नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ में प्राथमिक स्कूलों के शिक्षक अपनी योग्यता पर कानूनी विवाद के कारण सरकारी सेवा से बर्खास्त किए जाने के खिलाफ करीब एक महीने से रायपुर के तूता मैदान में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. बैचलर ऑफ एजुकेशन (बीएड) की डिग्री से लैस ये शिक्षक न्याय की मांग कर रहे हैं क्योंकि उनका भविष्य अनिश्चित है.
यह मुद्दा राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद की 2018 की अधिसूचना से उपजा है जिसे राजस्थान हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था, जिसमें बीएड डिग्री धारकों को प्राथमिक विद्यालय के शिक्षण पदों के लिए अयोग्य घोषित किया गया था. नतीजतन, सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखा, जिससे छत्तीसगढ़ के हजारों शिक्षक प्रभावित हुए जिन्होंने इस मानदंड के तहत अपनी नौकरी हासिल की थी.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ सरकार ने पिछले महीने बीएड डिग्री धारक 2,800 से अधिक प्राथमिक स्कूल शिक्षकों की सेवा समाप्ति की प्रक्रिया शुरू कर दी थी.
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 2 अप्रैल को फैसला सुनाया था कि बीएड धारक प्राथमिक शिक्षक के पद के लिए पात्र नहीं हैं, तथा डिप्लोमा इन एलीमेंट्री एजुकेशन (डी.एल.एड.) वालों के लिए नौकरी पाने का रास्ता साफ कर दिया.
हालांकि, सितंबर 2023 में कई बीएड धारकों को इन पदों पर इस शर्त पर नियुक्त किया गया था कि नौकरी हाईकोर्ट के अंतिम फैसले के अधीन होगी. कोर्ट का आदेश उनके खिलाफ जाने के बाद सरकार ने उनकी सेवाएं समाप्त करने की कार्रवाई शुरू कर दी है. पिछले महीने से ही इन शिक्षकों द्वारा लगातार विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है.
100 से अधिक प्राथमिक स्कूल के शिक्षक पिछले महीने से नई रायपुर के तूता मैदान को अपना घर बना लिया है और वे सेवा से अपनी आसन्न बर्खास्तगी का विरोध कर रहे हैं. वे अलग-अलग तरीकों से विरोध कर रहे हैं. शिक्षकों ने 13 जनवरी को दंडवत यात्रा करके अपना विरोध जताया था, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसमें कई महिला शिक्षकों को सड़क पर दंडवत यात्रा करते देखा जा सकता है. 14 जनवरी को पुरुष शिक्षकों ने अर्धनग्न होकर अपनी पीड़ा और आक्रोश व्यक्त किया.
मुख्य रूप से बस्तर और सरगुजा जैसे आदिवासी जिलों से बर्खास्त किए गए ये 2,896 शिक्षक अपनी नौकरी सुरक्षित करने के लिए अध्यादेश की मांग कर रहे है.
बर्खास्त शिक्षकों में 71% आदिवासी समुदायों से हैं
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, एक संवाददाता सम्मेलन में शिक्षकों ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी पर जोर दिया. उन्होंने तर्क दिया कि सरकार अदालत में उनके मामले को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करके उनकी बर्खास्तगी को रोक सकती थी.
रिक्त पदों का जिक्र करते हुए शिक्षकों ने 4,000 से अधिक प्रयोगशाला सहायक पदों और 24,000 से अधिक सहायक शिक्षक रिक्तियों की ओर इशारा किया. उन्होंने सरकार से इन रिक्तियों का उपयोग उनके पुनः रोजगार के लिए करने का आग्रह किया.
अंकित चौबे, निशान वर्मा, आनंद कपिल, बिजल पटेल, पूर्णिमा पैकरा और अन्य बर्खास्त शिक्षकों ने कहा, ‘हमारा भविष्य अनिश्चित है. हमें डी.एल.एड. उम्मीदवारों द्वारा दायर अवमानना याचिका पर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के फ़ैसले के आधार पर बर्खास्त कर दिया गया.’
उन्होंने कहा, ‘हमारे परिवार संघर्ष कर रहे हैं. हममें से 71% आदिवासी समुदायों से हैं और उनमें से अधिकांश महिलाएं हैं.’ आगे उन्होंने कहा कि इन क्षेत्रों में महिलाओं के सामने आने वाली सामाजिक और आर्थिक बाधाओं को देखते हुए वैकल्पिक रोजगार ढूंढना और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है.
शिक्षकों ने जोर देकर कहा, ‘हमने दूरदराज के क्षेत्रों में परिश्रमपूर्वक सेवा की है, अक्सर चुनौतीपूर्ण भूभागों को पार करते हुए.’ उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि उन्हें पुनः समायोजित करने के तरीके ढूंढे जाएं और उनकी समस्याओं का समुचित समाधान किया जाए.
बेरोजगारी, आर्थिक तंगी को लेकर चिंताएं
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, रायपुर में विरोध प्रदर्शन कर रहे शिक्षकों में ऐसे लोग भी शामिल हैं जिन्होंने शिक्षण के अपने सपने को पूरा करने के लिए अन्य सरकारी नौकरियां छोड़ दी हैं, अन्य जिन्होंने शिक्षण की नौकरी मिलने के बाद ऋण लिया है और यहां तक कि वे लोग भी जिनके पास समय कम होता जा रहा है क्योंकि वे उस आयु सीमा के करीब पहुंच चुके हैं जिसके बाद वे अन्य सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन नहीं कर सकते.
पिछले साल 19 दिसंबर से टूटा मैदान में एकत्र हुए प्रदर्शनकारियों में भिलाई के 28 वर्षीय अमित वर्मा भी शामिल हैं, जो पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर हैं, जिन्होंने शिक्षण के प्रति अपने जुनून को अपनाने के लिए रेलवे में ग्रुप डी की स्थायी नौकरी छोड़ दी थी.
उन्होंने कहा, ‘शिक्षण मेरा ड्रीम जॉब है और मैंने आत्मानंद सरकारी स्कूल में कॉन्ट्रैक्ट पर काम किया था. अपने माता-पिता के आग्रह पर मैंने नौकरी छोड़ दी और रेलवे की नौकरी कर ली, लेकिन मेरे दिल में अपने जुनून को आगे बढ़ाना था. यही वजह है कि मैंने वह नौकरी छोड़ दी और प्राइमरी स्कूल में शिक्षक के तौर पर काम करना शुरू कर दिया. अब, मैंने वह नौकरी भी खो दी है और मेरे माता-पिता मेरे इस फैसले से परेशान हैं. मेरी एकमात्र गलती यह थी कि मुझे अदालती कार्यवाही के बारे में पता नहीं था. मैं सरकार से समायोजन करने का आग्रह करता हूं.’
राजनांदगांव की 28 वर्षीय पुष्पा उइके अपने परिवार की एकमात्र कमाने वाली हैं. उन्होंने मिडिल स्कूल की नौकरी के स्थान पर प्राइमरी स्कूल में अध्यापन की नौकरी चुनी, जिसे करने का उन्हें अवसर भी मिला, क्योंकि मिडिल स्कूल की नौकरी बेहतर स्थान पर थी.
उन्होंने कहा, ‘मैंने प्राइमरी और मिडिल स्कूल दोनों की परीक्षाएं दी और मुझे दोनों ही जगह नौकरी के प्रस्ताव मिले. मैंने सबसे पहले सितंबर 2023 में प्राइमरी स्कूल टीचर की नौकरी स्वीकार की और सात दिन बाद मुझे मिडिल स्कूल में भी नौकरी का प्रस्ताव मिला. मैंने मिडिल स्कूल की नौकरी सिर्फ़ इसलिए नहीं चुनी क्योंकि वहां वेतन ज़्यादा था और वह एक दूरदराज के इलाके में थी.’
उन्होंने कहा, ‘मुझे कर्ज चुकाना है और मैं अपने परिवार की एकमात्र कमाने वाली सदस्य हूं. मैं सरकार से आग्रह करती हूं कि मुझे मेरी नौकरी वापस दे दी जाए.’
कबीरधाम की दीपश्री तिवारी (28) ने कक्षा 9 और 12 के छात्रों के लिए संविदा शिक्षक के रूप में उच्च वेतन वाली नौकरी छोड़ दी और यह नौकरी चुनी.
उन्होंने कहा कि जिस रिक्त पद के लिए उन्होंने आवेदन किया था, वह पांच साल बाद आया था और उन्हें चिंता थी कि यदि अगली रिक्ति में इससे अधिक समय लग गया, तो वह नौकरी पाने का मौका खो देंगी, जिसके लिए कट-ऑफ आयु 35 वर्ष है, जिसके बाद कोई भी व्यक्ति आवेदन करने के लिए अयोग्य हो जाता है.
इंजीनियरिंग डिग्री धारक और भौतिकी में एमएससी गौरव गुप्ता (36) पहले ही उस उम्र को पार कर चुके हैं जिस पर वह नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘मैं सीबीएसई से संबद्ध एक स्कूल में अनुबंध पर काम कर रहा था और उच्चतर माध्यमिक छात्रों को भौतिकी पढ़ाता था. मैंने इसके लिए इसे छोड़ दिया. यह मेरा आखिरी मौका है क्योंकि मैं सामान्य श्रेणी के लिए कट-ऑफ आयु पार कर चुका हूं.’
कांग्रेस ने शिक्षकों की बर्खास्तगी की आलोचना की
पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे समेत कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने 3,000 शिक्षकों की सेवाएं समाप्त करने के लिए भाजपा शासित छत्तीसगढ़ की आलोचना की.
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने अपने एक्स पर उनके विरोध प्रदर्शन का वीडियो पोस्ट करते हुए कहा कि यह देश के युवाओं की दुर्दशा का उदाहरण है.
छत्तीसगढ़ का यह वीडियो देश के युवाओं की दुर्दशा का एक छोटा सा उदाहरण है। प्रदेश में 33 हजार शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं और 1 लाख नौकरी देने का वादा करने वाली भाजपा सरकार ने 3 हजार शिक्षकों को नौकरी से निकाल दिया। ये लड़कियां नौकरी की गुहार लगाते हुए इस कड़ाके की ठंड में सड़क पर… pic.twitter.com/tOVuWhtPyE
— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) January 13, 2025
उन्होंने कहा, ‘प्रदेश में शिक्षकों के 33 हजार पद खाली हैं और एक लाख नौकरियां देने का वादा करने वाली भाजपा सरकार ने तीन हजार शिक्षकों को नौकरी से निकाल दिया है. ये लड़कियां इस भीषण ठंड में सड़क पर लेटकर नौकरी की गुहार लगा रही हैं.’
उन्होंने कहा, ‘आज उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ समेत हर राज्य के युवा भाजपा के भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. भाजपा ने पूरे देश के युवाओं का भविष्य अंधकार में धकेल दिया है.’
वहीं, पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एक्स पर एक अलग पोस्ट में आरोप लगाया कि युवाओं को बेरोजगारी के दलदल में धकेलने के लिए मोदी सरकार और भाजपा जिम्मेदार हैं.
उन्होंने कहा, ‘छत्तीसगढ़ का यह दिल दहला देने वाला वीडियो देखिए, कैसे ये महिला शिक्षिकाएं कड़ाके की ठंड में प्रदर्शन करने को मजबूर हैं. भाजपा सरकार ने 3,000 शिक्षकों को नौकरी से निकाल दिया है.’
सरकार मुद्दे को सुलझाने के लिए समिति गठित की है
राज्य सरकार ने इस मुद्दे पर गौर करने का वादा किया है और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय, जो शिक्षा विभाग भी संभाल रहे हैं, ने इस मुद्दे को सुलझाने के तरीके खोजने के लिए 3 जनवरी को एक समिति का गठन किया.
जिसमें कहा गया है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने बिलासपुर के माननीय उच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन करते हुए बीएड प्रशिक्षित सहायक शिक्षकों द्वारा उठाई गई चिंताओं को दूर करने के लिए एक अंतर-विभागीय समिति का गठन किया है. यह कदम 2 अप्रैल, 2024 के न्यायालय के आदेश के बाद उठाया गया है, जिसमें राज्य सरकार से शिक्षकों द्वारा प्रस्तुत अभ्यावेदन की समीक्षा करने और उपयुक्त सिफारिशें प्रदान करने का आग्रह किया गया था.