नई दिल्ली: पिछले महीने मणिपुर के जिरीबाम में मेईतेई समुदाय की छह महिलाओं और बच्चों के अपहरण और हत्या की त्वरित और पारदर्शी जांच के लिए मणिपुर उच्च न्यायालय में दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) का जवाब देते हुए गृह मंत्रालय (एमएचए) ने अब कहा है कि ये कानून और व्यवस्था बनाए रखने के मामले हैं, जो राज्य सरकार के अधीन आते हैं.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्रीय जांच एजेंसी द्वारा जारी एक प्रेस बयान के अनुसार, यह घटना तब हुई है जब गृह मंत्रालय के आदेश पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने अपहरण और हत्या के मामले को अपने हाथ में ले लिया है.
गृह मंत्रालय ने यह रुख इस महीने की शुरुआत में मणिपुर उच्च न्यायालय में दायर एक हलफनामे में सामने आया है, जो नागरिक समाज संगठन ‘उरीपोक अपुनबा लुप’ के पदाधिकारियों द्वारा दायर जनहित याचिका के जवाब में है. उरीपोक क्षेत्र के दर्जनों स्थानीय क्लबों का एक समूह है.
28 नवंबर को दायर जनहित याचिका में याचिकाकर्ताओं ने मामले के विस्तृत रिकॉर्ड की मांग की तथा इस अपराध में शामिल लोगों को गिरफ्तार करने तथा मामले की शीघ्र एवं समयबद्ध जांच के निर्देश देने का अनुरोध किया था.
याचिकाकर्ताओं ने मामले की जांच के लिए एक स्वतंत्र जांच समिति या आयोग गठित करने का भी सुझाव दिया तथा इस हमले में मारे गए लोगों के परिवार के सदस्यों को मुआवजा देने के निर्देश देने का अनुरोध किया, साथ ही कहा कि यह हमला राज्य और भारत सरकार की कानून प्रवर्तन मशीनरी की विफलता के कारण हुआ.
मामले में अपने जवाबी हलफनामे में गृह मंत्रालय ने एक अवर सचिव के माध्यम से कहा कि मामले में मृतकों के परिजनों को 10 लाख रुपये की अनुग्रह राशि दी जा रही है, जिसका आधा हिस्सा मणिपुर सरकार द्वारा वहन किया जाना है. इसके अलावा घायलों के लिए सहायता प्रदान की जा रही है.
अन्य अनुरोधों के संबंध में गृह मंत्रालय के हलफनामे में कहा गया है, ‘इस याचिका में की गई अनुरोधों के संबंध में यह विनम्रतापूर्वक कहा जाता है कि यह मुख्य रूप से कानून और व्यवस्था बनाए रखने के मुद्दे से संबंधित है, जो राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है, जिसके अधिकारियों को इस याचिका में अलग-अलग प्रतिवादी बनाया गया है.’
इसमें आगे कहा गया, ‘ऊपर प्रस्तुत स्थिति के मद्देनजर इस उत्तरदाता की ओर से कोई कार्रवाई लंबित या आवश्यक नहीं है.’
ज्ञात हो कि एनआईए द्वारा 26 नवंबर को जारी एक प्रेस बयान के अनुसार, छह महिलाओं और बच्चों का मामला उन तीन मामलों में से एक था, जिन्हें एजेंसी ने नवंबर में जिरीबाम जिले में हुई हिंसा के संबंध में दर्ज किया था. अन्य दो मामले 7 नवंबर को जिरीबाम में कुकी-ज़ो महिला ज़ोसंगकिम (31) के साथ कथित बलात्कार और उसे ज़िंदा जलाने से संबंधित हैं और 11 नवंबर को जिरीबाम के बोरोबेक्रा में सीआरपीएफ़ पोस्ट पर कथित हमला, जिसमें 10 कथित हथियारबंद उग्रवादियों को मार गिराया गया था.
इस हमले के दौरान ही मेईतेई समुदाय की छह महिलाओं और बच्चों का अपहरण कर लिया गया था. उसके बाद किसी अज्ञात स्थान पर सभी छह लोगों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर छा गईं और कुछ ही दिनों में बराक नदी में उनके शव बरामद हुए.
जनहित याचिका में याचिकाकर्ताओं ने सीआरपीएफ और एनआईए के महानिदेशकों के अलावा गृह मंत्रालय के माध्यम से केंद्र सरकार और मणिपुर राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को भी प्रतिवादी बनाया है.
मुख्य न्यायाधीश डी. कृष्णकुमार और जस्टिस गोलमेई गैफुलशिलु काबुई की पीठ जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है और मामले में सभी प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर चुकी है. मामले पर 3 फरवरी, 2025 को फिर से सुनवाई होने की उम्मीद है.
एनआईए ने छह महिलाओं और बच्चों की हत्या से जुड़े मामले में अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं की है. एजेंसी की एक टीम ने 21-22 नवंबर को घटनास्थल का दौरा किया था और जांच शुरू की थी. एनआईए ने यह भी कहा कि वे स्थानीय पुलिस से मामले के दस्तावेज अपने कब्जे में लेने की प्रक्रिया में हैं.