नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक फैसले के दौरान कहा कि बिना सहमति के अप्राकृतिक तरह से शारीरिक संबंध बनाने या पति द्वारा अपनी 15 वर्ष से अधिक उम्र की पत्नी के साथ किया गया कोई अन्य गैर-सहमति वाला यौन कृत्य भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत अपराध नहीं माना जाता है.
यह निर्णय गोरखनाथ शर्मा बनाम छत्तीसगढ़ राज्य के मामले में दिया गया है.
रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 को फैसले का आधार बनाया, जो पति और पत्नी के बीच यौन संबंध या यौन कृत्य को बलात्कार नहीं मानता, बशर्ते पत्नी की उम्र 15 साल से कम न हो.
अदालत ने कहा कि धारा 375 के तहत बलात्कार की परिभाषा में योनि (vagina), मूत्रमार्ग (urethra) या गुदा सहित शरीर के किसी भी हिस्से में लिंग (penis) का प्रवेश शामिल है, लेकिन यह पति और पत्नी के रिश्ते में लागू नहीं होता है.
मालूम हो कि इस विशेष मामले में निचली अदालत द्वारा आरोपी गोरखनाथ शर्मा को बलात्कार, अप्राकृतिक अपराध और कथित तौर पर अपनी पत्नी के गुदा में हाथ डालने, जिससे उनकी मृत्यु हो गई के कारण लापरवाही से मौत का दोषी ठहराया गया था.
हालांकि, उच्च न्यायालय ने धारा 375 के तहत अपवाद का हवाला देते हुए शर्मा को सभी अपराधों से बरी कर दिया. इसके साथ ही अदालत ने कहा कि यदि धारा 377 के तहत परिभाषित कोई भी अप्राकृतिक यौन संबंध पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ किया जाता है, तो इसे भी अपराध नहीं माना जा सकता है.
बार और बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, हाईकोर्ट ने कहा कि यह बिल्कुल स्पष्ट है कि धारा 375 के तहत दी गई बलात्कार की परिभाषा में शरीर के उन हिस्सों यानी योनि, मूत्रमार्ग या महिला के गुदा में लिंग का प्रवेश शामिल है, लेकिन पति और पत्नी के रिश्ते में इसके लिए सहमति की आवश्यकता नहीं है, इसलिए अप्राकृतिक यौन संबंध को पति और पत्नी के बीच अप्राकृतिक अपराध नहीं माना जा सकता है. ऐसे में इस मामले में जाहिर तौर पर धारा 375 की परिभाषा और धारा 377 के अप्राकृतिक अपराध के बीच प्रतिकूलता है.
इस मामले में अदालत ने पीड़िता के मृत्युपूर्व बयान की भी जांच की, लेकिन यहां भी अदालत ने पाया कि पत्नी के बयान के अलावा पति के खिलाफ रिकॉर्ड पर कोई कानूनी रूप से स्वीकार्य सबूत उपलब्ध नहीं था. इसलिए अदालत का कहना था कि सजा के लिए ये पर्याप्त नहीं है.
इसके अलावा इस मामले में हाईकोर्ट ने माना कि धारा 304 (लापरवाही से मौत का कारण) के तहत निचली अदालत द्वारा दोषसिद्धि गलत और स्पष्ट रूप से अवैध थी, क्योंकि ट्रायल कोर्ट ने इस पर कोई निष्कर्ष दर्ज नहीं किया था कि वर्तमान मामले में अपराध कैसे साबित हुआ है.