नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद और केंद्रीय मंत्री सुरेश गोपी ने रविवार (2 फरवरी) को यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया कि ‘उच्च’ जाति के व्यक्ति को आदिवासी मामलों का मंत्री बनाया जाना चाहिए और पिछड़ी जाति के व्यक्ति को ‘उच्च’ जाति के सशक्तिकरण मंत्री बनाया जाना चाहिए.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, बयान को लेकर आलोचना झेलने के बाद उन्होंने कहा कि ऐसा कहने के पीछे उनका केवल ‘नेक इरादा’ था, लेकिन अगर लोग उनके बयान से खुश नहीं हैं, तो वह इसे वापस ले रहे हैं.
दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए पूर्वी दिल्ली के मयूर विहार, जहां केरल के लोगों की अच्छी खासी आबादी है, में भाजपा के लिए प्रचार करते हुए गोपी ने कहा, ‘यह हमारे देश का एक और अभिशाप है कि कोई गैर-आदिवासी व्यक्ति आदिवासी मामलों का मंत्री नहीं बन सकता. यह मेरी इच्छा और सपना है कि आदिवासी समुदाय के सशक्तिकरण के लिए कोई उच्च जाति का व्यक्ति आदिवासी मामलों का मंत्री बने. अगर कोई आदिवासी व्यक्ति है, जिसे आदिवासी मामलों का मंत्री बनना है, तो उसे उच्च जाति समुदाय के सशक्तिकरण के लिए मंत्री बनाया जाना चाहिए. यह बदलाव हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में होना चाहिए.’
उन्होंने कहा, ‘आदिवासियों के मामलों को ब्राह्मण या नायडू को देखने दीजिए, बड़ा बदलाव आएगा. मैंने मोदी जी से यह अनुरोध किया है, लेकिन इन चीजों के लिए कुछ रीति-रिवाज हैं.’
गोपी ने यह भी कहा कि 2016 में जब से वह राज्यसभा सांसद बने हैं, तब से वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध कर रहे हैं कि वह नागरिक उड्डयन विभाग नहीं चाहते हैं और इसके बजाय उन्हें जनजातीय मामलों का विभाग दिया जाए.
अपनी टिप्पणियों पर विवाद खड़ा होने के बाद गोपी ने रविवार को स्पष्टीकरण देते हुए कहा, ‘मैंने कहा था कि आदिवासियों के मामलों को देखने के लिए एक उच्च जाति के व्यक्ति को आना चाहिए और एक पिछड़े समुदाय के व्यक्ति को उच्च जाति की समस्याओं को देखना चाहिए… मेरे इरादे नेक थे और मैंने केवल इतना कहा था कि हमें मौजूदा व्यवस्था से अलग हो जाना चाहिए. लेकिन अगर आपको लगता है कि मेरा बयान सही नहीं है, तो मैं इसे वापस ले रहा हूं.’
दिल्ली विधानसभा चुनाव 5 फरवरी को होने हैं और नतीजे 8 फरवरी को घोषित किए जाएंगे.
गोपी की टिप्पणी की केरल में व्यापक आलोचना
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सीपीआई के राज्य सचिव बिनय विश्वम ने गोपी पर निशाना साधते हुए उन्हें ‘चतुर्वर्ण्य’ (जाति व्यवस्था) का प्रचारक बताया और उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल से हटाने की मांग की.
उन्होंने कहा, ‘वह अपनी टिप्पणी वापस ले सकते हैं और माफ़ी मांग सकते हैं. लेकिन देश ने उनकी टिप्पणी देखी और सुनी है. वह और उनकी पार्टी ‘चतुर्वर्ण’ व्यवस्था के समर्थक हैं जो मनुस्मृति और उसके जातिवादी विचारों का समर्थन करते हैं.’
वरिष्ठ सीपीआई (एम) नेता और अलाथुर के सांसद के. राधाकृष्णन ने कहा कि गोपी की टिप्पणी उनकी संवैधानिक शपथ का उल्लंघन है.
उन्होंने कहा, ‘उन्होंने संविधान की शपथ ली है. संविधान में कहा गया है कि सभी नागरिक समान हैं. उनकी टिप्पणी संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन है. साथ ही, कौन तय करता है कि कोई व्यक्ति ‘उच्च जाति’ से है?’
कांग्रेस सांसद राजमोहन उन्नीथन ने कहा कि गोपी की टिप्पणी उनकी ‘राजनीतिक अपरिपक्वता’ को दर्शाती है. उन्होंने कहा, ‘एक व्यक्ति जो जमीनी स्तर से शुरू होकर राजनीति की सीढ़ी के शीर्ष पायदान तक पहुंचता है, वह कभी ऐसी बातें नहीं कहेगा. उसे और अधिक राजनीतिक अनुभव की आवश्यकता है.’