नई दिल्ली: असम के दीमा हसाओ जिले में अवैध कोयला खदान में फंसे खनिकों में से एक का शव बुधवार सुबह बरामद किया गया, अधिकारियों ने इसकी पुष्टि की है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पहला शव बरामद होने के 48 घंटे बाद यह जानकारी मिली है. दीमा हसाओ के उमरंगसो कोयला भंडार में एक रैट होल खदान में काम कर रहे कम से कम नौ खनिक सोमवार सुबह फंस गए थे, जब खदान में पानी भर गया.
मंगलवार शाम को बचाव अभियान में गहरे समुद्र के गोताखोर शामिल हुए, जिसमें एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और सेना की टीमें शामिल हैं, जो पहले से ही मौके पर मौजूद थीं. अधिकारियों ने कहा है कि बचाव अभियान में मुख्य चुनौती खदान के अंदर पानी का स्तर है. उन्होंने कहा कि इसकी गहराई 200 फीट है. एक और बाधा पानी को तेजी से बाहर निकालने के लिए पर्याप्त उपकरणों की कमी है.
वहीं सरकार ने कहा है कि खदान अवैध थी और मामले के संबंध में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है.
फंसे हुए लोग असम, नेपाल और पश्चिम बंगाल के हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, 6 जनवरी को साइट पर काम कर रहे लगभग 30-35 मज़दूर तब फंस गए जब पानी रिसने लगा और कोयला खदान में पानी भरने लगा. अधिकारियों के अनुसार, उनमें से कई लोग भागने में सफल रहे, जबकि लगभग नौ के फंसे होने की आशंका है. प्रारंभिक पुलिस जांच के अनुसार, यह स्पष्ट नहीं है कि बाढ़ क्यों आई.
द हिंदू से बात करते हुए दीमा हसाओ के जिला आयुक्त, सिमंता के. दास ने कहा कि यह जगह बहुत ही दुर्गम है और जंगल से होकर पहुंचा जा सकता है. इससे बचाव अभियान में देरी हुई.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, माना जा रहा है कि मजदूर पानी से भरी कोयला खदान में जमीन के 300 फीट नीचे फंसे हुए हैं. मंगलवार को पूरे दिन भ्रम की स्थिति बनी रही, कुछ अधिकारियों ने बताया कि खदान में नौ लोग फंसे हुए हैं. अन्य ने कहा कि यह संख्या 15 तक हो सकती है.
राज्य मंत्री कौशिक राय ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया कि टीमों ने पानी निकालने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है. कुंभीग्राम में एक एमआई-17 हेलीकॉप्टर पर ओएनजीसी का पानी निकालने वाला पंप लोड किया गया.
राय ने समाचार एजेंसी को बताया, ’48 घंटे हो गए हैं और खदान के अंदर पानी एक बड़ी चुनौती है…’
उल्लेखनीय है कि कोयला खदानों में ऐसी आपदाएं भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में अक्सर होती रहती हैं, खासकर ‘रैट-होल’ खदानों में.
‘रैट-होल’ खनन खुदाई की एक प्रक्रिया है जिसमें कोयला निकालने के लिए संकरे रास्ते बनाए जाते हैं. मालूम हो कि 2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा रैट-होल खनन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन पूर्वोत्तर राज्य के इस लेडो-मार्गेरिटा बेल्ट में इस खतरनाक पद्धति से खनन जारी है.
एनजीटी के प्रतिबंध के बावजूद असम सरकार इन क्षेत्रों में अवैध खनन को रोकने में असमर्थ रही है, जिससे क्षेत्र में यह अवैध कारोबार फल-फूल रहा है. वन क्षेत्रों में ऐसी खदानें समय-समय पर खनिकों की जान लेने और उन्हें चोट पहुंचाने के अलावा स्थानीय वन्यजीवों को भी प्रभावित करती हैं.
साल 2019 में कांग्रेस नेता और नागांव के मौजूदा सांसद प्रद्युत बोरदोलोई ने रैट-होल खनन के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी, जिसमें दावा किया गया था कि पिछले तीन वर्षों में 11 आरक्षित वनों और वन्यजीव अभयारण्यों के अंदर 4,000 से 5,000 रैट-होल कोयला खदानें अस्तित्व में आई हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि कोयला माफिया को तिनसुकिया जिला प्रशासन द्वारा सहायता और बढ़ावा दिया गया था.
वर्ष 2023 में उच्च न्यायालय ने भी अवैध रैट-होल खनन पर प्रतिबंध लगा दिया था और केंद्र तथा राज्य दोनों सरकारों को इसकी पालना का निर्देश दिया था.
मई 2024 में असम के तिनसुकिया जिले में भूस्खलन के कारण एक ‘रैट-होल’ खदान के धंसने से कम से कम तीन लोगों की मौत हो गई थी. जनवरी 2024 में नगालैंड के वोखा जिले में एक ‘रैट-होल’ कोयला खदान के अंदर लगी आग में छह लोग जलकर मर गए और चार घायल हो गए. सितंबर 2022 में उसी जिले में एक अवैध कोयला खदान में जहरीली गैस के कारण तीन मजदूरों की मौत हो गई थी.
दिसंबर 2018 में सबसे बड़ी आपदाओं में से एक – मेघालय में एक अवैध खदान में काम करते समय कम से कम 15 खनिक दब गए, जब पास की एक नदी के पानी से खदान भर गई.