येदियुरप्पा के ख़िलाफ़ पॉक्सो मामले को गवाहों के बयान के आधार पर रद्द नहीं कर सकते: हाईकोर्ट

कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता बीएस येदियुरप्पा के खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज पीड़िता के बयान को जांच अधिकारियों द्वारा दर्ज गवाहों के बयानों से अधिक महत्व दिया जाता है.

कर्नाटक हाईकोर्ट. (फोटो साभार: Wikimedia Commons/Kuskela CC BY 3.0)

नई दिल्ली: कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता बीएस येदियुरप्पा के खिलाफ एक नाबालिग लड़की से कथित यौन शोषण के मामले में बुधवार (18 दिसंबर) को कर्नाटक हाईकोर्ट ने गवाहों के बयान के आधार पर केस की कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया.

रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने कहा कि येदियुरप्पा के खिलाफ पॉक्सो एक्ट (बच्चों को यौन अपराधों से बचाने और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए बना कानून) के तहत मामला दर्ज किया गया है, और ये केवल उन गवाहों के बयानों के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता, जो कथित घटना में पीड़ित के बयान से असहमत हैं.

मालूम हो कि जस्टिस एम नागप्रसन्ना की पीठ कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी. येदियुरप्पा की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील सीवी नागेश ने न्यायालय को बताया कि मामले में कम से कम ‘आधा दर्जन गवाहों’ ने जांच एजेंसी को बताया है कि कथित घटना के दिन ‘कुछ भी’ नहीं हुआ था. बता दें कि गवाहों के बयान सीआरपीसी की धारा 161 के तहत जांच अधिकारी के सामने दर्ज की जाती है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस एम. नागाप्रसन्ना ने कहा, ‘सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत दर्ज बयान के आधार पर कार्यवाही को रद्द करना संभव नहीं है, ऐसा मेरा प्रथम दृष्टया विचार है. मुझे एक फैसला दिखाएं, जहां कहा गया हो कि धारा 161 और 164 के तहत दर्ज बयानों पर भरोसा करते हुए पूरी कार्यवाही को रद्द किया जा सकता है.’

मालूम हो कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत पीड़िता का बयान मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया जाता है, जबकि गवाहों के बयान सीआरपीसी की धारा 161 के तहत जांच निकायों द्वारा दर्ज किए जाते हैं.

जस्टिस नागप्रसन्ना ने आगे कहा, ‘यह पॉक्सो के तहत दर्ज मामला है. गवाहों का कहना कि पीड़िता को कमरे के अंदर नहीं ले जाया गया, क्या उनसे जिरह नहीं की जानी चाहिए? पीड़िता से भी जिरह की जानी चाहिए. यदि जांच न की जाए, तो इनमें से कोई भी बयान सच बन जाता है. क्या इन बयानों का ट्रायल नहीं होना चाहिए. आप कैसे कह सकते हैं कि पीड़िता का बयान झूठा है?’

अदालत ने कहा, ‘धारा 161 के बयानों पर विश्वास नहीं किया जाता है क्योंकि वे किन परिस्थितियों में लिए गए हैं, आप नहीं जानते. हालांकि, धारा 164 के दर्ज बयान का अधिक महत्व है क्योंकि यह एक मजिस्ट्रेट के सामने लिया गया होता है. आपराधिक कार्यवाही में मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज पीड़ित के बयान को जांच अधिकारियों द्वारा दर्ज गवाहों के बयानों से अधिक महत्व दिया जाता है.’

न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी भी बयान को तब तक सत्य नहीं माना जा सकता, जब तक कि मुकदमे के दौरान अदालत द्वारा उसकी जांच न की जाए. न्यायालय ने ये भी सवाल उठाया कि वह धारा 161 और 164 के बयानों के आधार पर पूरी कार्यवाही को रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कैसे कर सकता है.

गौरतलब है कि यह मामला 17 वर्षीय लड़की की मां द्वारा लगाए गए आरोपों से संबंधित है, जिन्होंने आरोप लगाया था कि पूर्व मुख्यमंत्री ने उनकी बेटी का यौन उत्पीड़न किया था जब वे इस फरवरी में मदद मांगने के लिए उनके बेंगलुरु आवास पर गए थे. येदियुरप्पा के खिलाफ 14 मार्च को सदाशिवनगर पुलिस स्टेशन में पोक्सो अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354 ए (यौन उत्पीड़न) के तहत शिकायत भी दर्ज की गई थी.