सरकार ने कहा कि सेप्टिक टैंक सफाई जाति-आधारित काम नहीं, 92% सफाईकर्मी दलित व ओबीसी

केंद्रीय सामाजिक न्याय राज्य मंत्री रामदास अठावले ने संसद में कहा कि सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई जाति-आधारित काम नहीं है. हालांकि, संसद में ही पेश सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 33 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के 54,574 श्रमिकों में 67.9% सफाईकर्मी अनुसूचित जाति से हैं.

सीवर में मौतों के खिलाफ हुआ एक प्रदर्शन. (फाइल फोटो साभार: फेसबुक/@ska.safaikaramchariandolan)

नई दिल्ली: संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान केंद्र सरकार ने बताया कि सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई जाति-आधारित काम नहीं है, बल्कि ये ‘व्यवसाय-आधारित गतिविधि’ है.

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्रालय ने भारत के शहरों और कस्बों में सीवर और सेप्टिक टैंक श्रमिकों (एसएसडब्ल्यू) के अपने पहले सर्वेक्षण का हवाला देते हुए मंगलवार (18 दिसंबर) को संसद में यह विवरण पेश किया.

केंद्रीय सामाजिक न्याय राज्य मंत्री रामदास अठावले ने कांग्रेस सांसद कुलदीप इंदौरा के एक सवाल के जवाब में कहा कि सरकार के नमस्ते कार्यक्रम (NAMASTE programme) के तहत अब तक 33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 54,574 एसएसडब्ल्यू की प्रोफाइलिंग और सत्यापन किया गया है, जिसमें से 67.91% (37,060) सफाईकर्मी अनुसूचित जाति, 15.73% (8,587) ओबीसी समुदायों से हैं. इसके अलावा 8.31% (4,536) अनुसूचित जनजाति समुदायों से और 8.05% (4,391) सामान्य श्रेणी से हैं.

अठावले ने संसद में कहा, ‘सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई जाति आधारित नहीं बल्कि व्यवसाय आधारित गतिविधि है.’ हालांकि, डेटा से पता चलता है कि देश भर में लगभग 92% एसएसडब्ल्यू एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों से हैं.

संसद में पेश सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2019 और 2023 के बीच देश भर में सीवर और सेप्टिक टैंक की खतरनाक सफाई से कम से कम 377 लोगों की मौत हो गई.

केंद्र सरकार का कहना है कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा ने सीवरों और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई के मुद्दे को समाप्त कर दिया है, और इस पर ध्यान देने की जरूरत है. यह तर्क एक तकनीकी अंतर के आधार पर यह अंतर भेद बताता है कि मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार के निषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम में मैनुअल स्कैवेंजिंग और खतरनाक सफाई को कैसे परिभाषित किया गया है.

गौरतलब है कि 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से प्राप्त राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (एनसीएसके) के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 1993 के बाद से सीवर और सेप्टिक टैंक से होने वाली मौतों के 1,248 मामलों में से इस साल मार्च तक 1,116 मामलों में मुआवज़े का भुगतान किया गया है. 81 मामलों में भुगतान अभी भी लंबित है, जबकि 51 मामले बंद कर दिए गए हैं.

1993 के बाद के आंकड़ों से पता चलता है कि सीवर और सेप्टिक टैंक में होने वाली मौतों के सबसे अधिक 256 मामले तमिलनाडु में सामने आए. इसके बाद गुजरात (204), उत्तर प्रदेश (131), हरियाणा (115) और दिल्ली (112) का नंबर आता है. सीवर से होने वाली मौतों के सबसे कम मामले छत्तीसगढ़ (1) में दर्ज किए गए हैं, इसके बाद त्रिपुरा और ओडिशा में 2-2 मामले, दादर और नगर हवेली (3) और झारखंड (4) आते हैं.

अप्रैल 2023 से इस साल मार्च तक के 58 मामलों में से सबसे ज्यादा मामले तमिलनाडु (11) से हैं, इसके बाद महाराष्ट्र और राजस्थान (11-11 मामले), और गुजरात (8) तथा पंजाब (6) का नंबर आता है.

आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि 1993 के बाद से हुई 1,247 मौतों में से 456 मामले 2018 के बाद दर्ज किए गए हैं.

ज्ञात हो कि साल 2014 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, सीवर/सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान किसी कर्मचारी की मौत होने पर पीड़ित परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाना था. अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने सीवर में मौत के मामलों में मुआवजा राशि बढ़ाकर 30 लाख रुपये कर दी थी. पिछले वर्ष 94 मामलों में मुआवजा दिया गया था.

मालूम हो कि देश में मैला ढोने की प्रथा प्रतिबंधित है. मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में भेजना पूरी तरह से प्रतिबंधित है. अगर किसी विषम परिस्थिति में सफाईकर्मी को सीवर के अंदर भेजा जाता है तो इसके लिए 27 तरह के नियमों का पालन करना होता है. हालांकि, इन नियमों के लगातार उल्लंघन के चलते आए दिन सीवर सफाई के दौरान श्रमिकों की जान जाती है.