लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

मुंबई के नेहरू नगर, चूना भट्टी और आसपास के निवासियों की तेज़ लाउडस्पीकर के ख़िलाफ़ पुलिस के कार्रवाई न करने की शिकायत सुनते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई पुलिस से कहा कि वे पहले चेतावनी दें, उसके बाद भी यदि उल्लंघन हो तो लाउडस्पीकर, या ऐसे अन्य उपकरण ज़ब्त कर लें.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

नई दिल्ली: बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार (23 जनवरी) को मुंबई पुलिस को ध्वनि प्रदूषण (विनियम और नियंत्रण) नियम, 2000 कानून का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया. उसका कहना था कि ‘लाउडस्पीकर का उपयोग किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है,’

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, हाईकोर्ट ने मुंबई पुलिस को उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का निर्देश दिया और महाराष्ट्र सरकार से कहा कि वह ऐसे स्थानों पर उपयोग किए जाने वाले लाउडस्पीकरों और ऐसे अन्य उपकरणों के लिए ध्वनि सीमा के निर्धारित करने के लिए पुलिस अधिकारियों को निर्देश जारी करने पर गंभीरता से विचार करे.

अदालत ने ये निर्देश जागो नेहरू नगर रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन और द शिवसृष्टि को-ऑप हाउसिंग सोसायटी एसोसिएशन लिमिटेड, उपनगरीय नेहरू नगर, कुर्ला (पूर्व) और चूनाभट्टी क्षेत्र के निवासियों की याचिका पर दिए. याचिका में क्षेत्र में मस्जिदों जैसे धार्मिक स्थलों पर निर्धारित घंटों और डेसिबल सीमा से परे लाउडस्पीकर और एम्प्लीफायर के उपयोग के खिलाफ पुलिस के कार्रवाई न करने का आरोप लगाया गया है.

मामले की सुनवाई में हाईकोर्ट ने 2016 के अपने उस फैसले का हवाला दिया, जिसमें ध्वनि प्रदूषण (विनियम और नियंत्रण) नियम, 2000 का सख्ती से पालन करने के लिए कई निर्देश जारी किए गए थे. हाईकोर्ट ने तब यह पाया था कि ‘लाउडस्पीकर का उपयोग किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है, और इसलिए संविधान के अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता) के अंतर्गत प्राप्त संरक्षण, उल्लंघन करने वाली संस्थाओं पर लागू नहीं होती. 

जस्टिस अजय एस. गडकरी और जस्टिस श्याम सी. चांडक की पीठ ने फैसले में कहा, ‘मुंबई एक महानगर है, जाहिर तौर पर शहर के हर हिस्से में अलग-अलग धर्मों के लोग रहते हैं. शोर स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा है. कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि अगर उसे अनुमति नहीं दी गई तो उसके अधिकार किसी भी तरह से प्रभावित होंगे. सार्वजनिक हित को ध्यान में रखते हुए इसके उपयोग कि अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, लाउडस्पीकर का उपयोग किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है.’ 

पीठ ने आगे कहा, ‘हमारे अनुसार, यह पुलिस अधिकारियों और सरकार का कर्तव्य है कि उन्हें कानून के प्रावधानों द्वारा निर्धारित सभी आवश्यक उपाय को अपनाकर कानून को लागू करना चाहिए. एक लोकतांत्रिक राज्य में ऐसी स्थिति नहीं हो सकती कि कोई व्यक्ति यह कह सके कि वह देश के कानून का पालन नहीं करेगा और कानून लागू करने वाले इसके प्रति  मूकदर्शक बने रहेंगे.’ 

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि उन्होंने नेहरू नगर (कुर्ला पूर्व) और चूनाभट्टी थानों में शिकायत की थी और मस्जिदों और मदरसों के पास सुबह 5 बजे काफी ध्वनि प्रदूषण होने की सूचना दी थी, और यह भी कहा था कि त्योहारों पर देर रात 1.30 बजे तक लाउडस्पीकर बजाया जाता है. 

याचिका में ध्वनि प्रदूषण नियमों और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले अपराधियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए चूनाभट्टी और नेहरू नगर थानों को निर्देश देने की मांग की गई है और साथ ही मुंबई पुलिस आयुक्त (सीपी) को जोनल डिप्टी सीपी (जोन 6) और स्थानीय थाने के अधिकारियों के खिलाफ अपने कर्तव्यों के निर्वहन में विफलता के लिए कार्रवाई करने का निर्देश देने की मांग की गई थी.

मालूम हो कि ध्वनि प्रदूषण मानदंडों के अनुसार, आवासीय क्षेत्रों में दिन के समय में डेसिबल का स्तर अधिकतम 55 और रात के दौरान 45 डेसिबल होना चाहिए. हालांकि, पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) के 2023 के हलफनामे के अनुसार, संबंधित दो मस्जिदों में डेसिबल का स्तर 80 डेसिबल से ऊपर था.

हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर न्यायिक संज्ञान लेते हुए कहा, ‘आम तौर पर लोग चीजों के बारे में तब तक शिकायत नहीं करते हैं जब तक कि यह असहनीय और उपद्रव न बन जाए.’

पीठ ने मुंबई सीपी से कहा कि सभी पुलिस अधिकारियों को डेसिबल स्तर मापने वाले मोबाइल एप्लिकेशन का उपयोग करने और कानून का उल्लंघन कर ध्वनि प्रदूषण करने वाले लाउडस्पीकर या अन्य उपकरणों को जब्त करने का निर्देश दें.

कोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शिकायतकर्ताओं की पहचान अपराधियों के सामने उजागर न की जाए, ताकि उन्हें निशाना ना बनाया जाएं. 

हाईकोर्ट ने कहा कि पहली बार में पुलिस कथित अपराधी को चेतावनी दे सकती है और बार-बार उल्लंघन करने पर महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार संबंधित ट्रस्टों या संगठनों पर जुर्माना लगा सकती है. और आगे उल्लंघन के मामले में उन्हें सख्त कार्रवाई की चेतावनी दे सकती है.

अदालत ने कहा कि अगर फिर भी ऐसा किया जाता है तब पुलिस लाउडस्पीकर जब्त कर ले सकती है और ऐसे उपकरणों का उपयोग करने के लिए संस्थानों को जारी लाइसेंस रद्द करने के लिए कदम उठा सकती है.