नई दिल्ली: बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने सुप्रीम कोर्ट में नियमों का हवाला देकर बताया है कि वकील वकालत के अलावा किसी और पेशे में संलिप्त नहीं हो सकते, विशेषकर पत्रकारिता में.
लेकिन बीसीआई को अचानक ये बताने की ज़रूरत क्यों पड़ी क्योंकि जिस याचिका पर सुनवाई के दौरान ये जानकारी कोर्ट को दी गई, उसका सीधे तौर पर इस स्पष्टीकरण से कोई संबंध ही नहीं है.
याचिका भाजपा के पूर्व सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर मानहानि का मामला चलाने को लेकर दाखिल की गई है.
क्या है पूरा मामला?
सितंबर 2022 की बात है. बृजभूषण शरण सिंह ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को एक पत्र लिखा था, जिसमें सिंह ने मोहम्मद कामरान नाम के व्यक्ति को विभिन्न मामलों का ‘साजिशकर्ता’ और ‘चोर’ बताया था.
यह पत्र सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था. अखबारों में भी प्रसारित हुआ था. इसके बाद कामरान ने इसे मानहानि मानते हुए अदालती कार्यवाही शुरू की, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मानहानि मामले को रद्द कर दिया, जिसके खिलाफ कामरान ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है.
कामरान वकील और स्वतंत्र पत्रकार दोनों के रूप में पहचाने जाते हैं. उनके द्वारा भाजपा के पूर्व सांसद पर मानहानि का मामला चलाए जाने को लेकर दायर की गई याचिका में अब बीसीआई की एंट्री हो चुकी है.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सोमवार (16 दिसंबर) को बीसीआई ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया कि कोई अधिवक्ता वकालत के साथ-साथ फुल टाइम या पार्ट टाइम पत्रकार के रूप में काम नहीं कर सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में इन कानूनी पहलुओं को शामिल कर लिया है. कानूनी मुद्दे पर विचार करने के बाद जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस मनमोहन की पीठ 3 फरवरी, 2025 को याचिका पर सुनवाई करेगी.
बीसीआई का रुख और नियमों का संदर्भ
बीसीआई ने अपने हलफनामे में स्पष्ट किया कि पूर्णकालिक (फुल-टाइम) पत्रकारिता वकीलों के लिए स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित है. अंशकालिक (पार्ट-टाइम) पत्रकारिता के लिए भी आमतौर पर छूट नहीं है. हालांकि, इसका एक अपवाद है: अगर पत्रकारिता का काम वकालत से संबंधित हो और कानूनी पेशे के ज्ञान को बढ़ावा देने वाला हो, तो सीमित रूप में यह स्वीकार्य है.
बीसीआई ने यह भी कहा कि पार्ट टाइम पत्रकारिता में शोध लेख, विचार या संपादकीय योगदान शामिल हो सकते हैं, बशर्ते इनका संबंध कानूनी पेशे से हो.
मुख्य शर्तें और प्रतिबंध
बीसीआई ने अपने बयान में यह स्पष्ट किया कि वकील की किसी भी तरह की पत्रकारिता उनके प्राथमिक पेशेवर दायित्वों के खिलाफ नहीं होनी चाहिए. कानूनी पेशे की गरिमा और स्वतंत्रता से समझौता नहीं होनी चाहिए. वकीलों के लिए किसी भी प्रकार का दोहरा पेशा स्वीकार्य नहीं है.
बीसीआई ने यह भी कहा कि नियम 51 के तहत वकीलों को कुछ हद तक पत्रकारिता में योगदान करने की अनुमति है, लेकिन यह सीमित और केवल कानूनी विषयों तक ही होना चाहिए.
कोर्ट का क्या कहना है?
बीसीआई ने नियम 49 का हवाला देते हुए कहा कि किसी भी वकील को अन्य पेशे में संलग्न होने की अनुमति नहीं है, खासकर पत्रकारिता में. पीठ ने इसे रिकॉर्ड पर लिया है.
पीठ ने कहा, ‘हमने बीसीआई के वकील की बात सुनी है, जिन्होंने कहा है कि निर्धारित नियमों के अनुसार, किसी वकील को पार्ट-टाइम या फुल-टाइम पत्रकारिता करने की अनुमति नहीं दी जा सकती. याचिकाकर्ता ने हलफनामा दायर कर कहा है कि वह अब पत्रकार के रूप में काम नहीं कर रहे हैं, केवल लॉ प्रैक्टिस कर रहे हैं.’
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के वकील ने बीसीआई द्वारा अपनाए गए रुख की सत्यता को स्वीकार कर लिया है.