1993 से अब तक सीवर में हुईं 1,248 मौतों में से 81 मामलों में मुआवज़ा अभी भी लंबित है

राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के अनुसार, 1993 के बाद से सीवर और सेप्टिक टैंक से होने वाली मौतों के 1,248 मामलों में से इस साल मार्च तक 1,116 मामलों में मुआवज़े का भुगतान किया गया है. 81 मामलों में भुगतान अभी भी लंबित है, जबकि 51 मामले बंद कर दिए गए हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो: अर्पिता सिंह और मयंक चावला)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, 1993 के बाद से सीवर और सेप्टिक टैंक से होने वाली मौतों के 1,248 मामलों में से इस साल मार्च तक 1,116 मामलों में मुआवजे का भुगतान किया गया है. हालांकि, 81 मामलों में मुआवजे का भुगतान अभी भी लंबित है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से प्राप्त राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (एनसीएसके) के पास उपलब्ध ताजा आंकड़ों के अनुसार, इन मौतों में से 58 मामले अप्रैल 2023 से इस साल मार्च तक के हैं.

आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि राज्यों द्वारा 51 मामले बंद कर दिए गए हैं क्योंकि मृत व्यक्तियों के कानूनी उत्तराधिकारी नहीं मिल सके.

एनसीएसके अधिकारी इस बात पर जोर देते हैं कि यह डेटा आयोग को राज्यों से प्राप्त जानकारी, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया रिपोर्टों और सीधे प्राप्त शिकायतों पर आधारित है. इसलिए यह बदलता रहता है और सूचना प्राप्त होने पर अपडेट किया जाता है.

1993 के बाद के आंकड़ों से पता चलता है कि सीवर और सेप्टिक टैंक में होने वाली मौतों के सबसे अधिक 256 मामले तमिलनाडु में सामने आए. इसके बाद गुजरात (204), उत्तर प्रदेश (131), हरियाणा (115) और दिल्ली (112) का नंबर आता है. सीवर से होने वाली मौतों के सबसे कम मामले छत्तीसगढ़ (1) में दर्ज किए गए हैं, इसके बाद त्रिपुरा और ओडिशा में 2-2 मामले, दादर और नगर हवेली (3) और झारखंड (4) आते हैं.

अप्रैल 2023 से इस साल मार्च तक के 58 मामलों में से सबसे ज्यादा मामले तमिलनाडु (11) से हैं, इसके बाद महाराष्ट्र और राजस्थान (11-11 मामले), और गुजरात (8) तथा पंजाब (6) का नंबर आता है.

आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि 1993 के बाद से हुई 1,247 मौतों में से 456 मामले 2018 के बाद दर्ज किए गए हैं.

साल 2014 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, सीवर/सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान किसी कर्मचारी की मौत होने पर पीड़ित परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाना था. अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने सीवर में मौत के मामलों में मुआवजा राशि बढ़ाकर 30 लाख रुपये कर दी थी. पिछले वर्ष 94 मामलों में मुआवजा दिया गया था.

एनसीएसके अधिकारियों के अनुसार, मुआवजा जारी करने में तेजी लाने के लिए वे राज्यों के मुख्य सचिवों को त्रैमासिक रिमाइंडर भेजते हैं और जिला अधिकारियों को मासिक रिमाइंडर भेजते हैं ताकि मुआवजे का भुगतान सुनिश्चित किया जा सके और अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत की जा सके.

एनसीएसके के अध्यक्ष एन वेंकटेशन ने कहा, ‘यह सुनिश्चित करने के लिए कि पैसा मृतक के परिजनों तक पहुंचे, मैं जिला अधिकारियों से लगातार संपर्क करता रहता हूं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुआवजा पत्नी या बच्चों के नाम पर फिक्स्ड डिपॉजिट कर रखा जाए और यदि व्यक्ति अविवाहित था तो माता-पिता के नाम रखा जाए.’

उन्होंने आगे कहा कि यह देखा गया है कि राज्य स्तर पर कुछ मामलों में मुआवजे के भुगतान में देरी का एक कारण मामलों में धीमी जांच है, जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु के कारण और परिस्थितियों को स्थापित करने में देरी होती है.

आयोग ने राज्यों से यह भी कहा है कि जिन मामलों में कानूनी उत्तराधिकारियों का पता नहीं चल पा रहा है, उन मामलों में एक स्थानीय और एक राष्ट्रीय अखबार में कम से कम चार बार विज्ञापन दिया जाए.

मालूम हो कि देश में मैला ढोने की प्रथा प्रतिबंधित है. मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में भेजना पूरी तरह से प्रतिबंधित है. अगर किसी विषम परिस्थिति में सफाईकर्मी को सीवर के अंदर भेजा जाता है तो इसके लिए 27 तरह के नियमों का पालन करना होता है. हालांकि इन नियमों के लगातार उल्लंघन के चलते आए दिन सीवर सफाई के दौरान श्रमिकों की जान जाती है.

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