नई दिल्ली: शतरंज के खेल में अक्सर राजा को बचाने के लिए प्यादे को क़ुर्बान करना पड़ता है. मणिपुर में भी कुछ ऐसा ही यही हुआ है.
मालूम हो कि 3 फरवरी से राज्य में जो कुछ भी हो रहा है, और 9 फरवरी की शाम जिस तरह राज्य के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह का इस्तीफे सामने आया, उसे केवल राजा को बचाने के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय नेतृत्व की एक नियोजित चाल समझा जा सकता है.
यह इस्तीफा स्पष्ट रूप से दिल्ली में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा बीरेन सिंह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की विपक्षी कांग्रेस की योजना को दरकिनार करने के लिए एक हताश कदम था, क्योंकि विधानसभा सत्र 10 फरवरी से शुरू होना था. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को डर था कि विपक्ष के प्रस्ताव को सत्तारूढ़ दल के कई विधायकों से मौन समर्थन मिलेगा, जो 3 मई, 2023 को राज्य में हिंसा भड़कने के बाद से बदलाव की मांग कर रहे हैं. केंद्र सरकार अब तक उनकी मांगों को नजरअंदाज करती रही है, जिससे यह परेशान समूह बदलाव की लिए तेजी से मांग कर रहा था.
सत्ताधारी पार्टी के भीतर लंबे समय से चल रही कलह में ताजा विवाद एक ऑडियो टेप पर लैब रिपोर्ट के सामने आने से भी जुड़ गया, जिसमें बीरेन की आवाज होने का दावा किया गया है. प्रतिष्ठित निजी प्रयोगशाला, ट्रुथ लैब ने 3 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट को एक रिपोर्ट में कहा कि बीरेन की आवाज के नमूने लीक हुए ऑडियो टेप की आवाज से ‘93%’ मेल खाते हैं, जिसने राज्य में जातीय हिंसा में उनकी भूमिका को जांच के दायरे में ला दिया है.
मणिपुर हिंसा में अब तक कम से कम 250 लोगों की जान जा चुकी है और कुकी और मेईतेई समुदाय के 70,000 से अधिक लोग विस्थापित हो गए हैं. राज्य की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है. मणिपुर जातीय आधार पर दो भागों में विभाजित हो गया है.
पिछले साल यह ऑडियो टेप गृह मंत्रालय द्वारा मणिपुर हिंसा पर गठित न्यायिक आयोग को उन व्यक्तियों द्वारा प्रस्तुत किया गया था, जिनकी गुमनामी को अध्यक्ष, गुवाहाटी उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, जस्टिस अजय लांबा द्वारा संरक्षित किया गया है. आयोग को बताया गया कि रिकॉर्डिंग मुख्यमंत्री के आवास से 2023 में किसी समय की थी, जब राज्य जातीय संघर्ष की चपेट में था. इसकी एक कॉपी द वायर के पास भी है, हालांकि इसकी सामग्री की महत्ता को देखते हुए द वायर ने इसे सार्वजनिक डोमेन में लाने का निर्णय लिया था.
जल्द ही कुकी ऑर्गनाइजेशन फॉर ह्यूमन राइट्स (कोहुर) ने ऑडियो रिकॉर्डिंग की स्वतंत्र जांच की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली एक पीठ ने याचिकाकर्ता से आवाज को वैज्ञानिक तरीके से प्रमाणित कर रिपोर्ट कोर्ट में सौंपने को कहा था.
ट्रुथ लैब, जो पूर्व मुख्य न्यायाधीश एमएन वेंकटचलैया की अध्यक्षता में स्थापित की गई और जिनकी रिपोर्ट पहले शीर्ष अदालत ने स्वीकार की है, को इस काम के लिए नियुक्त किया गया. जनवरी के अंत में, लैब ने प्रमाणित किया कि ऑडियो टेप में दर्ज आवाज़ और एक आधिकारिक समारोह से उठाए गए बीरेन सिंह की आवाज़ के नमूने ‘93%’ मेल खाते हैं.
बीते 3 फरवरी को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की मांग के अनुसार, नए मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सरकार को इस ऑडियो टेप को एक बार फिर प्रमाणित करने के लिए तीन सप्ताह का और समय दिया है. इस बार सरकार इसकी जांच केंद्रीय फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (सीएफएसएल) द्वारा की जा रही है.
हालांकि, यह स्पष्ट है कि बीरेन सिंह इस मामले में बैकफुट पर हैं, क्योंकि सीएफएसएल ने स्वयं कई अवसरों पर ऑडियो-विजुअल सामग्री की प्रामाणिकता स्थापित करने के लिए ट्रुथ लैब से मदद मांगी है.
कुछ वरिष्ठ नेताओं सहित पार्टी विधायकों को लगा कि वे अब इस मामले में मजबूत विद्रोह करने में सक्षम हो सकते हैं और केंद्र सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित कर सकते हैं, जिससे पार्टी बीरेन सिंह पर कार्रवाई कर सके. पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं द्वारा बीरेन सिंह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की पूर्व योजना को मणिपुर कांग्रेस नेतृत्व की मदद से सक्रिय किया गया था. फिर भी बीरेन की मनमानी से परेशान कई भाजपा नेताओं ने वफादारी बदल ली.
यह कदम आसान नहीं था. पिछले 21 महीनों में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के पूर्ण समर्थन के साथ बीरेन ने खुद को अल्पसंख्यक कुकी के खिलाफ एकमात्र ‘मेईतेई आवाज’ के रूप में स्थापित किया था. वह पूर्ण बहुमत का कार्ड भी खेल रहे थे. बीरेन सिंह ने कथित तौर पर एक सशस्त्र भीड़ बनाने के लिए मेईतेई समुदाय के कट्टरपंथी और प्रतिबंधित समूहों को भी शामिल किया था, जिन्होंने घाटी क्षेत्रों में सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम (आफस्पा) को हटाने के केंद्रीय गृह मंत्रालय के फैसले के बाद बिना किसी दंड के कार्रवाई की थी.
ख़बरों में यह भी सामने आया है कि उन गैर-सरकारी तत्वों (n0n state actors) को मणिपुर पुलिस के वाहनों का भी उपयोग करते देखा गया था. ऐसी भीड़ को राज्य के शस्त्रागार से सैकड़ों हथियार और गोला-बारूद भी लूटने की अनुमति दी गई थी.
भीड़ और ऐसे तत्वों द्वारा किया गया यह तख्तापलट बीरेन की उपस्थिति में हुआ, जिन्हें संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह केंद्र से पूरा समर्थन प्राप्त था. केंद्रीय गृह मंत्री शाह ने खुद उनके लिए लड़ाई लड़ी, इससे उनमें आत्मविश्वास बढ़ गया. कहा गया कि पार्टी के भीतर और बाहर बीरेन का विरोध करने वालों और यहां तक कि पुलिस अधिकारियों को भी सशस्त्र समूहों द्वारा धमकियां दी गईं या उन पर हमला किया गया. बीरेन पर सवाल उठाने वाले भाजपा नेताओं ने अपनी संपत्ति को बर्बाद होने का जोखिम उठाया. जीवन और संपत्ति के लिए भय पैदा करके और केंद्र के समर्थन से बीरेन ने अपने अधिकांश विधायकों और भाजपा के सहयोगियों से समर्थन प्राप्त करना जारी रखा.
हालांकि, इस बार ऐसा लगता है कि विपक्ष पार्टी के कुछ और विधायकों को अपने पाले में करने में सफल रहा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बीरेन को पद पर बने रहने के लिए आवश्यक 31 का आंकड़ा जुटाने में कठिनाई होगी. जैसे ही बागियों ने आगामी विधानसभा सत्र में कांग्रेस के कदम को मौन समर्थन देने का कदम उठाया, केंद्रीय भाजपा नेतृत्व ने कार्रवाई की.
स्थिति को नियंत्रण से बाहर जाने से बचाने के लिए भी इसने तेजी से काम किया. भाजपा के वरिष्ठ नेता वाई. खेमचंद को दिल्ली ले लाया गया. इंफाल में खबर फैल गई कि उनकी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ बंद कमरे में बैठक होनी है. खेमचंद को प्रदेश प्रभारी संबित पात्रा ने शाह का संदेश दिया. नेतृत्व परिवर्तन होना था.
7 फरवरी को इंफाल लौटने पर खेमचंद ने बीरेन को हटाने की राष्ट्रीय नेतृत्व की योजना की न तो पुष्टि की और न ही खंडन किया. उन्होंने स्थानीय मीडिया से किसी भी टिप्पणी से इनकार कर दिया. लेकिन उनके व्यवहार से ऐसा लग रहा था कि कुछ बदलाव तो हो रहा है. पत्रकारों ने उनका पीछा किया और पाया कि वह अपने आवास पर नहीं बल्कि स्पीकर थॉकचोम सत्यब्रत सिंह से मिलने जा रहे हैं. बीरेन सिंह के विरोधी कुछ अन्य पार्टी विधायकों के साथ स्पीकर के घर पर एक बंद कमरे में बैठक हुई.
चर्चा को भांपते हुए बीरेन सिंह कुछ भरोसेमंद विधायकों के साथ दिल्ली पहुंचे, लेकिन राज्य भाजपा के सूत्रों ने संवाददाता को बताया कि वह ‘शाह के साथ मुलाकात करने में विफल रहे.’ फिर बीरेन और उनका दल कुंभ मेले में भाग लेने के लिए निकल पड़े – शायद यह दर्शाने के लिए कि उन्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है.
एक चतुर राजनीतिज्ञ बीरेन सिंह को पता था कि मुख्यमंत्री बने रहने के लिए उन्हें राष्ट्रीय नेतृत्व को अपनी संख्या बल दिखाना होगा. इसलिए उन्होंने अपने समर्थन वाले 15 पार्टी विधायकों और भाजपा के सहयोगी नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) से जुड़े अन्य पांच विधायकों को दिल्ली में इकट्ठा किया. बीरेन को भाजपा की एक अन्य सहयोगी नेशनलिस्ट पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के पांच विधायकों से भी आश्वासन मिला कि अगर फ्लोर टेस्ट होता है तो वे ‘तटस्थ रहेंगे’.
9 फरवरी को जब आखिरकार उन्हें अमित शाह द्वारा दिल्ली में मिलने का समय दिया गया, तो पार्टी सूत्रों ने द वायर को बताया कि वह अपना पक्ष मजबूत करने के लिए उन 15 भाजपा विधायकों और पांच एनपीएफ विधायकों को अपने साथ ले गए. बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी मौजूद थे.
एक सूत्र ने कहा, ‘लेकिन इस बात का कोई ठोस सबूत नहीं है कि उनके पास पर्याप्त संख्या है, केंद्रीय नेतृत्व को यकीन नहीं था कि बीरेन सरकार को स्थिर रख पाएंगे.’ महज 15 मिनट में तय हो गया कि बीरेन को इस्तीफा देना होगा.’
इसके बाद निराश बीरेन इंफाल लौट आए और उसी शाम राज्यपाल अजय भल्ला को अपना इस्तीफ़ा सौंपने के लिए राजभवन गए. उनके साथ संबित पात्रा और प्रदेश अध्यक्ष शारदा देवी समेत अन्य लोग मौजूद थे.
बीरेन सिंह ने एक बहुसंख्यक राजनेता की अपनी छवि को बरकरार रखने का आखिरी प्रयास किया, जिसने खूनी जातीय संघर्ष के दौरान केवल अपने समुदाय के लिए लड़ाई लड़ी और मेईतेई समुदाय के दिलों को छूने की कोशिश की. वह एक नायक की तरह विदाई चाहते थे, यह उनके त्याग पत्र से स्पष्ट है.
यह देखना बाकी है कि मेईतेई समुदाय में इस ‘मिट्टी के बेटे’ द्वारा भड़काई गई भावनाएं मणिपुर की राजनीति को कैसे प्रभावित करती हैं. पड़ोसी असम में यही हुआ था, जब पूर्व मुख्यमंत्री गोलाप बोरबोरा ने 1970 के दशक में अपनी कुर्सी बचाने के लिए असमिया समुदाय के बीच यह भावना पैदा की थी.
किसी भी कीमत पर सत्ता बरकरार रहे
इस राजनीतिक घटनाक्रम में जो सबसे उल्लेखनीय है वह यह है कि नरेंद्र मोदी-अमित शाह के युग की भाजपा में अगर पार्टी किसी तरह सत्ता पर बनी रह सकती है तो कुछ भी नहीं होता है. यौन उत्पीड़न, जीवन, संपत्ति और आजीविका की हानि, भीड़ द्वारा पुलिस थानों से हथियार लूटना और सुरक्षा बलों द्वारा पुलिस वाहनों में घूम रहे प्रतिबंधित सशस्त्र समूहों को सतर्क दृष्टि से देखना – इन सभी ने शायद ही कोई असर डाला है.
यह बात कि बीरेन सिंह भाजपा को सत्ता बरकरार रखने में मदद कर सकते हैं, उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बनाए रखने के लिए पर्याप्त था, भले ही वह पिछले 21 महीनों में राज्य चलाने में कितने भी अक्षम क्यों न रहे हों.
यह भी एक कारण था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिंसा प्रभावित राज्य का दौरा करने की जहमत नहीं उठाई, भले ही मणिपुर के लोगों ने कितना भी शोर मचाया हो. मोदी ने हिंसा के ख़िलाफ़ ज़ोरदार ढंग से कुछ भी नहीं बोला, सिवाय इसके कि जब दो कुकी महिलाओं को नग्न घुमाने का भयावह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो इसने उन्हें कुछ शब्द बोलने के लिए मजबूर होना पड़ा.
इस बात की पुष्टि कि बीरेन सिंह का इस्तीफा मणिपुर में विधानसभा सत्र से पहले भाजपा सरकार को जिंदा रखने में मदद करने के लिए मोदी-शाह का एक हताश प्रयास था, इस तथ्य से भी पता चलता है कि मणिपुर में मोदी के भरोसेमंद व्यक्ति राज्यपाल अजय भल्ला ने 10 फरवरी से सत्र बुलाने के आदेश को रद्द कर दिया है. स्पष्ट रूप से भल्ला, जो अगस्त 2024 तक मोदी सरकार के गृह सचिव थे, विपक्ष को अविश्वास प्रस्ताव के साथ आगे बढ़ने के किसी भी प्रयास से रोक रहे हैं और इस तरह सत्तारूढ़ दल के खिलाफ राजनीतिक लाभ हासिल कर रहे हैं.
हालांकि, राज्य अब राज्यपाल भल्ला के नियंत्रण में हैं और वे यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि पार्टी की सरकार फिलहाल सुरक्षित रहे, फिर भी एक और महत्वपूर्ण कदम का इंतजार है.
गौरतलब है कि ये बड़ा सवाल है कि क्या 24 मार्च को जब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ऑडियो टेप पर सीएफएसएल रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपेंगे, क्या तब भी सरकार बीरेन सिंह का बचाव करेगी, जैसा कि 3 फरवरी को किया गया था? या इस बार उन्हें ‘बलि का बकरा’ बना दिया जाएगा. क्योंकि शतरंज की बिसात पर बैठे खिलाड़ी ने एक बार और सभी के लिए फैसला कर लिया है कि राजा को किसी भी कीमत पर बचाना है.
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