उत्तर प्रदेश की योगी सरकार हिंदू विरोधी है: विपक्ष

प्रदेश की योगी सरकार ‘अर्द्धकुंभ’ और ‘कुंभ’ का नाम बदलने को लेकर विपक्ष के निशाने पर है. विपक्ष ने आरोप लगाया कि पुराणों को खंडित किया जा रहा है, वेदों को नकारा जा रहा है.

(फोटो: रॉयटर्स)

प्रदेश की योगी सरकार ‘अर्द्धकुंभ’ और ‘कुंभ’ का नाम बदलने को लेकर विपक्ष के निशाने पर है. विपक्ष ने आरोप लगाया कि पुराणों को खंडित किया जा रहा है, वेदों को नकारा जा रहा है.

(फोटो: रॉयटर्स)
(फोटो: रॉयटर्स)

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र काफी हंगामेदार रहने के बाद शुक्रवार को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया. ‘अर्द्धकुंभ’ का नाम बदलकर ‘कुंभ’ करने और ‘कुंभ’ का नाम बदल ‘महाकुंभ’ करने को लेकर मचे हंगामे के बीच समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के सदस्यों ने सदन से वॉकआउट किया.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार पर हमला बोलते हुए सपा और कांग्रेस विधायकों ने कहा है कि ये सरकार हिंदू विरोधी और धर्म विरोधी है. सरकार संतों और परंपराओं का अपमान कर रही है.

सदन में भारी हंगामे के बीच सत्तारूढ़ भाजपा ने प्रयागराज मेला प्राधिकरण विधेयक पास कर दिया. विधेयक में कुंभ मेले के आयोजन के लिए इलाहाबाद कमिश्नर के नेतृत्व में एक प्राधिकरण का गठन करने के लिए कहा गया है.

हंगामा करते हुए सपा और कांग्रेस विधायक सदन में ‘हिंदू विरोधी ये सरकार नहीं चलेगी’ और ‘धर्म विरोधी ये सरकार नहीं चलेगी’ जैसे नारे लगा रहे थे.

विधेयक प्रवर समिति को भेजने की मांग करते हुए विपक्ष के नेता राम गोविंद चौधरी ने दावा किया कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि ने उन्हें बताया है कि अर्द्धकुंभ और कुंभ का नाम बदले जाने के ख़िलाफ़ 29 दिसंबर को साधु-संत इलाहाबाद में सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करेंगे.

रिपोर्ट के अनुसार, संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने सफाई देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मानना है कि ‘अर्द्ध’ शब्द का कोई महत्व नहीं है और सरकार का इरादा धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का नहीं है.

सरकार के इस कदम को हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोगों को ठेस पहुंचाने वाला क़रार देने के विपक्ष के आरोप पर खन्ना ने कहा, ‘नाम बदल जाने से न आस्था बदल जाती है और न फल बदल जाता है. सरकार कुंभ में शामिल होने वाले लोगों के लिए बेहतर इंतज़ाम की व्यवस्था कर रही है.’

विपक्ष के नेता चौधरी ने कहा,‘पुराणों को खंडित किया जा रहा है, वेदों को नकारा जा रहा है.’

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में अखाड़ा परिषद के प्रमुख नरेंद्र गिरि ने कहा, ‘पुरातन परंपराओं के नाम बदलने का अधिकार किसी को नहीं है. हम इस बाप पर चर्चा करेंगे कि योगी आदित्यनाथ ने यह निर्णय क्यों लिया और किस आधार पर लिया.’

उच्च सदन में पारित नहीं हो सका उत्तर प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक, प्रवर समिति को भेजा गया

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के लिए असहज स्थिति पैदा करने वाले घटनाक्रम में शुक्रवार शाम विधान परिषद में विपक्ष के कडे़ विरोध के बाद उत्तर प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक (यूपीकोका) को सदन की प्रवर समिति के पास भेज दिया गया.

उच्च सदन में शनिवार को शून्यकाल में इस विधेयक को पेश किया गया. भोजनावकाश के बाद की कार्यवाही के दौरान विधेयक पर चर्चा शुरू हुई. इस दौरान विपक्षी सदस्यों ने इस विधेयक का कड़ा विरोध किया. विपक्ष ने इसे काला कानून क़रार दिया, वहीं सत्ता पक्ष ने इसे प्रदेश में संगठित अपराध की कमर तोड़ने वाला बताया.

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि सरकार इस विधेयक के ज़रिये यूपीकोका कानून बनाना चाहती है, जो दरअसल धोखा है. सरकार अगर डायल-100 और 1090 सेवाओं को बेहतर बनाए तो यूपीकोका की कोई ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी.

उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों को पुलिस के माध्यम से चुप कराने के लिए विधेयक लाई है. साथ ही अपनी मांगों को लेकर लखनऊ में प्रदर्शन करने वाले लोगों को रोकना भी इसका मकसद है.

यादव ने कहा कि यह जनता को धोखा देने वाला कानून है, यह कानून व्यवस्था ठीक करने के लिए नहीं बल्कि राजनीतिक विरोधियों को चुप कराने के लिए लाया जा रहा है. आपकी सरकार कानून व्यवस्था नहीं राजनीतिक व्यवस्था ठीक करना चाहती है. कानून व्यवस्था ठीक करने के नाम पर प्रदेश को धोखा न दें.

प्रस्तुत संशोधन पर बालते हुए नेता विरोधी दल अहमद हसन, बसपा के सुनील कुमार चित्तौड़ एवं कांग्रेस के दीपक सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए.

उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने विधेयक के संबंध में बोलते हुए कहा कि अगर पूर्व सरकार ने डायल 100 और 1090 का सही उपयोग किया होता तो आज कानून व्यवस्था की यह स्थिति नहीं होती. हम इस विधेयक के माध्यम से पहली बार भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाईई करेंगे, किसी भी राजनीतिक नेता के ख़िलाफ़ नहीं. जनता में इस विधेयक का गलत संदेश दिया जा रहा है. यह विधेयक अपराधियों के ख़िलाफ़ है, राजनीतिक कार्यकर्ता के ख़िलाफ़ नहीं है.

नेता सदन उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने सभी दलों से संशोधन वापस लेने का अनुरोध करते हुए कहा कि आपकी आशंकाएं निर्मूल हैं, यह एक्ट उनके लिए है जिनकी कोई सुनवाई नहीं करता. हम चाहते है उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य बने जहां कोई अपराध न हो. हमारा किसी के प्रति दुराग्रह या दुराभाव नहीं है. मैं आप सबसे अनुरोध करता हॅू कि यह एक्ट जनता के हित का है. आप अपने संशोधन वापस लें और इसे सर्वसम्मति से पारित करें.

उन्होंने कहा कि विपक्ष की नीति और नियत अगर प्रदेश में अपराध और अपराधियों के ख़िलाफ़ हो तो यह अच्छा होगा. उन्होंने यह भी कहा कि उनका मानना है कि कोई भी राजनीतिक दल प्रदेश में अपराध नहीं चाहता है.

शर्मा ने आश्वासन दिया कि यूपीकोका का राजनीतिक इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. यह केवल अपराधियों पर नकेल कसने के लिए लाया जा रहा है. उन्होंने सदन से कई बार आग्रह किया कि इसे पारित किया जाए.

इसके बाद सपा, बसपा एवं कांग्रेस के सदस्यों ने अपने संशोधनों पर बल देते हुये इसे प्रवर समिति के सुपुर्द किए जाने पर बल दिया. विचार के प्रस्ताव के बाद ध्वनिमत के द्वारा विधेयक संशोधन सहित प्रवर समिति के सुपुर्द किया गया.

इसके बाद सदन में उत्तर प्रदेश चलचित्र विनियमन संशोधन विधेयक 2017, उत्तर प्रदेश औद्योगिक क्षेत्र विकास संशोधन विधेयक 2017, उत्तर प्रदेश जूनियर हाईस्कूल और अन्य कर्मचारियों के वेतन का भुगतान संशोधन विधेयक 2017, उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा संशोधन विधेयक 2017, उत्तर प्रदेश निरसन विधेयक 2017, उत्तर प्रदेश दंड विधि अपराधों का शमन और विचारणों का उपशमन संशोधन विधेयक 2017, उत्तर प्रदेश सहकारी समिति संशोधन विधेयक 2017, उत्तर प्रदेश प्रयागराज मेला प्राधिकरण, इलाहाबाद विधेयक 2017, उत्तर प्रदेश आबकारी संशोधन विधेयक 2017 तथा उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक 2017 सदन के पटल पर रखे गए.

उक्त विधेयकों में उत्तर प्रदेश सहकारी समिति संशोधन विधेयक 2017 पर अंकित विधेयक पर समाजवादी पार्टी ने निम्नलिखित संशोधन का प्रस्ताव प्रस्तुत किया.

उत्तर प्रदेश सहकारी समिति संशोधन विधेयक 2017, जैसा उत्तर प्रदेश विधान सभा द्वारा पारित हुआ है, को इस सदन की प्रवर समिति के सुपुर्द कर दिया जाए, जो अपना प्रतिवेदन एक माह के अंदर प्रस्तुत करे.

विचार के प्रस्ताव के उपरांत ध्वनिमत से संशोधन का प्रस्ताव स्वीकार हुआ तथा सभापति रमेश यादव द्वारा विधेयक प्रवर समिति को भेजा गया. जबकि शेष अन्य सभी विधेयक सर्वसम्मति से पारित हुए. राष्ट्रगान के पश्चात सभापति रमेश यादव ने विधान परिषद् के सदन की बैठक अनिश्चितकाल के लिये स्थगित कर दी.

गौरतलब है कि विधानसभा में गुरुवार को पारित हो चुके उत्तर प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक का मसविदा महाराष्ट्र के मकोका कानून पर आधारित है जो भू-माफिया, खनन माफिया और संगठित अपराधों से निपटने के लिए लाया गया है.

विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ सत्तारूढ़ हुई भाजपा उच्च सदन में अल्पमत में है. इस 100 सदस्यीय सदन में भाजपा के 13 सदस्य हैं जबकि समाजवादी पार्टी के 61 सदस्य हैं. बसपा के नौ, कांग्रेस के दो तथा राष्ट्रीय लोकदल का एक सदस्य है. इसके अलावा शिक्षक दल तथा निर्दलीयों समेत कुल 12 सीटें हैं. जबकि दो पद खाली हैं.

उत्तर प्रदेश सरकार ने महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून (मकोका) की तर्ज पर माफिया और संगठित अपराध से निपटने के कड़े प्रावधान वाला एक विधेयक पेश किया है. इस विधेयक में आतंक फैलाने, बलपूर्वक या हिंसा द्वारा सरकार को उखाड़ फेंकने का प्रयास करने वालों से सख़्ती से निपटने के प्रावधान हैं.

विधेयक में आतंक फैलाने या बलपूर्वक, हिंसा द्वारा सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए विस्फोटकों या अन्य हिंसात्मक साधनों का प्रयोग कर किसी की जान या संपत्ति को नष्ट करने या राष्ट्र विरोधी, अन्य लोक प्राधिकारी को मौत की धमकी देकर या बर्बाद कर देने की धमकी देकर फिरौती के लिए बाध्य करने को लेकर कड़े प्रावधान किए गए हैं.

विधेयक के उद्देश्यों और कारणों में कहा गया है कि मौजूदा कानूनी ढांचा संगठित अपराध के ख़तरे के निवारण एवं नियंत्रण के अपर्याप्त पाया गया है इसलिए संगठित अपराध के ख़तरे को नियंत्रित करने के लिए संपत्ति की कुर्की, रिमांड की प्रक्रिया, अपराध नियंत्रण प्रक्रिया, त्वरित विचार एवं न्याय के मक़सद से विशेष न्यायालयों के गठन और विशेष अभियोजकों की नियुक्ति तथा संगठित अपराध के ख़तरे को नियंत्रित करने की अनुसंधान संबंधी प्रक्रियाओं को कड़े एवं निवारक प्रावधानों के साथ विशेष कानून अधिनियमित करने का निश्चय किया गया है.

विधेयक में संगठित अपराध को विस्तार से परिभाषित किया गया है. फिरौती के लिए अपहरण, सरकारी ठेके में शक्ति प्रदर्शन, खाली या विवादित सरकारी भूमि या भवन पर जाली दस्तावेज़ों के ज़रिये या बलपूर्वक कब्जा, बाज़ार और फुटपाथ विक्रेताओं से अवैध वसूली, शक्ति का प्रयोग करके अवैध खनन, धमकी या वन्यजीव व्यापार, धन की हेराफेरी, मानव तस्करी, नकली दवाओं या अवैध शराब का कारोबार, मादक द्रव्यों की तस्करी आदि को शामिल किया गया है. विधेयक में संगठित अपराध के लिए सख़्त सज़ा का प्रावधान किया गया है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)