यूपी: मेडिकल कॉलेज ने डॉक्टरों को 15 दिनों में 100 मरीज़ भर्ती करने का निर्देश दिया

मथुरा स्थित कृष्ण मोहन मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल ने 14 जनवरी को जारी एक सर्कुलर में अपने रेजिडेंट डॉक्टरों से कहा है कि वे अपने जनसंपर्क अधिकारियों के साथ 'रोगी संपर्क' कार्यक्रम के तहत गांवों में जाएं और 'अगले 15 दिनों के भीतर कम से कम 100 रोगियों को भर्ती करें.'

(प्रतीकात्मक फोटो: मनोज सिंह/ द वायर)

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के एक निजी मेडिकल कॉलेज ने अपने स्नातकोत्तर छात्रों को पड़ोसी गांवों में जाकर ’15 दिनों के भीतर 100 मरीजों को भर्ती करने’ का निर्देश दिया है, जिससे डॉक्टरों का एक वर्ग नाराज़ है, जिनका कहना है कि यह सर्कुलर चिकित्सा शिक्षा में अनैतिक प्रथाओं को उजागर करता है.

द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, मथुरा स्थित कृष्ण मोहन मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल ने 14 जनवरी को जारी एक सर्कुलर में अपने रेजिडेंट डॉक्टरों से कहा है कि वे अपने जनसंपर्क अधिकारियों के साथ ‘रोगी संपर्क’ कार्यक्रम के तहत गांवों में जाएं और ‘अगले 15 दिनों के भीतर कम से कम 100 रोगियों को भर्ती करें.’

सर्कुलर में कहा गया है, ’15 दिनों के भीतर 100 रोगियों को भर्ती करने में विफल रहने पर प्रतिदिन के आधार पर कार्यक्रम का विस्तार किया जाएगा. यदि कोई रोगी पीजी रेजिडेंट द्वारा अपने परामर्शदाता से परामर्श न करने के कारण चिकित्सा सलाह के विरुद्ध चला जाता है, तो रेजिडेंट डॉक्टर को व्यक्तिगत रूप से 50 रोगियों को भर्ती करना होगा.’

स्नातकोत्तर रेजिडेंट डॉक्टरों के राष्ट्रव्यापी संगठन, अखिल भारतीय चिकित्सा संघों के महासंघ (एफएआईएमए) के सदस्यों ने बुधवार को सर्कुलर की निंदा करते हुए कहा कि यह दर्शाता है कि कैसे एक निजी कॉलेज ‘अपने पैसा कमाने के मकसद को पूरा करने के लिए’ डॉक्टरों और छात्रों के लिए लक्ष्य निर्धारित कर रहा है.

‘आउटरीच कम्युनिटी रेजिडेंट्स पोस्टिंग’ नामक एक नए कार्यक्रम का वर्णन करते हुए सर्कुलर में कहा गया है कि रेजिडेंट डॉक्टरों को चार समूहों में विभाजित किया जाएगा, जिनमें से प्रत्येक में तीन पीजी छात्र होंगे और उनके साथ एक पीआरओ होगा जो गांवों का दौरा करेंगे और मरीजों को भर्ती करने के लिए लाएंगे.

पीजी छात्रों के एक समूह को मिले पीआरओ में से एक ने अखबार को बताया कि मरीज़ों को लाना मुश्किल नहीं होगा.

पीआरओ ने कहा, ‘हम लोगों से उनके घरों में मिलते हैं और उन्हें बताते हैं कि हमारा अस्पताल उनकी बीमारियों के इलाज के लिए अच्छी सेवाएं दे सकता है, अगर कोई बीमारी है तो.’

इस बीच, एक डॉक्टर, जिन्होंने पूर्व में चिकित्सा शिक्षा के लिए सर्वोच्च नियामक प्राधिकरण, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) से अनैतिक प्रथाओं के बारे में शिकायत की थी, ने कहा कि मथुरा कॉलेज का सर्कुलर आश्चर्यजनक नहीं है.

पंजाब के भटिंडा में परामर्शदाता चिकित्सक वितुल गुप्ता ने कहा, ‘ऐसी चीजें अब मुझे हैरान नहीं करतीं.’

उन्होंने बताया कि उन्होंने पहले भी स्वतंत्र रूप से एनएमसी से शिकायत की थी, जिसमें अनुपस्थित शिक्षकों और खाली मेडिकल वार्डों के लिए एक अन्य निजी मेडिकल कॉलेज के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी.

फैसले के बचाव में कॉलेज प्रशासन

हालांकि, कॉलेज प्रशासन ने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य पीजी छात्रों को ‘कड़ी मेहनत’ करने के लिए प्रोत्साहित करना है.

डॉ. भिसे ने कहा, ‘चूंकि हमारा मेडिकल कॉलेज ग्रामीण क्षेत्र में है, इसलिए हम ग्रामीण क्षेत्रों में शिविर आयोजित करते रहते हैं और हमारे मार्केटिंग कर्मचारी लोगों को हमारी स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में जागरूक करते हैं और उन्हें इसका उपयोग करने के लिए प्रेरित करते हैं.’

भिसे ने कहा, ‘अब विचार यह है कि इस अभ्यास में पीजी रेजीडेंट को शामिल किया जाए और उन्हें लोगों को अपने स्वास्थ्य और सेहत का ख्याल रखने के लिए प्रेरित किया जाए. इस अभ्यास के लिए निर्धारित लक्ष्य काम कर सकता है या नहीं भी कर सकता है, लेकिन इससे रेजीडेंट डॉक्टर कड़ी मेहनत करेंगे और मरीजों के साथ अपने संवाद कौशल में सुधार करेंगे.’

संस्थान के पीजी छात्रों में नाराजगी

द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, इस मेडिकल कॉलेज में 850 बिस्तर हैं और 11 विशेषज्ञताओं में 102 पीजी सीटें उपलब्ध हैं. यह मथुरा स्थित केएम विश्वविद्यालय से संबद्ध है, जिसमें तकनीकी डिग्री प्रदान करने वाले विभिन्न संस्थान शामिल हैं.

संस्थान के सर्कुलर को लेकर पीजी छात्र नाराज हो गए हैं. संस्थान के एक पीजी रेजिडेंट डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर द प्रिंट को बताया, ‘हमने इस तरह के दबावों के बारे में सुना है जो निजी मेडिकल संस्थान रेजिडेंट डॉक्टरों और सलाहकारों पर डालते हैं, लेकिन एक खुला परिपत्र जारी करना और छात्रों को अनुपालन न करने की धमकी देना कॉलेज प्रशासन की दुस्साहसता को दर्शाता है.’

एक अन्य पीजी छात्र ने इस बात पर जोर दिया कि एनएमसी, स्नातक या स्नातकोत्तर चिकित्सा प्रशिक्षण के भाग के रूप में संस्थानों के लिए रोगी भर्ती को अनिवार्य नहीं बनाता है.

एनएमसी के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए न्यूनतम मानक आवश्यकताओं-2023 के तहत प्रशिक्षण प्रदान करने वाले पीजी मेडिकल कॉलेजों में न्यूनतम 200 बिस्तरों की आवश्यकता होती है, जिनमें से 75 प्रतिशत बिस्तरों पर पूरे वर्ष इनपेशेंट देखभाल की आवश्यकता वाले रोगियों को भर्ती रखना होता है.

वहीं, देश भर के रेजिडेंट डॉक्टरों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था यूनाइटेड डॉक्टर्स फ्रंट एसोसिएशन (यूडीएफए) के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. अरुण कुमार ने कॉलेज के कदम को अशिष्टतापूर्ण बताया और सरकार से हस्तक्षेप की मांग की.

कुमार ने कहा, ‘कॉरपोरेट अस्पतालों में मरीजों के लिए इस तरह का लक्ष्य निर्धारण एक खुला रहस्य है, लेकिन एक कॉलेज द्वारा पीजी रेजीडेंट से अस्पताल में भर्ती होने के लिए खुलेआम पूछना एक नई बात है और यह दर्शाता है कि निजी मेडिकल कॉलेजों को न तो मेडिकल शिक्षा नियामक और न ही सरकार का डर है.’

कुमार ने कहा कि उनका संगठन एनएमसी को पत्र लिखकर कॉलेज के खिलाफ कार्रवाई करने का अनुरोध करेगा.