नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से विश्वविद्यालयों में समान अवसर प्रकोष्ठों की स्थापना और यूजीसी (उच्च शिक्षण संस्थानों में समानता को बढ़ावा देना) विनियम, 2012 के तहत प्राप्त शिकायतों की संख्या और शिकायतों पर की गई कार्रवाई के बारे में डेटा प्रस्तुत करने को कहा.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जातिगत भेदभाव के चलते आत्महत्या करने वाले छात्रों- रोहित वेमुला और पायल तड़वी की माताओं द्वारा उच्च शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव का आरोप लगाने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने यूजीसी को चार सप्ताह में जवाबी हलफनामा दायर करने को कहा.
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने दलील दी कि 2012 के नियम उच्च शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव को समाप्त करने के लिए लाए गए थे. हालांकि, उन्होंने इसके क्रियान्वयन पर संदेह जताया.
यूजीसी के वकील ने दलील दी कि नए नियम बनाए गए हैं. इसके बाद पीठ ने आयोग से कहा कि वह इसे अधिसूचित करे और रिकॉर्ड में दर्ज करे.
जयसिंह ने अदालत से उच्च शिक्षण संस्थानों में आत्महत्याओं की संख्या का जातिवार ब्यौरा भी मांगा.
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि न्यायालय मामले की संवेदनशीलता से अवगत है और इस मामले की समय-समय पर सुनवाई शुरू करेगा. उन्होंने यह भी संकेत दिया कि न्यायालय एक-एक कदम आगे बढ़ेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जुलाई 2023 में नोटिस जारी किया था.
गौरतलब है कि हैदराबाद विश्वविद्यालय में से पीएचडी कर रहे रोहित वेमुला ने साल 2016 में जातिगत भेदभाव को कथित तौर पर जिम्मेदार बताते हुए आत्महत्या कर ली थी जबकि मुंबई के बीवाईएल नायर अस्पताल में डॉ. पायल तड़वी ने कॉलेज की ही तीन डॉक्टरों द्वारा कथित उत्पीड़न का सामना करने के बाद 22 मई 2019 को अपने हॉस्टल के कमरे में आत्महत्या कर ली थी. रोहित वेमुला और पायल तड़वी अनुसूचित जाति/जनजाति से आते थे.
2019 में उनकी माताओं ने शीर्ष अदालत में एक जनहित याचिका दायर कर परिसरों में जातिगत भेदभाव को समाप्त करने के लिए एक तंत्र की मांग की थी.
याचिका के अनुसार, उच्च शिक्षा संस्थानों में एससी/एसटी समुदाय के सदस्यों के खिलाफ जातिगत भेदभाव व्याप्त है. उन्होंने जाति आधारित भेदभाव के प्रति संस्थागत उदासीनता और मौजूदा मानदंडों और विनियमों का घोर गैर-अनुपालन का भी आरोप लगाया था और सभी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों में अन्य मौजूदा भेदभाव विरोधी आंतरिक शिकायत तंत्रों की तर्ज पर समान अवसर प्रकोष्ठों की स्थापना की मांग की थी.