मणिपुर: हिंसा भड़कने के 652 दिन बाद राष्ट्रपति शासन लागू, विपक्ष ने कहा- विफलता की स्वीकारोक्ति

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा है कि मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के 13 फरवरी को इस्तीफ़ा देने के कुछ दिनों बाद राज्य को राष्ट्रपति शासन के अधीन कर दिया गया है. राष्ट्रपति शासन लागू होने के साथ राज्य के निवासी 23 वर्षों के बाद केंद्र सरकार के प्रत्यक्ष शासन के अधीन होंगे.

इंफाल. (फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक औपचारिक पत्र में उल्लेख किया है कि मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के गुरुवार (13 फरवरी) को इस्तीफा देने के कुछ दिनों बाद मणिपुर को राष्ट्रपति शासन के अधीन कर दिया गया है.

रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा हस्ताक्षरित राजपत्रित अधिसूचना में कहा गया है कि उन्हें मणिपुर राज्य के राज्यपाल से एक रिपोर्ट प्राप्त हुई है और रिपोर्ट तथा मुझे प्राप्त अन्य सूचनाओं पर विचार करने के बाद मैं संतुष्ट हूं कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें उस राज्य की सरकार भारत के संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चल सकती.

मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू होने के साथ राज्य के निवासी 23 वर्षों के बाद केंद्र सरकार के प्रत्यक्ष शासन के अधीन होंगे. संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत मुर्मू भारत के राष्ट्रपति के रूप में मणिपुर राज्य सरकार के सभी कार्यों और मणिपुर के राज्यपाल में निहित या उनके द्वारा प्रयोग की जाने वाली सभी शक्तियों को अपने हाथ में ले सकती हैं.

मणिपुर विधानमंडल की शक्तियां संसद द्वारा या उसके प्राधिकार के अधीन प्रयोग की जा सकेंगी.

यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता संबित पात्रा पिछले दो दिनों से राज्य में पार्टी के मुख्यमंत्री के लिए समर्थन जुटाने का प्रयास कर रहे हैं.

राष्ट्रपति शासन लागू होना मणिपुर में जातीय हिंसा, जो लगभग 21 महीने से जारी है, के साथ चल रहे संघर्ष में एक महत्वपूर्ण क्षण है.

राष्ट्रपति शासन पर अपनी पहली प्रतिक्रिया में भाजपा के कुकी विधायक पाओलिएनलाल हाओकिप ने कहा, ‘इसमें 260 लोगों की जान चली गई, 60 हजार से अधिक लोग विस्थापित हो गए, 200 से अधिक गांव जल गए, 7000 से अधिक घर जल गए और पीढ़ियों तक का सदमा पहुंचा.’

राज्य में गोलीबारी और ड्रोन बम विस्फोट सहित कई हिंसक घटनाएं हुई हैं, जिसके कारण बड़े पैमाने पर विस्थापन, जान-माल की हानि और गहरा विभाजन हुआ है.

इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) के नेता गिन्ज़ा वुअलज़ोंग ने कहा, ‘मुख्यमंत्री के बदलाव की तुलना में राष्ट्रपति शासन ज़्यादा बेहतर है. कुकी-ज़ो अब मेईतेई पर भरोसा नहीं करते, इसलिए एक नया मेईतेई मुख्यमंत्री अभी भी उन्हें सहज महसूस नहीं करा रहा है. राष्ट्रपति शासन कुकी-ज़ो को उम्मीद देगा और हमारा मानना ​​है कि यह हमारे राजनीतिक समाधान के एक कदम और करीब होगा. मुझे लगता है कि राष्ट्रपति शासन के साथ हिंसा को समाप्त करने की जमीनी कार्रवाई शुरू हो जाएगी, जो राजनीतिक संवाद के लिए अनुकूल माहौल का मार्ग प्रशस्त करेगी.’

द वायर से बात करते हुए भाजपा की सहयोगी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के विधायक नूरुल हसन ने कहा कि राज्य में शांति और सामान्य स्थिति उनकी प्राथमिकता है.

हसन ने कहा, ‘यह देर से हुई कार्रवाई है और हम राजनीतिक घटनाक्रम पर निगरानी बंद कर रहे हैं तथा हमारी प्राथमिकता मणिपुर राज्य में शांति और सामान्य स्थिति है.

इसी बीच, गुरुवार को बीरेन सिंह ने अवैध घुसपैठ के मुद्दे को लेकर एक्स पर एक पोस्ट लिखी, जिसमें उन्होंने नायक के रूप में अपनी पहचान बनाने का प्रयास किया.

उन्होंने लिखा, ‘हमारी ज़मीन और पहचान ख़तरे में हैं. कम आबादी और सीमित संसाधनों के साथ हम कमज़ोर स्थिति में हैं. मैंने 2 मई, 2023 तक लगातार अवैध अप्रवासियों की निगरानी की और उनका पता लगाया. लेकिन 3 मई, 2023 की दुखद घटनाओं के बाद हमारी सरकारी मशीनरी प्रभावी ढंग से जवाब देने में संघर्ष कर रही है.’

बीरेन सिंह का इस्तीफा विपक्षी दलों की ओर से बढ़ते दबाव और भाजपा के भीतर से उठ रहे असंतोष के कारण हुआ. भाजपा की एक प्रमुख सहयोगी नेशनल पीपुल्स पार्टी ने संकट से निपटने के उनके तरीके से असंतुष्टि का हवाला देते हुए पहले ही अपना समर्थन वापस ले लिया था. बीरेन के इस्तीफे के बाद से पार्टी ने यह कहते हुए फिर से समर्थन दिया कि वह केवल बीरेन सिंह के खिलाफ थी.

भाजपा ने 10 कुकी विधायकों (तीन उनके गठबंधन के और सात भाजपा के) का समर्थन खो दिया है. इसके अलावा, कुछ मेईतेई विधायक भी बीरेन सिंह से खासे नाखुश थे और उन्होंने कई बार केंद्रीय नेतृत्व से संपर्क किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

बीरेन सिंह के खिलाफ सत्तारूढ़ पार्टी के भीतर लंबे समय से चल रहे विद्रोह को और हवा देने वाली बात यह रही कि 3 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट के एक मामले में ट्रुथ लैब जैसी प्रतिष्ठित निजी प्रयोगशाला ने यह प्रमाणित किया कि सिंह की आवाज के नमूने लीक हुए ऑडियो टेप, जिसमें उनके द्वारा राज्य में जातीय हिंसा को बढ़ावा देने का श्रेय लिया गया था, में कथित तौर पर उनकी आवाज से ’93 प्रतिशत’ मेल खाते हैं. जिससे मणिपुर की जातीय हिंसा में उनकी भूमिका जांच के दायरे में आ गई है.

यह देखना अभी बाकी है कि केंद्र सरकार के प्रत्यक्ष प्रशासन के तहत मणिपुर का प्रदर्शन कैसा रहता है.

इस घटनाक्रम पर टिप्पणी करते हुए कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पर लिखा, ‘आखिरकार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस लगभग 20 महीनों से जो मांग कर रही थी, वह हो गया. मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया है. यह तब हुआ है जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य में संवैधानिक तंत्र पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है, जिसके कारण 3 मई, 2023 से 300 से अधिक लोगों की हत्या हो चुकी है और 60,000 से अधिक पुरुष, महिलाएं और बच्चे विस्थापित हो चुके हैं.’

उन्होंने कहा, ‘यह तब हुआ है जब मणिपुर के समाज के ताने-बाने को पूरी तरह से नष्ट नहीं तो गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त होने दिया गया है. यह तब हुआ है जब फरवरी 2022 में भाजपा और उसके सहयोगियों को भारी बहुमत मिला, लेकिन उनकी राजनीति के कारण पंद्रह महीने बाद ही यह भयानक त्रासदी हुई. यह तब हुआ है जब केंद्रीय गृह मंत्री मणिपुर को संभालने में स्पष्ट रूप से विफल रहे हैं, जिसे प्रधानमंत्री ने उन्हें सौंपा था. यह तब हुआ है जब दुनिया भर में घूमने वाले प्रधानमंत्री मणिपुर का दौरा करने और सुलह की प्रक्रिया शुरू करने से लगातार इनकार कर रहे हैं.’

इसी तरह लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इस कदम को ‘मणिपुर में शासन करने में अपनी पूर्ण असमर्थता की भाजपा द्वारा देर से स्वीकारोक्ति’ कहा.