असम: कोयला खदान में 44 दिन की तलाशी के बाद पांच लापता खनिकों के शव मिले

बीते 6 जनवरी को दीमा हसाओ के उमरंगसो कोयला भंडार में एक रैट-होल खदान में पानी भर जाने से वहां काम कर रहे नौ खनिक फंस गए थे. बचाव अभियान के दो दिन बाद पहला शव बरामद किया गया था, जबकि तीन अन्य शव तीन दिन बाद मिले थे.

असम के दीमा हसाओ जिले में कोयला खदान, जहां 6 जनवरी को नौ खनिक फंस गए थे. (फोटो: X/@prodefgau)

नई दिल्ली: असम के दीमा हसाओ में जनवरी की शुरुआत में बाढ़ में फंसे पांच खनिकों के शव बुधवार को बरामद कर लिए गए, इसके साथ ही 44 दिन से चल रहा बचाव अभियान खत्म हो गया.

ज्ञात हो कि 6 जनवरी को दीमा हसाओ के उमरंगसो कोयला भंडार में एक रैट-होल खदान में काम कर रहे नौ खनिक फंस गए थे, जब खदान में काम करते समय पानी भर गया. अगले दिन राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ), राज्य डीआरएफ, नौसेना और सेना के गोताखोरों ने बचाव अभियान शुरू किया.

बचाव अभियान के दो दिन बाद पहला शव बरामद किया गया था, जबकि तीन अन्य शव तीन दिन बाद 11 जनवरी को बरामद किए गए और तब से बचाव अभियान जारी रहा, लेकिन बीते बुधवार तक कोई भी शव नहीं मिला था.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्य चुनौती यह थी कि खदान में पानी की मात्रा बहुत अधिक थी जो खदान के पास स्थित रैट-होल खदानों के आपस में जुड़े नेटवर्क के माध्यम से उसमें बहता रहा, जबकि खदान से पंपों के माध्यम से पानी निकालने के प्रयास किए गए थे. खदान में 310 फीट की गहराई वाला एक केंद्रीय पुट है और इसमें से कई छोटी और संकरी सुरंगें निकलती हैं – जिन्हें रैट-होल कहा जाता है – जहां खनिक काम करते हैं और कोयला निकालते हैं.

जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के एक अधिकारी रिकी फुकन ने बताया, ‘शव रैट होल में फंस गए थे. आज, पानी निकालने के प्रयासों के बाद खदान के तल से पानी साफ हो गया और लोग नीचे जाकर शवों की तलाश कर सकते थे. एनडीआरएफ और सेना की टीमों द्वारा शवों को ढूंढने के बाद शाम करीब 5 बजे ऑपरेशन बंद कर दिया गया.’

उन्होंने आगे बताया कि हर घंटे खदान से 5 लाख लीटर पानी निकाला जा रहा था.

मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने एक्स पर घोषणा की, ‘उमरंगसो खदान से पानी निकालने का काम पूरा हो गया है, शेष 5 खनिकों के शव बरामद कर लिए गए हैं और उन्हें खदान की तल से बाहर निकाल लिया गया है. अवशेषों की पहचान करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है.’

नौ पीड़ितों में गंगा बहादुर श्रेष्ठ (38), हुसैन अली (30), जाकिर हुसैन (38), सरपा बर्मन (46), मुस्तफा शेख (44), खुशी मोहन राय (57), संजीत सरकार (35), लिजान मगर (26) और सरत गोयारी (37) शामिल हैं. श्रेष्ठ नेपाल से हैं और सरकार पश्चिम बंगाल से हैं, बाकी असम के विभिन्न हिस्सों से हैं.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, दीमा हसाओ के डिप्टी कमिश्नर सिमंता कुमार दास ने कहा कि शव बुरी तरह सड़ चुके हैं और उन्हें पहले उमरंगसो तथा उसके बाद जिला मुख्यालय हाफलोंग स्थित सिविल अस्पताल भेजा जाएगा, जहां शवों की पहचान के लिए पोस्टमार्टम तथा डीएनए टेस्ट किया जाएगा.

घटना के बाद राज्य सरकार ने प्रत्येक पीड़ित के परिवार के लिए 10 लाख रुपये की आर्थिक सहायता की घोषणा की थी, जिसमें वे लोग भी शामिल थे जिनके शव अभी तक नहीं मिले थे. इसने मामले की आपराधिक जांच के लिए एक एसआईटी और पूर्व गुवाहाटी उच्च न्यायालय की न्यायाधीश जस्टिस अनिमा हजारिका की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया था, जिसे संबंधित अधिकारियों, व्यक्तियों, खनन कंपनियों और संस्थानों की जिम्मेदारी तय करने का काम सौंपा गया था.

इस घटना ने राज्य में अवैध रैट-होल खनन की व्यापकता पर बहस छेड़ दी है और न केवल दीमा हसाओ में बल्कि पूर्वी असम के तिनसुकिया जिले में कोयला भंडारों में भी ऐसी खदानों पर कार्रवाई की मांग की थी.

उल्लेखनीय है कि कोयला खदानों में ऐसी आपदाएं भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में अक्सर होती रहती हैं, खासकर ‘रैट-होल’ खदानों में.

‘रैट-होल’ खनन खुदाई की एक प्रक्रिया है जिसमें कोयला निकालने के लिए संकरे रास्ते बनाए जाते हैं. मालूम हो कि 2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा रैट-होल खनन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन पूर्वोत्तर राज्य के इस लेडो-मार्गेरिटा बेल्ट में इस खतरनाक पद्धति से खनन जारी है.

एनजीटी के प्रतिबंध के बावजूद असम सरकार इन क्षेत्रों में अवैध खनन को रोकने में असमर्थ रही है, जिससे क्षेत्र में यह अवैध कारोबार फल-फूल रहा है. वन क्षेत्रों में ऐसी खदानें समय-समय पर खनिकों की जान लेने और उन्हें चोट पहुंचाने के अलावा स्थानीय वन्यजीवों को भी प्रभावित करती हैं.

साल 2019 में कांग्रेस नेता और नागांव के मौजूदा सांसद प्रद्युत बोरदोलोई ने रैट-होल खनन के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी, जिसमें दावा किया गया था कि पिछले तीन वर्षों में 11 आरक्षित वनों और वन्यजीव अभयारण्यों के अंदर 4,000 से 5,000 रैट-होल कोयला खदानें अस्तित्व में आई हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि कोयला माफिया को तिनसुकिया जिला प्रशासन द्वारा सहायता और बढ़ावा दिया गया था.

वर्ष 2023 में उच्च न्यायालय ने भी अवैध रैट-होल खनन पर प्रतिबंध लगा दिया था और केंद्र तथा राज्य दोनों सरकारों को इसकी पालना का निर्देश दिया था.

मई 2024 में असम के तिनसुकिया जिले में भूस्खलन के कारण एक ‘रैट-होल’ खदान के धंसने से कम से कम तीन लोगों की मौत हो गई थी. जनवरी 2024 में नगालैंड के वोखा जिले में एक ‘रैट-होल’ कोयला खदान के अंदर लगी आग में छह लोग जलकर मर गए और चार घायल हो गए. सितंबर 2022 में उसी जिले में एक अवैध कोयला खदान में जहरीली गैस के कारण तीन मजदूरों की मौत हो गई थी.

दिसंबर 2018 में सबसे बड़ी आपदाओं में से एक– मेघालय में एक अवैध खदान में काम करते समय कम से कम 15 खनिक दब गए, जब पास की एक नदी के पानी से खदान भर गई.