महाकुंभ: गंगा के जल में मानव और पशु मल के चलते फीकल कोलीफॉर्म अधिक, नहाने योग्य नहीं

एनजीटी ने सीपीसीबी की रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि विभिन्न अवसरों पर सभी मॉनिटर किए गए स्थानों पर फीकल कोलीफ़ॉर्म के संदर्भ में गंगा के जल की गुणवत्ता नहाने के योग्य नहीं थी.

महाकुंभ के दौरान गंगा में नहाते श्रद्धालु. (फोटो साभार: X/@MahaKumbh_2025)

नई दिल्ली: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) को एक रिपोर्ट सौंपी है जिसमे कहा गया है कि उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में महाकुंभ के दौरान संगम के जिस पानी से लोगों ने पवित्र स्नान किया है, उसमे उच्च स्तर पर मल कोलीफॉर्म (मानव और जानवरों के मल से सूक्ष्मजीव) पाए गए हैं.  

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार 17 फरवरी के एनजीटी के आदेश में सीपीसीबी की रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है कि ‘विभिन्न अवसरों पर सभी मॉनिटर किए गए स्थानों पर फीकल कोलीफ़ॉर्म (एफसी) के संदर्भ में नदी के पानी की गुणवत्ता नहाने के योग्य नहीं थी. महाकुंभ मेले के दौरान इलाहाबाद में शुभ स्नान सहित अन्य दिनों में बड़ी संख्या में लोगों ने नदी में स्नान किया, जिसके परिणाम स्वरूप पानी में मल की मात्रा में वृद्धि हुई.’

सीपीसीबी की रिपोर्ट 3 फरवरी को एनजीटी को सौंपी गई थी.

एनजीटी के आदेश में कहा गया है, ‘केंद्रीय प्रयोगशाला यूपीपीसीबी (उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) के प्रभारी द्वारा 28 जनवरी को भेजे गए कवरिंग लेटर और संबंधित दस्तावेजों के अवलोकन से यह पता चलता है कि विभिन्न स्थानों पर मल और कुल कोलीफॉर्म का उच्च स्तर पाया गया है.’ 

एनजीटी की प्रधान पीठ इलाहाबाद में गंगा और यमुना नदियों की गुणवत्ता से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

एनजीटी ने यह भी पाया कि यूपीपीसीबी ने अदालत के निर्देशानुसार एक व्यापक रिपोर्ट दाखिल नहीं की है. आदेश में कहा गया है, ‘यूपीपीसीबी द्वारा ट्रिब्यूनल के 23 दिसंबर, 2024 के आदेश अनुसार कोई व्यापक कार्रवाई रिपोर्ट दायर नहीं की गई है. हमने पाया है कि ट्रिब्यूनल के आदेश का यूपीपीसीबी द्वारा अनुपालन नहीं किया गया है.’ 

अदालत ने यूपीपीसीबी के सदस्य सचिव और संबंधित राज्य प्राधिकारी (जो इलाहाबाद में गंगा के जल की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए जिम्मेदार हैं) को 19 फरवरी को सुनवाई की अगली तारीख पर ऑनलाइन उपस्थित होने का निर्देश दिया है.