नई दिल्ली: मंगलवार (17 दिसंबर) को लोकसभा में ‘एक देश, एक चुनाव’ के लिए पेश किए गए विधेयक का विपक्षी दलों ने जोरदार विरोध किया. 269 सांसदों ने समर्थन किया, जबकि 198 सांसदों ने इसका विरोध किया.
इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और संसदीय मामलों के मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने विधेयक को संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) को भेजने का प्रस्ताव रखा.
क्या है एक देश, एक चुनाव बिल?
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में दो विधेयक पेश किए थे- एक संविधान संशोधन विधेयक, जो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को एक साथ करने के लिए है, और दूसरा विधेयक, जो केंद्र शासित प्रदेशों और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के लिए प्रासंगिक अधिनियमों में संशोधन करने के लिए है, ताकि वहां भी एक साथ चुनाव कराए जा सकें.
‘एक देश, एक चुनाव’ के लिए संविधान में 129वां संशोधन कर इसके तीन अनुच्छेदों में संशोधन और एक नया अनुच्छेद 82ए जोड़ने का प्रस्ताव है. इस संशोधन के मुताबिक, राष्ट्रपति को लोकसभा के पहले सत्र के बाद एक ‘नियुक्त तिथि’ की अधिसूचना जारी करनी होगी, और इस तिथि के बाद चुनी गई किसी भी राज्य विधान सभा का कार्यकाल लोकसभा के समापन के साथ समाप्त हो जाएगा.
इन प्रस्तावित संशोधनों की सिफारिश पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति ने की है, जिसने इस वर्ष मार्च में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी.
विपक्ष ने किया विरोध
कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने इस बिल कड़ा विरोध करते हुए कहा कि भाजपा के पास संविधान संशोधन के लिए आवश्यक दो तिहाई बहुमत नहीं है. उन्होंने इसे संविधान के संघीय ढांचे का उल्लंघन बताते हुए सवाल उठाया कि यदि केंद्र की सरकार गिर जाए तो राज्य सरकार क्यों गिरनी चाहिए?
उन्होंने यह भी कहा कि यह पूरी क़वायद ही गलत है और आज के मतदान ने यह प्रदर्शित कर दिया है कि भाजपा के पास संवैधानिक संशोधन पारित करने के लिए आवश्यक दो-तिहाई बहुमत नहीं है.
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए चेतावनी दी कि इससे लोकतंत्र और जवाबदेही को खतरा है.
क्या है संसदीय प्रक्रिया?
विपक्षी सांसदों ने यह दावा किया कि सरकार को संविधान संशोधन बिल को पेश करने के लिए दो तिहाई बहुमत नहीं मिला, लेकिन पूर्व लोकसभा महासचिव पीडीटी आचार्य ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि संविधान संशोधन बिल के प्रस्ताव के दौरान विशेष बहुमत (जिसका अर्थ है सदन की कुल सदस्यता के 50% से अधिक का बहुमत और सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले दो तिहाई सदस्यों का बहुमत.) की आवश्यकता नहीं होती.
उन्होंने जोड़ा कि संसद के नियमों के अनुसार संविधान संशोधन बिल को पेश करने और समिति को भेजने के लिए केवल साधारण बहुमत की आवश्यकता होती है, विशेष बहुमत केवल बाद के चरणों में आवश्यक होता है.
संविधान पर बहस जारी
राज्यसभा में संविधान पर बहस जारी रही, जिसमें भाजपा नेता जेपी नड्डा ने विपक्ष पर हमला किया और कहा कि डॉ. भीमराव आंबेडकर ने संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्द का उपयोग करने का विरोध किया था. उन्होंने जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के निर्णय की सराहना की और कहा कि इससे संविधान मजबूत हुआ है.