नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मणिपुर, नगालैंड और मिजोरम में संरक्षित क्षेत्र व्यवस्था (पीएआर-Protected Area Regime) को फिर से लागू कर दिया है, ताकि पड़ोसी देशों से आने वाले लोगों के कारण सुरक्षा संबंधी बढ़ती चिंताओं के बीच विदेशियों की आवाजाही पर नजर रखी जा सके. मणिपुर सरकार ने बुधवार को यह जानकारी दी.
अब से इन तीन पूर्वोत्तर राज्यों में आने वाले विदेशियों को सरकार से पूर्व अनुमति और विशेष परमिट लेना होगा. ज्ञात हो कि तकरीबन 14 साल के अंतराल के बाद यह छूट वापस ले ली गई है.
रिपोर्ट के अनुसार, 2011 में तत्कालीन यूपीए II सरकार के तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पूर्वोत्तर राज्यों में पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मणिपुर, नगालैंड और मिजोरम से प्रोटेक्टेड एरिया परमिट (पीएपी) को खत्म कर दिया था.
पूर्वोत्तर के कुछ क्षेत्रों में जाने के लिए विदेशी नागरिक के पास पीएपी होना आवश्यक है, परमिट की अवधि आम तौर पर 10 दिन होती है जिसे बढ़ाया जा सकता है.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, मंत्रालय के दिशानिर्देशों में कहा गया कि किसी विदेशी को संरक्षित क्षेत्रों में जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी, जब तक कि यात्रा को उचित ठहराने के लिए असाधारण कारण न हों.
मंगलवार को मंत्रालय ने मणिपुर, मिजोरम और नगालैंड के मुख्य सचिवों को विदेशी (संरक्षित क्षेत्र) आदेश, 1958 के तहत पीएआर के लिए बदले गए मानदंडों के बारे में लिखा. पत्र में कहा गया है कि मणिपुर, मिजोरम और नगालैंड को पीएआर के तहत दी गई छूट को तत्काल प्रभाव से वापस ले लिया गया है. और अब से इन राज्यों के सभी क्षेत्र फिर से पीएआर के अंतर्गत आ जाएंगे.
म्यांमार की सीमा से लगे तीन राज्यों में 2010 में पीएआर में एक साल की ढील दी गई थी और बाद में आदेश की अवधि को पांच साल के लिए बढ़ा दिया गया था. एक अधिकारी ने बताया कि ताजा पीएआर आदेश 16 दिसंबर, 2022 को जारी किया गया था और यह दिसंबर 2027 तक लागू रहेगा.
मणिपुर सरकार ने एक प्रेस बयान में कहा कि तीनों राज्यों में पीएआर को फिर से लागू कर दिया गया है. बयान में कहा गया, ‘इसके फिर से लागू होने से मणिपुर में आने वाले विदेशियों की आवाजाही पर कड़ी निगरानी रखी जाएगी और उन्हें विदेशी (संरक्षित क्षेत्र) आदेश, 1958 के अनुसार आवश्यक संरक्षित क्षेत्र परमिट (पीएपी) प्राप्त करना होगा.’
‘गंभीर संदेह’
बयान में कहा गया है कि मणिपुर में ‘कुकी-ज़ो काउंसिल’ नामक कोई संगठन मौजूद नहीं है और दावा किया गया है कि इस समूह की उत्पत्ति और प्रामाणिकता अत्यधिक संदिग्ध है.
इसमें कहा गया है, ‘मणिपुर में मुख्यालय के रूप में लमका नाम का कोई जिला नहीं है. इससे ऐसे संगठनों के बाहरी मूल के बारे में मजबूत संदेह पैदा होता है जो कानूनी और प्रशासनिक ढांचे से बाहर काम करते दिखते हैं.’
उल्लेखनीय है कि जातीय हिंसा शुरू होने के बाद से एक वर्ग द्वारा चूड़ाचांदपुर को लमका और कांगपोकपी को कांगुई के रूप में संबोधित किया गया है, जिसे लेकर बीरेन सिंह सर्कार पहले भी विरोध जता चुकी है.
राज्य सरकार ने राष्ट्रीय और स्थानीय मीडिया घरानों से अनुरोध किया कि वे अनधिकृत संगठनों या व्यक्तियों की ऐसी प्रेस विज्ञप्तियों को प्रचारित न करें. इसने केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियों से भी अपील की कि वे असत्यापित संगठनों के ऐसे दावों को नज़रअंदाज़ करें.
कुकी-जो समुदाय के सदस्यों वाले नए समूह ने मंगलवार को मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को चेतावनी दी थी कि वह नगा बहुल क्षेत्र सेनापति जिले में एक महोत्सव का उद्घाटन करने के लिए कुकी बहुल कांगपोकपी से होकर सड़क मार्ग से यात्रा न करें.
बयान में आगे कहा गया कि पुलिस इस मामले की सक्रियता से जांच कर रही है और इस तरह की भ्रामक गतिविधियों के पीछे की वास्तविक प्रकृति और मंशा का पता लगाने के लिए प्राथमिकी दर्ज की जाएगी.
बयान में कहा गया है, ‘मणिपुर के लोगों से सावधानी बरतने और संदिग्ध मूल के संगठनों के बयानों या दावों पर ध्यान न देने का आग्रह किया जाता है, जो भ्रम और अशांति पैदा करने के स्पष्ट इरादे से हाल ही में सामने आए हैं.’
मालूम हो कि मणिपुर 3 मई 2023 से आदिवासी कुकी-ज़ो समुदायों और मेईतेई समुदाय के बीच जातीय हिंसा से प्रभावित है. जारी हिंसा में 250 से ज़्यादा लोग मारे गए हैं और 60,000 से ज़्यादा लोग अपने घरों से विस्थापित हुए हैं.