नई दिल्ली: बीते 1 फरवरी को छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के गंगालूर इलाके में हुए मुठभेड़ को ग्रामीणों और कार्यकर्ताओं ने अब फर्जी बताया है.
गौरतलब है कि पुलिस ने तोड़का-कोरचेली के जंगल में हुए इस मुठभेड़ में आठ इनामी माओवादियों को मारने का दावा करते हुए उन्हें गंगालूर एरिया कमेटी सदस्य और मिलिशिया कंपनी के सदस्य बताया था. साथ ही एक इंसास राइफल और एक बीजीएल लॉन्चर सहित कुछ हथियार, माओवादी सामाग्री बरामद करने का दावा किया था.
पुलिस के अनुसार, कमलेश नीलकंठ (24) पश्चिम बस्तर डिवीजन, गंगालूर एरिया कमेटी का सदस्य था और उन पर पांच लाख रुपये का इनाम घोषित था. ताती कमलू (30), मंगल ताती (35) गंगालूर लोकल ऑर्गनाइजेशन स्क्वाड (एलओएस) के सदस्य थे और उन पर तीन-तीन लाख रुपये का इनाम था. पुलिस ने लच्छू पोटाम (40) मिलिशिया कमांडर एक लाख रुपये का इनामी, शंकर ताती (26) जनताना सरकार उपाध्यक्ष एक लाख रुपये का इनामी, राजू ताती सावनार जनताना सरकार उपाध्यक्ष एक लाख रुपये का इनामी, विज्जू पदम (22) मिलिशिया कंपनी सदस्य, सन्नू ताती जनता सरकार कमांडर बताया था.
हालांकि अब इस मुठभेड़ को लेकर सवाल उठे हैं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की फैक्ट-फाइडिंग टीम ने जांच करने के बाद कहा है कि यह मुठभेड़ फर्जी थी.
‘द वायर हिंदी’ से बातचीत में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने बताया कि एक फरवरी को कोरचेली और तोड़का गांवों में सुरक्षा बलों की कई टीमें अगल-अलग दिशाओं से गईं थीं.
‘कोरचेली गांव से लोगों को जंगल की ओर भगाया. तोड़का गांव में भी सुरक्षाकर्मी घुसे थे. वहां से भी लोगों को खदेड़ा. सभी दिशाओं से लोगों को तोड़का के पहाड़ी की ओर खदेड़ा गया. वहां पहले से सुरक्षा बलों की एक टीम घात लगाए बैठी थी. लोगों के वहां पहुंचते ही उसने अंधाधुंध गोलीबारी शुरू की,’ उनका कहना था.
उन्होंने यह भी बताया कि पुलिस ने मारे गए लोगों के शवों को उनके परिजनों को सौंप दिया.
वकील और कार्यकर्ता बेला भाटिया बताती हैं, ‘मारे गए कुछ लोगों के शरीर में गोलियों के निशान के साथ चाकू से वार करने के भी निशान थे. पुलिस ने दो घायल ग्रामीणों को लेकर आया था और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया. वो दोनों कोरचेली गांव के राजू पोट्टाम और तोड़का गांव के लक्ष्मण ताती हैं. इसके अलावा गांव में दो-तीन लोग और हो सकते हैं जो घायल हुए हों.’
ग्रामीणों की शिकायत लेने से पुलिस ने इनकार किया था
बेला ने आगे बताया कि 5 फरवरी को करीब तीन बजे वह पीड़ित लोगों के साथ इस घटना को लेकर शिकायत दर्ज कराने के लिए गंगालूर थाना गई थी. ‘बहुत सारे ग्रामीण थे, सभी को अंदर जाने नहीं दिया गया केवल मृतकों और घायलों के परिजनों के साथ मुझे जाने दिया,’ वह कहती हैं.
उन्होंने कहा, ‘जब हम लिखित शिकायत उन्हें दिखाई तो पहले दो-तीन वाक्यों से ही वो आपत्ति जताने लगे. उनका कहना था कि ये शिकायत पुलिस के खिलाफ है इसलिए वे इसे नहीं लेंगे, पुलिस के खिलाफ कोई भी शिकायत नहीं ली जाएगी. थानेदार ने कहा कि आप पूरे पुलिस विभाग पर सवाल उठा रहे हो. काफी बहस हुई लेकिन शिकायत नहीं ली गई.’
After 19 hours and a cold night outside the thana the complaint was finally received today by DSP Gangalur (who also has charge as DSP DRG). A glimpse into the state of access to justice by adivasis. pic.twitter.com/m0tzyMrEOg
— Bela Bhatia (@Belaben) February 6, 2025
बताया गया है कि इसके बाद इन सभी लोगों को थाने से बाहर कर दिया गया, जिसके बाद वे सभी गंगालूर चौक में धरने पर बैठ गए. बेला ने शीर्ष पुलिस अधिकारियों आईजी और डीआईजी बस्तर को इस स्थिति की जानकारी दी और न्यायिक कार्यवाही करने का अनुरोध किया. पास के एक आयुर्वेदिक अस्पताल परिसर शेड में रात गुजारने के बाद अगली सुबह फिर धरना शुरू हुआ. इस बीच थानेदार ने इन लोगों को बीजापुर जाने के लिए कहा, जिससे सभी ने इनकार कर दिया। अंततः दिन में करीब 12 बजे डीएसपी बीजापुर से गंगालूर पहुंचे और शिकायत ली.
इस शिकायत में मृतकों और घायलों के परिजनों ने आरोप लगाया कि 1 फरवरी की सुबह कोरचेली और तोड़का के सात ग्रामीणों और कुटेर के एक व्यक्ति को पुलिस द्वारा गोली और चाकू से मार कर हत्या की गई है. उस दिन वहां कोई मुठभेड़ नहीं हुई थी.
शिकायत में आगे लिखा गया, ‘उस दिन सुबह भारी संख्या में सुरक्षा बल हमारे गांवों को घेरा और लोगों को तोड़का के नजदीक वाले पहाड़ तक खदेड़ा. उन्होंने करीब सौ लोगों को भगाया. जिधर लोगों को भगाया गया वहां सुरक्षा बल पहले से घात लगाए हुए थे. उन्होंने लोगों पर अंधाधुंध गोलीबारी की. जिसमें आठ लोग मारे गए और कुछ घायल हो गए. दो घायल अभी अस्पताल में हैं. मृतकों में केवल एक व्यक्ति (कमलेश नीलकंठ) जो कुटेर गांव का था, दस्ता का सदस्य था – पर उस दिन निहत्था और बिना वर्दी का था. वह अपने परिजनों से मिलने आया हुआ था.’
ग्रमीणों के घरों पर छापे क्यों मारे गए: पीयूसीएल
इससे पहले पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने भी एक बयान जारी कर इस मुठभेड़ को फर्जी बताया था.
पीयूसीएल ने पुलिस के इस दावे पर कि माओवादियों की मौजूदगी की सूचना के आधार पर अभियान चलाया गया था, यह सवाल उठाया कि ‘अगर वहां माओवादी मौजूद थे, तो ग्रामीणों की हत्या क्यों की गई? अगर अभियान का लक्ष्य पहाड़ियों में मौजूद माओवादी थे, तो घरों पर छापे क्यों मारे गए? क्या यह माओवादी विरोधी अभियान की आड़ में ग्रामीणों पर लक्षित कार्रवाई थी?’
पीयूसीएल ने मांग की है कि हाईकोर्ट के वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश की देखरेख में उच्चस्तरीय स्वतंत्र न्यायिक जांच की जानी चाहिए.
आरोप निराधार: पुलिस
इसके बाद मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पीयूसीएल के आरोपों को बस्तर रेंज के आईजी पी. सुंदरराज ने बेबुनियाद ठहराया. उन्होंने कहा कि सारे मृतक पश्चिम बस्तर डिवीजन के हार्डकोर माओवादी थे जो मुठभेड़ में मारे गए थे.
उन्होंने आगे कहा, ‘पिछले 12 महीनों में माओवादियों को अपने ही मजबूत गढ़ों में कई झटके लगे हैं और 1 फरवरी को हुआ कोरचोली ऑपरेशन उनमें से एक था.
पहले भी लगते रहे हैं फ़र्जी मुठभेड़ के आरोप
बता दें कि नारायणपुर और बीजापुर जिलों की सीमा पर स्थित अबूझमाड़ के कुम्मम-लेकावड़ा गांवों में 11 और 12 दिसंबर 2024 को सुरक्षा बलों ने सात माओवादियों को मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया था. लेकिन स्थानीय ग्रामीण और आदिवासी कार्यकर्ताओं का कहना था कि उनमें से पांच माओवादी नहीं बल्कि ग्रामीण थे. इसके अलावा कम से कम चार नाबालिग ग्रामीण भी घायल हुए थे.
ग्रामीणों के अनुसार, मारे गए 7 कथित माओवादियों में 5 ग्रामीण (चार पुरुष, एक महिला) थे – मासा, मोटू, गुड़सा, कोहला और सोमारी. इस कथित मुठभेड़ में एक लड़की समेत चार नाबालिगों के घायल होने की पुष्टि हुई थी.
उल्लेखनीय है कि ये सभी माड़िया आदिवासी समुदाय से थे, जिन्हें सरकार ने विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) में वर्गीकृत किया है.
इससे पहले कांकेर जिले में 25 फरवरी 2024 को हुई मुठभेड़ को लेकर पुलिस ने दावा किया था कि नक्सल विरोधी अभियान के दौरान सुरक्षाकर्मियों के साथ मुठभेड़ में कोयलीबेड़ा थानाक्षेत्र के भोमरा-हुरतराई गांवों के बीच एक पहाड़ी पर तीन ‘नक्सली’ मारे गए थे. हालांकि, कुछ स्थानीय लोगों और मृतकों के परिजनों ने पुलिस पर फ़र्ज़ी मुठभेड़ का आरोप लगाया था.
मृतकों की पहचान – मरदा गांव के मूल निवासी रामेश्वर नेगी, सुरेश तेता और क्षेत्र के पैरवी गांव के अनिल कुमार हिडको के रूप में की गई थी.
इसी तरह छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले में सुरक्षा बलों ने 10 मई 2024 को एक मुठभेड़ में 12 कथित माओवादियों को मारने का दावा किया था. मृतकों के परिजन फर्जी मुठभेड़ का आरोप लगाया था और कहा था कि 12 में से 10 मृतक पीडिया और ईतावर गांव के निवासी थे और खेती-किसानी किया करते थे.
इस तरह के दावे पिछली सरकारों के समय में भी लगते रहे हैं.
7 फरवरी 2019 को पुलिस ने अबूझमाड़ के ताड़बल्ला में हुई एक कथित मुठभेड़ में दस माओवादियों को मारने का दावा किया था. ग्रामीणों ने इसे एक सुनियोजित हमला बताया था. उन्होंने मारे गए 10 युवाओं के शवों के क्षत-विक्षत होने और मृतक लड़कियों के साथ संभावित यौन शोषण की बात कही थी.
इससे पहले बीजापुर के एड्समेट्टा गांव में मई 2013 में तकरीबन 1,000 सुरक्षाबलों ने ‘विज्जा पंडुम’ पर्व मना रहे आदिवासियों पर गोली चला दी थी, जिसमें 8 आदिवासी मारे गए थे. सुरक्षाबलों ने कहा था कि ये सभी माओवादी थे और यह कार्रवाई उन्होंने माओवादियों द्वारा की गई गोलीबारी के जवाब में की थी.
हालांकि, हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की जांच में सामने आया था कि यह एनकाउंटर फ़र्ज़ी था और एक भी मृतक माओवादी नहीं था.
जून 2012 में एक अन्य मामले में बीजापुर जिले के सारकेगुड़ा में सुरक्षाबलों द्वारा 6 नाबालिग समेत 17 लोगों की हत्या कर दी गई थी. उस साल 28 जून की रात आदिवासी एक पर्व के लिए एकत्र हुए थे. सुरक्षाबलों ने उसे नक्सलियों की बैठक समझकर फायरिंग शुरू कर दी. जांच में सामने आया था कि एक भी मृतक नक्सली नहीं था.