नई दिल्ली: वफ़्फ़ (संशोधन) विधेयक पर गठित संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने बुधवार (29 जनवरी) को अपनी रिपोर्ट को बहुमत से स्वीकार कर लिया, जिससे सरकार के लिए संसद के आगामी बजट सत्र के दौरान इस विधेयक को आगे बढ़ाने का रास्ता साफ हो गया है.
हालांकि, विपक्ष के सभी 11 सदस्यों ने इस विधेयक पर असहमति जताते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया. ‘
द हिंदू की खबर के मुताबिक, विपक्ष ने आरोप लगाया कि इससे नए विवाद खुलेंगे और वफ़्फ़ संपत्तियां खतरे में पड़ जाएंगी. विपक्षी सदस्यों ने समिति के कामकाज में प्रक्रियात्मक खामियों की ओर भी इशारा किया.
डीएमके सांसद ए. राजा और एमएम अब्दुल्ला ने इसे ‘वफ़्फ़ विनाश विधेयक’ बताया और वफ़्फ़ (संशोधन) विधेयक में ‘उपयोगकर्ता द्वारा वफ़्फ़’ खंड को हटाने के प्रस्ताव पर आपत्ति जताई. सांसदों ने तर्क दिया कि यह प्रावधान बहुत लंबे समय से अस्तित्व में है.
ए. राजा ने कहा कि ‘उपयोगकर्ता द्वारा वफ़्फ़’ का प्रावधान पैगंबर मोहम्मद के समय से मौजूद है और इसे हटाने का कोई भी कदम मुस्लिम समुदाय के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा.
इस संबंध में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन (एआईएमआईएम) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने 231 पन्नों का असहमति नोट दायर किया. उनका कहना है कि 1995 अधिनियम ने उपयोगकर्ता द्वारा वफ़्फ़ का निर्माण नहीं किया, बल्कि इसे केवल वैधानिक मान्यता दी.
ओवैसी ने कहा कि ‘उपयोगकर्ता द्वारा वफ़्फ़’ को हटाने वाले खंड में प्रावधान को अंतिम समय में शामिल करना गैरजरूरी था क्योंकि इसका इम्तिहान उन मामलों में होगा जहां संपत्ति विवाद है, जबकि ऐसी स्थिति में यह लागू नहीं होगा.
वफ़्फ़ संपत्तियों की जांच और सरकारी दावा
ओवैसी ने आगे कहा कि इस आशंका को दूर करने की कोशिश करते हुए कि संशोधित वफ़्फ़ कानून लागू होने के बाद मौजूदा वफ़्फ़ संपत्तियों की जांच की जाएगी, संसद की संयुक्त समिति ने सिफारिश की है कि ऐसी संपत्तियों के खिलाफ पूर्वगामी आधार पर कोई मामला फिर से नहीं खोला जाएगा, बशर्ते कि संपत्ति विवाद में न हो या सरकार की न हो.
इस मामले पर कांग्रेस के लोकसभा में उप नेता गोगोई ने कहा, ‘गलत नीयत वाला कोई व्यक्ति ‘उपयोगकर्ता द्वारा वफ़्फ़’ से संबंधित संपत्तियों के किसी भी हिस्से पर मुकदमा दायर कर सकता है और परिणामस्वरूप संपत्ति को संशोधित अधिनियम के तहत किसी भी संरक्षण से वंचित कर सकता है.’
गोगोई ने आगे कहा कि विधेयक देश में वफ़्फ़ और वफ़्फ़ संपत्तियों के कामकाज, नियंत्रण और प्रबंधन में अत्यधिक सरकारी हस्तक्षेप की अनुमति देता है. इसका समुदाय के साथ-साथ स्वायत्त संस्थान पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ता है, जबकि यह संस्थान को संचालित करने के लिए आवश्यक है.
गोगोई के मुताबिक, ‘सरकार के अपने रिकॉर्ड से पता चला है कि कुल दर्ज 8.72 लाख वफ़्फ़ संपत्तियों में से 4.02 लाख ‘उपयोगकर्ता द्वारा वफ़्फ़’ की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं. इस अवधारणा को हटाकर विधेयक भारत में ऐसे किसी भी वफ़्फ़ के अस्तित्व के लिए कोई गुंजाइश नहीं छोड़ता है.’
ओवैसी ने चेतावनी देते हुए कहा कि इस प्रावधान को हटाना, वो भी ऐसे समय में जब विभाजनकारी तत्वों द्वारा मुस्लिम धार्मिक स्थलों के रूप में प्राचीन मस्जिदों और दरगाहों की स्थिति पर सवाल उठाने वाले शरारती दावे किए हैं, इन विवादों में मुस्लिम पक्ष की रक्षा को कमजोर करना है .
सेंट्रल वफ़्फ़ काउंसिल में गैर मुसलमानों को शामिल करना
विपक्ष द्वारा दायर लगभग सभी असहमति नोटों में इस प्रावधान की आलोचना की गई है. ओवैसी ने कहा कि इससे वफ़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन पर मुसलमानों का विशेष नियंत्रण कमजोर हो जाएगा. हिंदू, सिख और अन्य धार्मिक बंदोबस्ती के प्रबंधन को नियंत्रित करने वाले अनुरूप क़ानूनों के साथ तुलना इस संशोधन की भेदभावपूर्ण प्रकृति को उजागर करती है.
उन्होंने अपने तर्क का समर्थन करने के लिए तमिलनाडु हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम, 1959 और सिख गुरुद्वारा अधिनियम, 1925 का हवाला दिया, जो बताता है कि केवल संबंधित धार्मिक समुदायों के सदस्य ही शासी निकायों की सदस्यता के लिए पात्र हैं.
कांग्रेस के तीन सांसद सैयद नसीर हुसैन, इमरान मसूद और मोहम्मद जावेद ने एक संयुक्त असहमति नोट में कहा कि प्रावधान ये सवाल उठाता है कि क्या अन्य धार्मिक बंदोबस्ती कृत्यों में अन्य धर्मों के अनुयायियों को भी शामिल किया जाना चाहिए. इस तरह की मिसाल से भानुमती का पिटारा खुल जाएगा, जिसके लिए सभी धार्मिक कानूनों में समान बदलाव की आवश्यकता होगी, जो व्यावहारिक या वांछनीय नहीं है.
शिवसेना (यूबीटी) सदस्य अरविंद सावंत ने कहा कि इस तरह के प्रावधान से अराजकता पैदा होगी.
कम से कम पांच साल तक इस्लाम का पालन करने वाला व्यक्ति ही वफ़्फ़ को संपत्ति दान कर सकता है
तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी और नदीमुल हक ने अपने संयुक्त असहमति नोट में कहा कि यह प्रावधान पूरी तरह से अनुचित, तर्कहीन और स्पष्ट रूप से मनमाना है.
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सांसदों ने मूल अधिनियम में संशोधन पर आपत्ति जताई, जिसमें कहा गया है कि यदि इस अधिनियम के लागू होने से पहले या बाद में किसी सरकारी संपत्ति की पहचान या वफ़्फ़ संपत्ति के रूप में की जाती है, तो वह वफ़्फ़ संपत्ति नहीं होगी.
संशोधन में कहा गया है कि यदि संपत्ति के सरकारी संपत्ति होने के संबंध में कोई प्रश्न उठता है तो इस मुद्दे को निर्णय के लिए राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित कलेक्टर रैंक से ऊपर के अधिकारी को भेजा जाएगा.
टीएमसी नेताओं ने कहा, ‘सरकार का काम अनधिकृत तरीके का सहारा लेकर अपनी संपत्ति बनाना नहीं है. जब सरकार अतिक्रमण करने वाले के रूप में कार्य करती है, तो प्रस्तावित संशोधन द्वारा ऐसे अनधिकृत कृत्यों को वैध नहीं बनाया जा सकता है.’
ओवैसी ने बताया कि कानून में ऐसा कोई अन्य उदाहरण नहीं है, जहां किसी वयस्क के अपनी संपत्ति से निपटने के अधिकार पर जिस भी तरीके से वे उचित समझें, प्रतिबंध लगाया गया हो.
यह विधेयक किसी सरकारी संपत्ति को वफ़्फ़ घोषित किए जाने पर विवाद होने पर जिला कलेक्टर को मध्यस्थता करने की शक्ति देता है. तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने अपने असहमति नोट में कहा कि इस मुद्दे को अदालतों में निपटाए जाने वाले नागरिक विवाद के रूप में माना जाना चाहिए.
मालूम हो कि इससे पहले संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने विपक्षी सांसदों द्वारा सुझाए 44 संशोधनों को खारिज करते हुए और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) खेमे से 14 को स्वीकार कर लिया था.
समिति के अध्यक्ष और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता जगदंबिका पाल ने पिछले सप्ताह 10 विपक्षी सांसदों को निलंबित कर दिया था, जिसके बाद वफ़्फ़ समिति को ‘तानाशाही तरीके’ से चलाने के आरोप लगे थे. ये कदम उसके बाद सामने आया था.
ज्ञात हो कि इस जेपीसी में संसद के दोनों सदनों से 31 सदस्य हैं. इसमें से एनडीए से 16, जिसमें भाजपा से 12 शामिल हैं, विपक्षी दलों से 13, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी से एक और एक नामित सदस्य हैं.
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 08 अगस्त को लोकसभा में वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक 2024 को पेश किया था. हालांकि, विपक्षी सांसदों के विरोध के चलते इस विधेयक को संयुक्त समिति को भेज दिया गया. इस समिति ने 22 अगस्त को पहली बैठक की थी. इस समिति को संसद के शीतकालीन सत्र के पहले सप्ताह के अंत तक अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी, जिसे विपक्षी सदस्यों ने आगे बढ़ाने की मांग की थी.
इस समिति की कई बैठकें विवादों में रही हैं. इससे पहले विपक्षी सदस्यों ने ओम बिड़ला को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि समिति की कार्यवाही अध्यक्ष जगदंबिका पाल द्वारा पक्षपातपूर्ण तरीके से संचालित की जा रही है. वहींं, इस संबंध में समिति के अध्यक्ष पाल ने कहा था कि बैठकों के दौरान विपक्षी सदस्यों को बोलने के पर्याप्त अवसर दिए जाते हैं.