बेंगलुरु: इंफोसिस के सह-संस्थापक क्रिस गोपालकृष्णन सहित 18 लोगों पर एससी/एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज

इंफोसिस के सह-संस्थापक क्रिस गोपालकृष्णन समेत अन्य के ख़िलाफ़ स्थानीय कोर्ट के निर्देशों के आधार केस पर दर्ज किया गया है. मामला आईआईएससी के एक पूर्व फैकल्‍टी सदस्‍य की शिकायत से जुड़ा है, जिनका आरोप है कि दलित होने के चलते 2014 में उन्हें एक हनी ट्रैप केस में झूठा फंसाया गया और बर्ख़ास्त कर दिया गया.

क्रिस गोपालकृष्णन. (फोटो साभार: विकिपीडिया)

नई दिल्ली: इंफोसिस के सह-संस्थापक क्रिस गोपालकृष्णन और भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के पूर्व निदेशक बालाराम सहित 18 लोगों पर बेंगलुरु की सदाशिवनगर पुलिस ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, यह मामला 27 जनवरी को सदाशिव नगर थाने में सिटी सिविल और सेशन कोर्ट (सीसीएच) के निर्देशों के आधार पर दर्ज किया गया है. अदालत ने क्षेत्राधिकारी पुलिस को जांच का निर्देश भी दिया है.

समाचार एजेंसी पीटीआई ने पुलिस के हवाले से यह जानकारी दी कि मामला भारतीय विज्ञान संस्थान के एक फैकल्‍टी सदस्‍य की शिकायत पर दर्ज किया गया है. शिकायतकर्ता दुर्गप्पा बौवी जनजाति से आते हैं और उनका आरोप है कि भारतीय विज्ञान संस्थान के सेंटर फॉर सस्टेनेबल टेक्नोलॉजी में फैकल्टी रहने के दौरान 2014 में उन्हें हनी ट्रैप मामले में झूठा फंसाया गया और बाद में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया.

ज्ञात हो कि क्रिस गोपालकृष्‍णन भारतीय विज्ञान संस्थान के बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज के सदस्य हैं. रिपोर्ट के अनुसार, दुर्गप्पा ने आगे आरोप लगाया कि उन्हें जातिसूचक गालियां और धमकियां दी गईं. इस मामले में अन्य आरोपियों में गोविंदन रंगराजन, श्रीधर वारियर, संध्या विश्वेश्वरैया, हरी केवीएस, दासप्पा, बालाराम पी., हेमलता मिषी, चट्टोपाध्याय के, प्रदीप डी. सावकर और मनोहरन शामिल हैं.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, कोर्ट में दायर याचिका में दुर्गप्पा का कहना है कि उन पर एक शादीशुदा महिला को ‘खूबसूरत’ कहने का आरोप है. इस संबंध में महिला ने यौन उत्पीड़न शिकायत समिति (एसएचसीसी) के समक्ष शिकायत दर्ज की थी. समिति इस निष्कर्ष पर पहुंची कि ‘सुंदर’ शब्द यौन उत्पीड़न है. इसके बाद दुर्गप्पा को नौकरी से निकाल दिया गया.

दुर्गप्पा ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के तहत एसएचसीसी में एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) का प्रतिनिधि होना चाहिए, लेकिन संस्थान के यौन उत्पीड़न शिकायत समिति में ऐसा कोई सदस्य शामिल नहीं था.

दुर्गप्पा ने अगस्त 2017 में कर्नाटक विधानसभा एससी/एसटी समिति से जांच का अनुरोध किया था. एक महीने बाद आई जांच रिपोर्ट में कहा गया कि कोई यौन उत्पीड़न नहीं हुआ था, और दुर्गप्पा को बाहर कर दिया गया क्योंकि वह दलित हैं.

दुर्गप्पा ने कहा कि उन्हें काम पर बहाल किया जाना चाहिए था. उन्होंने कहा कि दो बार 19 मई, 2017 और 9 अक्टूबर, 2020 को आईआईएससी के निदेशक से मुलाकात की. इस दौरान उन्होंने बहाली के लिए अपनी समीक्षा याचिका दायर की. हालांकि, उन्हें कथित तौर पर पुलिस शिकायत की धमकियों का सामना करना पड़ा. अपनी जाति को लेकर प्रशासन पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाते हुए दुर्गप्पा ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है.

फिलहाल इस मामले में अभी आईआईएससी फैकल्टी या आईआईएससी बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज़ के सदस्य के रूप में कार्यरत क्रिस गोपालकृष्णन की ओर से कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है.