नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (22 जनवरी) को असम सरकार को देश के सबसे बड़े डिटेंशन सेंटर- मटिया ट्रांजिट कैंप में 270 विदेशी नागरिक को हिरासत में लेने का कारण न बताने को लेकर फटकार लगाई. साथ ही मुख्य सचिव को सुनवाई की अगली तारीख पर वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उपस्थित रहने का निर्देश दिया.
जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस एनके सिंह की पीठ ने कहा कि कोर्ट ने 9 दिसंबर को राज्य सरकार को हलफनामा दाखिल करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया था और उम्मीद की थी कि वह ट्रांजिट कैंप में 270 विदेशी नागरिकों को हिरासत में लेने के कारणों के अलावा उनके निर्वासन के लिए उठाए गए कदमों का भी विवरण भी देगी.
समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, पीठ ने कहा, ‘हलफनामे में हिरासत में लेने का कोई कारण नहीं बताया गया है, निर्वासन के लिए उठाए गए कदमों का भी उल्लेख नहीं किया गया है. यह इस कोर्ट के आदेशों का घोर उल्लंघन है. हम मुख्य सचिव को वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उपस्थित रहने और गैर-अनुपालन पर स्पष्टीकरण देने का निर्देश देते हैं.’
राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि हिरासत में लिए गए लोगों को विदेशी ट्रिब्यूनल्स द्वारा विदेशी घोषित किए जाने के बाद ही हिरासत में लिया गया था. और उन्होंने अवैध प्रवासियों के निर्वासन की व्यवस्था के बारे में कोर्ट को बताया.
शीर्ष अदालत ने पूछा कि निर्वासन प्रक्रिया शुरू किए बिना उन्हें लगातार हिरासत में क्यों रखा जा रहा है.
असम सरकार के वकील के इस जवाब से अदालत ने नाराजगी व्यक्त की जहां उन्होंने कहा कि हलफनामा गोपनीय है और सीलबंद रहना चाहिए.
पीठ ने कहा, ‘इससे पता चलता है कि राज्य इस बारे में स्पष्टता नहीं चाहता. हमें बताया जाए कि हलफनामे में क्या गोपनीय है.’ इस पर सरकारी वकील ने कहा कि हलफनामे में विदेशी नागरिकों का पता दर्ज है, और यह विवरण मीडिया के पास जा सकता हैं.
पीठ ने कहा, ‘असम सरकार के वकील का कहना है कि दायर हलफनामे को सीलबंद लिफाफे में रखा जाना चाहिए, क्योंकि इसकी सामग्री गोपनीय है. हालांकि हम निर्देश दे रहे हैं कि इसे सीलबंद लिफाफे में ही रखा जाए, लेकिन प्रथमदृष्टया हम वकील से असहमत हैं कि सामग्री के बारे में कुछ गोपनीय है.’
शीर्ष अदालत ने असम राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण को मटिया शिविर में उपलब्ध सुविधाओं, स्वच्छता और भोजन की गुणवत्ता की जांच करने के लिए आकस्मिक निरीक्षण करने का निर्देश दिया था.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ विदेशी नागरिकों के निर्वासन और असम के हिरासत शिविरों में उपलब्ध सुविधाओं से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
पिछले साल 16 मई को मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि मटिया के हिरासत केंद्र में 17 विदेशी नागरिकों को निर्वासित करने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए. कोर्ट ने कहा था कि चार लोगों के निर्वासन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जिन्होंने हिरासत केंद्र में दो साल से अधिक समय बिताया है.
केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार 2.5 हेक्टेयर में बनाए गए मटिया ट्रांजिट कैंप में 400 महिलाओं सहित 3,000 लोग रह सकते हैं.
मटिया ट्रांजिट शिविर की निगरानी और नियंत्रण गोआलपाड़ा जिला प्रशासन द्वारा किया जाता है और बताया गया है कि यहां अस्पताल, स्कूल, मनोरंजन केंद्र, भोजन और अन्य सुविधाएं भी हैं.
उल्लेखनीय है कि 2019 के एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसे ‘घोषित विदेशी’ जिन्होंने तीन साल से अधिक समय हिरासत केंद्रों में बिताया है, उन्हें जमानत दी जा सकती है. गौहाटी हाईकोर्ट ने कोविड-19 महामारी की शुरुआत में इस शर्त को दो साल कर दिया था, जिसके बाद सैकड़ों ‘घोषित विदेशियों’ को जमानत मिली थी.