2024 में काम की जगह पर सुरक्षा चूक से 400 से अधिक श्रमिकों ने गंवाई जान: रिपोर्ट

इंडस्ट्री ऑल की रिपोर्ट के मुताबिक, इस वर्ष भारत के निर्माण, खनन और ऊर्जा क्षेत्रों में कार्यस्थल पर कम से कम 240 दुर्घटनाएं दर्ज हुईं, जिनमें 400 से अधिक श्रमिकों की मौत हो गई और 850 से अधिक गंभीर रूप से घायल हो गए. सुरक्षा नियमों की अनदेखी और निरीक्षण में ढील इसके प्रमुख कारण बताए गए हैं.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

नई दिल्ली: भारत में 2024 का वर्ष कार्यस्थल सुरक्षा के लिए बेहद चिंताजनक साबित हुआ है. अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन इंडस्ट्री ऑल (IndustriALL) के आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष 10 दिसंबर तक निर्माण, खनन और ऊर्जा क्षेत्रों में कार्यस्थल पर कम से कम 240 दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 400 से अधिक जानें चली गईं. 850 से अधिक कामगार गंभीर रूप से घायल हो गए.

इंडस्ट्री ऑल स्पष्ट करता है कि वास्तविक आंकड़े इससे कहीं अधिक हो सकते हैं, क्योंकि कार्यस्थल दुर्घटनाओं की रिपोर्टिंग अक्सर अधूरी रहती है.

भयावह दुर्घटनाओं का सिलसिला

बीते 40 वर्षों के दौरान औद्योगिक सुरक्षा में सुधार के तमाम प्रयासों के बावजूद भारत में कार्यस्थल पर होने वाली दुर्घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं. इंडस्ट्री ऑल के कार्यकारी समिति सदस्य गौतम मोडी ने कहा, ‘भारत आज भी दुनिया के सबसे असुरक्षित कार्यस्थलों में शामिल है. सरकार ने श्रमिक सुरक्षा कानूनों को कमजोर कर दिया है, जिससे कंपनियां श्रमिकों की सुरक्षा के बजाय मुनाफे पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं. सुरक्षित कार्य और जीवन के लिए संगठित प्रयासों की जरूरत है.’

केमिकल और फार्मास्यूटिकल सेक्टर में सबसे अधिक दुर्घटनाएं

केमिकल और फार्मास्यूटिकल सेक्टर इस साल सबसे अधिक दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार रहे. इस सेक्टर में 110 से अधिक दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें कम से कम 220 श्रमिकों की मौत हुई और 550 से अधिक गंभीर रूप से घायल हुए.

21 अगस्त को आंध्र प्रदेश के एक विशेष आर्थिक क्षेत्र में स्थित फार्मास्युटिकल फैक्टरी में विस्फोट हुआ, जिसमें 18 श्रमिकों की मौत हो गई और 30 घायल हो गए. इस फैक्टरी का संचालन एस्किएंटिया एडवांस्ड साइंसेज द्वारा किया जाता था.

मई में मुंबई के अमुदन केमिकल्स की एक फैक्टरी में हुए धमाके में 13 श्रमिकों की मौत हो गई और 60 से अधिक घायल हो गए. इस दुर्घटना का कारण रसायनों के मिश्रण और भंडारण में लापरवाही बताई गई.

फरवरी में दिल्ली के एक पेंट फैक्टरी में आग लगने से 11 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए. दिल्ली नगर निगम ने बाद में पुष्टि की कि फैक्टरी अवैध रूप से संचालित हो रही थी.

खनन और ऊर्जा क्षेत्र भी अछूते नहीं

खनन उद्योग में इस वर्ष कम से कम 22 दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 60 श्रमिकों की मौत हो गई और 50 से अधिक गंभीर रूप से घायल हुए. ऊर्जा क्षेत्र में 20 से अधिक श्रमिकों ने कार्यस्थल पर हुई दुर्घटनाओं में जान गंवाई.

फरवरी में हरियाणा के एक ऑटोमोटिव पार्ट्स निर्माण इकाई में बॉयलर विस्फोट से 14 श्रमिकों की मौत हो गई और 25 से अधिक गंभीर रूप से घायल हो गए.

सुरक्षा उपायों की अनदेखी और सरकारी ढील

इन दुर्घटनाओं का मुख्य कारण सुरक्षा नियमों की घोर अनदेखी, निरीक्षण व्यवस्था की कमजोरी, और अप्रशिक्षित अस्थायी श्रमिकों का बड़े पैमाने पर उपयोग बताया गया है.

हाल के वर्षों में, सरकार ने व्यवसायिक प्रक्रियाओं को आसान बनाने के लिए कार्यस्थल निरीक्षण और लाइसेंसिंग नियमों में ढील दी है. नई श्रम सुरक्षा और स्वास्थ्य कानूनों ने निरीक्षण प्रणाली को कमजोर कर दिया है. अब निरीक्षक बिना पूर्व सूचना के निरीक्षण नहीं कर सकते और कानून तोड़ने वालों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई नहीं कर सकते.

यूनियनों और सरकार से अपील

इंडस्ट्री ऑल के कार्यकारी समिति सदस्य संजय वाधवकर ने कहा है, ‘औद्योगिक सुरक्षा की मौजूदा स्थिति चिंताजनक है. दुर्घटनाओं की दर यह दर्शाती है कि कार्यस्थलों पर सुरक्षा उपायों में समझौता किया जा रहा है. हम नियोक्ताओं से आग्रह करते हैं कि वे यूनियनों और श्रम मंत्रालय के साथ सक्रिय रूप से जुड़ें और सुरक्षित कार्यस्थलों के लिए एक्शन प्लान लागू करें.’

इंडस्ट्री ऑल के सहायक महासचिव केमल ओज़कान ने भी चिंता जताई है. उन्होंने कहा है, ‘सुरक्षित कार्यस्थल का अधिकार काम के मूलभूत अधिकारों में से एक है. भारत में कार्यस्थल सुरक्षा की दयनीय स्थिति इस अधिकार के हनन को दर्शाती है. हम भारतीय सरकार से अपील करते हैं कि वह सुरक्षा नियमों की समीक्षा करे और श्रमिक संगठनों के साथ मिलकर इस संकट को हल करे.’