इंक़लाब की बेटी ने कहा कि उनके पिता सरकार और बुद्धिजीवियों द्वारा दिए जाने वाले पुरस्कारों में बिल्कुल विश्वास नहीं करते थे. अगर वे जीवित होते तो इस पुरस्कार को स्वीकार नहीं करते.
इंक़लाब के नाम से मशहूर तमिल कवि और लेखक शाहुल हमीद के परिवार ने मरणोपरांत उन्हें मिले साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस करने का निर्णय लिया है. परिवारवालों के अनुसार, इंक़लाब सरकार या बुद्धिजीवियों से पुरस्कार लेने में विश्वास नहीं करते थे.
इंक़लाब की मृत्यु पिछले साल के दिसंबर महीने में हुई थी. गुरुवार को साहित्य अकादमी द्वारा घोषित 24 विजेताओं में इंक़लाब का भी नाम शामिल था. वह उन पांच कवियों में से थे, जो अलग-अलग भाषाओं- तमिल, मैथिली, मराठी, संथाली और तेलुगू से साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिए चुना गया था.
इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक इंक़लाब की बेटी अमिना भारविन ने कहा, ‘उनका नाम कम से कम दो बार साहित्य अकादमी पुरस्कारों की अंतिम सूची में था, लेकिन वह इसे स्वीकार नहीं करते क्योंकि उन्हें सरकार या बुद्धिजीवियों से पुरस्कार प्राप्त करने में विश्वास नहीं था.’
35 वर्षीय भारविन, चेन्नई में एक मेडिकल प्रैक्टिशनर हैं. भारविन ने कहा, ‘सरकारों के जनता विरोधी फ़ैसलों के ख़िलाफ़ उनका एक मज़बूत राजनीतिक रुख़ था. अगर वह जीवित होते तब वे भी इस पुरस्कार को स्वीकार नहीं करते.’
75 साल की उम्र में अपनी मृत्यु से पहले इंक़लाब ने कम्युनिस्ट आंदोलन से प्रेरित कम से कम 10 कविता संग्रह लिखे हैं. 1960 के दशक में हिंदी विरोधी आंदोलनों ने सीपीआईएम और बाद में सीपीआई-एमएल से शुरुआत करते हुए इंक़लाब को राजनीतिक गतिविधि शुरू करने के लिए प्रेरित किया.
वह 1980 के दशक के मध्य में चेन्नई (तब मद्रास) में शिक्षकों द्वारा बड़े स्तर पर किए गए विरोध प्रदर्शन का उन्होंने नेतृत्व भी किया था. उनकी बेटी ने यह भी बताया कि इंक़लाब का जन्म तमिलनाडु के रामनाथपुरम ज़िले के एक गांव में हुआ था. अपने शुरुआती जीवन के दौरान संघर्ष और कठिनाइयों ने उन्हें कम्युनिस्ट आंदोलन और उसके साहित्य के प्रति आकर्षित किया था.
हालांकि मद्रास उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के. चंद्रू ने परिवार के इस फ़ैसले से असहमति जताई है. पूर्व न्यायाधीश ने 1970 के दशक में इंक़लाब के शुरुआती कविता संग्रह ‘इंक़लाब कविथईगल’ (इंक़लाब की कविताएं) को प्रकाशित करने में उनकी सहायता की थी.
पूर्व न्यायाधीश के. चंद्रू ने कहा, ‘भले ही यह पुरस्कार सरकार द्वारा दिया जाता है, लेकिन इसके लिए उनका नाम साहित्य क्षेत्र के ही कुछ श्रेष्ठ लोगों की पीठ ने सुझाया था. भले ही इंक़लाब राज्य के मज़बूत आलोचक थे फिर भी इस पुरस्कार को स्वीकार करने में कुछ ग़लत नहीं था. मैं उन छात्रों की एक टीम में शामिल था जिसने इंक़लाब का पहले कविता संग्रह की प्रतियां कैंपस में बेचे जाने के लिए उन्हें प्रकाशित करवाया था. हमने कम से कम 1,000 प्रतियां बेची थीं.’