केरल: विधानसभा ने यूजीसी के नए मसौदा नियमों के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पारित किया

यूजीसी के नए ड्राफ्ट नियमों के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पारित करने वाला केरल देश का पहला राज्य है. कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे ग़ैर-भाजपा शासित राज्यों ने भी इन नियमों की आलोचना की है. एनडीए की प्रमुख सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) ने भी इन मसौदा नियमों पर आपत्ति व्यक्त की है.

केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन. (फोटो साभार: facebook/@CMOKerala)

नई दिल्ली: केरल विधानसभा ने मंगलवार (21 जनवरी) को सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के मसौदा नियमों को वापस लेने का आग्रह किया है. मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने इस नए मसौदे को संघीय सिद्धांतों के खिलाफ बताया है.

यूजीसी ने हाल ही में नए नियम जारी किए हैं, जो राज्यपालों को राज्यों में कुलपतियों को नियुक्त करने का प्रभावी रूप से व्यापक अधिकार देते हैं और इसके साथ ही इस पद पर उद्योग विशेषज्ञों और सार्वजनिक क्षेत्र के लोगों की भी नियुक्ति हो सकती है. पहले इस पद पर केवल शिक्षाविदों को नियुक्ति होती थी. 

कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे गैर-भाजपा शासित राज्यों ने भी इन मसौदा नियमों की आलोचना की है. केरल में सीपीआई (एम) और कांग्रेस दोनों इसके खिलाफ एकजुट हुए थे और कहा था कि ‘यह उच्च शिक्षा में संघ परिवार के एजेंडे का हिस्सा था.’

पिछले हफ्ते केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष ने मांग की थी कि विधानसभा मसौदा नियमों के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित करे.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, मंगलवार (21 जनवरी) को सीएम पिनाराई ने केरल विधानसभा में इस प्रस्ताव को पेश किया था. विपक्षी सदस्यों ने इस प्रस्ताव में कुछ संशोधनों का सुझाव दिया, लेकिन सुझावों पर विचार किए बिना ही प्रस्ताव को पारित कर दिया गया.

यूजीसी ड्राफ्ट नियमों के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने वाला केरल देश का पहला राज्य है.

प्रस्ताव में विजयन ने कहा कि विधानसभा का मानना ​​है कि यूजीसी का मसौदा संघीय सिद्धांतों और लोकतांत्रिक प्रणाली के खिलाफ है. प्रस्ताव में कहा गया, ‘यह मसौदा कुलपतियों की नियुक्ति में राज्य सरकारों की राय को पूरी तरह से नजरअंदाज करता है और संविधान की भावना को आहत करता है.’

सीएम ने मसौदा नियमों को उच्च शिक्षा क्षेत्र के व्यवसायीकरण के लिए एक कदम मात्र बताया. प्रस्ताव में कहा गया है कि बदलते नियमों को उच्च शिक्षा को धार्मिक और सांप्रदायिक विचारों का प्रचार करने वालों के चंगुल में फसाने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है.

प्रस्ताव में कहा गया है, ‘विश्वविद्यालयों और अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों के कामकाज के लिए लगभग 80 प्रतिशत पैसा राज्य सरकारों द्वारा खर्च किया जाता है. विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता को बनाए रखने में राज्य सरकारों की प्रमुख भूमिका रहती है. केरल विधानसभा का मानना ​​है कि केंद्र सरकार और यूजीसी का मकसद राज्य सरकारों को कुलपतियों सहित अन्य नियुक्तियों से पूरी तरह दूर रखना है. यह अलोकतांत्रिक है और इसे सही करने की जरूरत है.’ 

इससे पहले भी सीएम विजयन ने इन नियमों की आलोचना की थी और कहा था कि केंद्र यूजीसी के नए नियमों से राज्य विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता कमज़ोर कर रहा है.

मालूम हो कि यूजीसी के नए नियम राज्यों में राज्यपालों को कुलपतियों की नियुक्ति के लिए व्यापक अधिकार प्रदान करते हैं. साथ ही कहते हैं कि अब वीसी का पद शिक्षाविदों तक सीमित नहीं है, बल्कि उद्योग विशेषज्ञों और सार्वजनिक क्षेत्र के दिग्गजों को भी वीसी बनाया जा सकता है.

नए नियमों में कहा गया है, ‘कुलपति/विजिटर तीन विशेषज्ञों वाली खोज-सह-चयन समिति (Search-cum-Selection Committee) का गठन करेंगे.’ पहले, नियमों में उल्लेख किया गया था कि कुलपति के पद के लिए इस समिति द्वारा गठित 3-5 व्यक्तियों के पैनल द्वारा उचित पहचान के माध्यम से किया जाना चाहिए, लेकिन यह निर्दिष्ट नहीं किया गया था कि समिति का गठन कौन करेगा.

बता दें कि इस मुद्दे पर तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि के साथ चल रही खींचतान के बीच मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने पिछले दिनों कहा था कि यूजीसी के नए नियम राज्यपालों को कुलपतियों की नियुक्तियों पर व्यापक नियंत्रण प्रदान करते हैं और गैर-शैक्षणिक लोगों को इन पदों पर रहने की अनुमति देते हैं, जो संघवाद और राज्य के अधिकारों पर सीधा हमला है.

एनडीए सहयोगी भी नियमों के खिलाफ

इसी बीच, एनडीए सरकार के प्रमुख सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) ने भी इन मसौदा नियमों पर आपत्ति व्यक्त की है. पार्टी ने कहा कि यह उच्च शिक्षा के लिए राज्य के अपने रोड मैप पर असर डालेगा. 

जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने द हिंदू से कहा कि इन नियुक्तियों में राज्य की भूमिका को सीमित करना, उच्च शिक्षा के लिए रोड मैप तैयार करने के राज्य सरकार के प्रयासों में बाधा होगी. 

राजीव रंजन ने कहा, ‘हमने यूजीसी के मसौदा प्रस्ताव को पूरी तरह से नहीं पढ़ा है, लेकिन अब तक जो भी रिपोर्ट किया जा रहा है, उससे हमें कुलपतियों की नियुक्ति में निर्वाचित सरकारों की भूमिका सीमित करने को लेकर चिंता है. यह उच्च शिक्षा के लिए राज्य सरकार के रोड मैप को प्रभावित करेगा.’