआ, लेकिन इन सब के बावजूद स्थिति जस की तस बनी रही. आज भी छात्राएं कैंपस में सुरक्षित नहीं है और प्रशासन को इसकी कोई चिंता नहीं है.

विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा और बीते साल आईआईटी गैंगरेप के खिलाफ आंंदोलन में शामिल होने के चलते निलंबन की सूची में शामिल इप्शिता कहती हैं कि उन्हें अपने निलंबन का कोई आधिकारिक नोटिस नहीं मिला. हालांकि बाकी लोगों के घर जो नोटिस गया है और विश्वविद्यालय के पास जिन छात्रों के निष्कासन की सूची है, उसमें उनका नाम भी शामिल है.

बता दें कि इप्शिता बीते साल बीएचयू से स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रही थीं और इस साल पास हो चुकी हैं. उन्होंने बताया कि बीते साल प्रदर्शन के लिए छात्रों को इस साल अक्टूबर के महीने में परीक्षाओं से पहले निलंबन नोटिस दिया गया है. ज्यादातर छात्रोंं को इस नोटिस की जानकारी उनके परिवार के माध्यम से मिली है, विश्वविद्यालय प्रशासन ने खुद उन्हें आधिकारिक तौर पर कुछ भी नहीं बताया है.

कुछ दिनों की सख्ती के बाद मामला ठंडे बस्ते में

इप्शिता आईआईटी बीएचयू की भी छात्रा रह चुकी हैं और बताती हैं कि इस गैंगरेप के बाद कुछ दिनों प्रशासन ने खूब सख्ती दिखाई थी. नए सीसीटीवी कैमरे लगाने से लेकर सुरक्षा के चाक-चौबंद इंतज़ाम को लेकर कई वायदे किए गए थे, लेकिन जैसे-जैसे ये मामला ठंडा पड़ता गया, सारे वादों धरे के धरे रह गए.

इप्शिता आगे बताती हैं कि कैंपस में आए दिन लड़कियों को बदसलूकी और छींटाकशी का सामना करना पड़ता है. वो कहती हैं, ‘अभी हफ्तेभर पहले ही कैंपस में दो छात्राओं से छेड़खानी की घटना सामने आई थी. एक को रिपोर्ट भी किया गया लेकिन इन सबको लेकर प्रशासन का पितृसत्तात्मक रवैया ही रहा है. वो कहते हैं, ‘बेटा इसमें हम क्या कर सकते हैं, आप लोग अपनी सुरक्षा खुद देखें. रात को बाहर न निकलें आदि.’

एक अन्य छात्रा कहती हैं, ‘जब भी कोई घटना सामने आती है, प्रशासन लड़कियों के हॉस्टल पर और पाबंदी लगा देता है. लड़कियों के निकलने और उनसे कौन मिलने आ रहा है, वो कहां जा रही हैं, इस पर नज़र रखी जाने लगती है, लेकिन जो विश्वविद्यालय के घोषित गुंडे हैं, प्रशासन उन पर कोई कार्रवाई न करता. गैंगरेप प्रदर्शन के दौरान भी एबीवीपी के छात्रों ने लड़कियों के साथ बदसलूकी की थी, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, उल्टा दूसरे छात्रों पर मामले दर्ज करवा दिए गए. हर बार प्रशासन लड़कियों के खिलाफ और अपराधियों के साथ खड़ा नज़र आता है.’

प्रदर्शन में शामिल 13 छात्रों को मिला निलंबन का नोटिस

विश्वविद्यालय के छात्र उमेश भी बीते साल गैंगरेप प्रदर्शन में शामिल थे, उनके परिवार को इस साल निलंबन का नोटिस अक्टूबर के महीने में मिला. इसके अलावा उन्हें एक और प्रदर्शन में शामिल होने के लिए भी निलंबन का नोटिस दे दिया गया, जिसके चलते उन्हें परीक्षा में बैठने से वंचित किया जा सके.

उमेश बताते हैं, ‘विश्वविद्यालय प्रशासन ने अन्य छात्रों की तुलना में मुझे तीन महीने निलंबन का नोटिस दिया था. मेरे खिलाफ कई पुराने मामले भी बताए गए थे, जो प्रशासन के खिलाफ छात्र प्रदर्शन से जुड़े हुए थे. एक हॉस्टल के मुद्दे पर हुए प्रदर्शन में तो प्रशासन ने हमारी मांगें भी मान ली थी. बावजूद इसके मुझे उसका भी दोषी बना दिया गया है. मैंने इसके खिलाफ अदालत का दरवाज़ा खटखटाया, तब जाकर मैं परीक्षा में बैठ पाया.’

उमेश कैंपस की सुरक्षा को लेकर कहते हैं कि यहां प्रशासन बदमाशों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करता, अभी भी कैंपस में कोई भी कहीं भी बेरोक-टोक आ-जा सकता है. करोड़ों का बजट होने के बावजूद सुनसान सड़कों पर लाइटें तक नहीं लगवाई जाती. सीसीटीवी कैमरे तो दूर की कौड़ी ही हैं. प्रशासन की कार्रवाई केवल उन छात्रों के खिलाफ देखने को मिलती है, जो छात्र हित की बात करते हैं.

चार से अधिक छात्र किसी पदाधिकारी से नहीं मिल सकते

एक अन्य छात्र बताते हैं, ‘विश्वविद्यालय प्रशासन का आदेश है कि किसी भी आधिकारी से मिलने छात्रों का समूह नहीं जा सकता. चार छात्रों से अधिक कहीं भी यहां तक की डिपार्टमेंट हेड से मिलने भी नहीं जा सकता, अगर इस आदेश को नहीं माना गया तो छात्रों के खिलाफ अनुशानहीनता की कार्रवाई की जाएगी.’

बीएचयू से स्नातक की पढ़ाई करने वाली छात्रा श्वेता बताती हैं, ‘कैंपस में लड़कियां शाम या रात को जब पुस्तकालय से भी हॉस्टल आती हैं, तो डर लगता है. मोटरसाइकिल पर लड़कें अक्सर घूमते रहते हैं, जो अनर्गल बातें बोलते हैं. गार्ड से शिकायत करो, तो वो उल्टा हमें ही कहते हैं कि जल्दी आ जाया करो. प्रशासन से शिकायत करो, तो भी अपनी पितृसत्तात्मक सोच ही दिखाते हैं और कहते हैं, तुम लड़कियां खुद समय से हॉस्टल चली जाया करो, कैंपस में पूरे बदन ढंकने वाले कपड़े पहना करो और कोई कुछ कहता है, तो पलट के जवाब न दिया करो, क्योंकि तुम्हारी सुरक्षा, तुम्हारे हाथ में ही है.’

बीते साल गैंगरेप की घटना को लेकर पुलिस कमिश्नर और विश्वविद्यालय प्रशासन से अखिल भारतीय जनवादी महिला संगठन के एक प्रतिनिधि मंडल ने मुलाकात की थी. इसमें मधु गर्ग भी शामिल थीं.

एक साल बाद भी स्थिति जस की तस

मधु गर्ग द वायर हिंदी को बताती हैं, ‘हम एक साल बाद भी इसी मुद्दे पर प्रेस कॉन्फ्रेस करने को मजबूर हैं, क्योंकि शासन-प्रशासन सब महिला सुरक्षा की बातें तो करते हैं, लेकिन जब बात वाकई सुरक्षा की आती है, तो सब आरोपियों के साथ खड़े दिखाई देते हैं. इस मामले में भी जब आरोपियों की रिहाई हुई है, तो भाजपा नेताओं द्वारा उनका स्वागत किया गया है. शुरुआत में आरोपियों को यहां से निकालकर मध्य प्रदेश चुनाव में प्रचार के लिए लगा दिया गया, जब चौतरफा दबाव बढ़ा, तो उन्हें 31 दिसंबर, दो महीने बाद गिरफ्तार किया गया और एक साल भी नहीं हुए, सब जमानत पर बाहर आ गए.’

मधु आगे कहती हैं, ‘इस सरकार ने शोषण की घटनाओं को राजनीतिक चश्में से देखने का जो चलन शुरू किया है, वो बहुत खतरनाक और निराशाजनक है. अगर आरोपी-अपराधी उनके पार्टी से संबंधित हों, जैसे ब्रजभूषण शरण सिंह, चिन्मयानंद, कुलदीप सेंगर या बीएचयू मामले के तीन आरोपी तो वे आसानी से कानून के हत्थे नहीं चढ़ेंगे. उन्हें बेल भी मिल जाएगी. कुलदीप सेंगर को मेडिकल ग्राउंड पर बेल मिल गई है, लेकिन बाकी राजनीतिक बंदियों को सरकार जेल में मरने पर मजबूर कर रही है. कई आरोपियों के घरों पर जल्दबाज़ी में बुलडोजर तक चला दिए जाते हैं, लेकिन भाजपा से संबंधित लोगों को संरक्षित किया जाता है.’

बीएचयू गैंगरेप मामले को करीब से कवर करने वाले स्थानीय पत्रकार विजय विनीत द वायर को बताते हैं कि इस मामले में सारी बातें स्पष्ट थीं. पुलिस के पास सीसीटीवी से लेकर तमाम गवाह और सबूत थे, लेकिन पुलिस ने जानबूझकर गिरफ्तारी में दो महीने की देरी की.

विजय विनीत के अनुसार, ‘पीड़िता दूसरे राज्य की रहने वाली हैं और अनुसूचित जाति से संबंध रखती हैं. इस मामले में कार्रवाई और तेज़ होनी चाहिए थी, लेकिन सत्ता पक्ष और इसके नेताओं के दबाव के चलते मामला दो महीने लटका रहा. फिर मामले को दबाना, साक्ष्यों को सही से न पेश करना, कमजोर पैरवी आदि भी आरोपियों को जमानत मिलने का कारण रही. पुलिस वारदात में शामिल तमंचे और पीड़ित लड़की की वीडियो बनाने के लिए इस्तेमाल किए गे फोन को लेकर भी खामोश है, जो इस मामले में सबसे अहम सबूत हैं.’

पीड़िता को अब तक सुनवाई के दौरान भी खासी समस्याएं आईं

विजय विनीत बताते हैं कि पीड़िता को अब तक सुनवाई के दौरान भी खासी समस्याएं झेलनी पड़ी हैं, छह बार की सुनवाई में पांच बार जज ही नहीं बैठें, उन्हें धमकी मिलती रहती हैं. सत्तापक्ष के कई नेता इस मामले पर बारीकी से नज़र बनाए हुए हैं. पीड़िता को मजबूरन कैंपस ही छोड़ना पड़ गया.

विजय विनीत इस बात को भी साफ शब्दों में कहते हैं कि विश्वविद्यालय का प्रशासन महिला विरोधी है और उसने बदमाशों को कैंपस में कुछ भी करने की खुली छूट दे रखी है. पूरा कैंपस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गढ़ बना दिया गया है. बीएचयू के अलावा जिले के विद्यापीठ और संस्कृत विद्यालय का भी यही हाल है. यहां प्रवचन और यज्ञ के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, छात्राओं को कैंपस में कैसे रहना है इसकी नसीहत दी जाती है और अगर कोई मामला तूल पकड़ ले तो एक-दो दिन सख्ती दिखाकर फिर पुराने रवैए पर लौट जाया जाता है.

गौरतलब है कि विश्वविद्यालय के छात्रों का कहना है कि कैंपस में आंतरिक सुरक्षा समिति (आईसीसी) का हाल भी बेहाल है. इसके सदस्य पितृसत्तात्मक सोच रखते हैं. किसी भी मामले को लेकर पीड़ित को ही पहले प्रताड़ित किया जाता है. एक तरह से ये ‘मोरल पुलिसिंग’ का अड्डा बन गया है.

मालूम हो कि बीएचयू में 2017 में हुए लड़कियों के ऐतिहासिक आंदोलन की सबसे बड़ी मांग विश्वविद्यालय में जेंडर सेंसिटाइजेशन कमेटी अगेंस्ट सेक्सुअल हैरेसमेंट (जीएसकैश) को लागू करना था. इसके बाद भी कैंपस में यौन शोषण को लेकर हुए कई बड़े प्रदर्शनों में छात्रों ने सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम के साथ ही जीएसकैश की मांग रखी लेकिन प्रशासन ने आज भी करीब सात साल बीत जाने के बाद भी इस पर कोई सुनवाई नहीं की.

इसके उलट लड़कियों पर हॉस्टल में तमाम पाबंदियां लगाने की कोशिश की गईं. छात्रों को प्रदर्शन में भाग न लेने का नोटिस निकाल दिया गया और बात-बात पर लड़कियों को कैंपस के अंदर ही ‘कैरेक्टर-सर्टिफिकेट’ बांटे जाने लगे. साफ है फिलहाल, कैंपस का माहौल छात्राओं के अनुकूल तो बिल्कुल नहीं नज़र आता है.

(इस संबंध ने द वायर ने बीएचयू प्रशासन से उनका पक्ष ईमेल के माध्यम से जानने की कोशिश की. लेकिन खबर लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं मिला है. जवाब आते ही स्टोरी अपडेट की जाएगी.)