असम के विदेशी न्यायाधिकरण अपने आदेशों की समीक्षा नहीं कर सकते: सुप्रीम कोर्ट

एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि क़ानून अवैध प्रवासियों के निर्धारण के लिए स्थापित विदेशी न्यायाधिकरण को अपने ही दिए निर्णयों पर अपीलीय प्राधिकारी के रूप में कार्य करने की अनुमति नहीं देता है और वह अपने स्वयं के आदेशों की समीक्षा की शक्ति नहीं रखता.

सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि कानून अवैध प्रवासियों के निर्धारण के लिए स्थापित विदेशी न्यायाधिकरण को अपने स्वयं के निर्णयों पर अपीलीय प्राधिकारी के रूप में कार्य करने की अनुमति नहीं देता है और वह अपने स्वयं के आदेशों की समीक्षा करने के लिए ‘शक्तिहीन’ है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुयान की पीठ ने असम विदेशी न्यायाधिकरण के आदेश को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया, जिसने एक महिला, जिसे भारतीय नागरिक घोषित किया गया था, से संबंधित मामले में अपने ही निष्कर्ष को पलट दिया था.

सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय का विदेशी न्यायाधिकरणों द्वारा देखे जाने वाले मामलों पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि एक बार किसी व्यक्ति को उचित प्रक्रिया के माध्यम से भारतीय नागरिक घोषित कर दिया जाए, तो राज्य या केंद्र उचित अपीलीय तंत्र के माध्यम से समीक्षा के लिए नए और वैध आधारों के अभाव में उनके खिलाफ बार-बार मुकदमा नहीं चला सकेंगे.

इसके साथ ही यह निर्णय मनमाने ढंग से की जाने वाली कार्यवाहियों के विरुद्ध एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करेगा, जो व्यक्तियों को उनकी नागरिकता की स्थिति के संबंध में लंबे समय तक कानूनी अनिश्चितता का सामना करना पड़ सकता है.

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक महिला रजिया खातून के मामले पर आया है, जिन्हें 2018 में न्यायाधिकरण ने भारतीय नागरिक घोषित किया था, लेकिन खातून के खिलाफ राज्य के दूसरे संदर्भ पर विचार करने के बाद उनके खिलाफ कार्यवाही जारी रखने का फैसला किया.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, असम विदेशी न्यायाधिकरण ने 2016 में दायर एक मामले में मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य पर विचार करने के बाद 15 फरवरी, 2018 को फैसला सुनाया था कि रजिया खातून नामक व्यक्ति बांग्लादेश से आई कोई विदेशी नहीं है, जो 25 मार्च, 1971 को या उसके बाद भारत में प्रवेश किया हो.

इससे पहले 2012 में एक और मामला दर्ज किया गया था, जिसमें उन्हीं पर बांग्लादेश के विदेशी होने का आरोप लगाया गया था. इस पर 24 दिसंबर, 2019 को सुनवाई हुई और न्यायाधिकरण ने फैसला सुनाया कि उसके 15 फरवरी के आदेश के बावजूद उसके पास दस्तावेजों और सामग्रियों और यहां तक ​​कि पहले की कार्यवाही में अपने निष्कर्षों की जांच करने का अधिकार है.

खातून ने इसे गौहाटी हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसने खातून को विदेशी नहीं घोषित करने के पहले के फैसले के बावजूद न्यायाधिकरण के इस सवाल पर नए सिरे से विचार करने के अधिकार को बरकरार रखा.

अब सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ’24 दिसंबर, 2019 को दिए गए दूसरे आदेश में न्यायाधिकरण ने यह मान लिया कि उसे दस्तावेजों और यहां तक ​​कि पिछली कार्यवाही में निष्कर्षों की जांच करने की शक्ति से वंचित नहीं किया गया है. आदेश से संकेत मिलता है कि न्यायाधिकरण अपने ही निर्णय और आदेश के खिलाफ अपील में बैठना चाहता है. न्यायाधिकरण द्वारा ऐसी शक्ति का प्रयोग कभी नहीं किया जा सकता है.’

बता दें कि 1985 के असम समझौते के अनुसार भारतीय नागरिकता के लिए कट-ऑफ तिथि 24 मार्च, 1971 (जब बांग्लादेश को स्वतंत्रता मिली) है. नवंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत हलफनामे के अनुसार, उस वर्ष 31 अक्टूबर तक 100 फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में 97,000 से अधिक मामले लंबित थे. वहीं, ट्रिब्यूनल के आदेशों के खिलाफ 8,461 अपीलें भी गुवाहाटी उच्च न्यायालय में लंबित थीं.

विदेशी न्यायाधिकरण असम में अर्ध-न्यायिक निकाय हैं, जो यह तय करते हैं कि जिस व्यक्ति का नाम राज्य के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से गायब है या जिसके अवैध अप्रवासी होने का संदेह है, वह भारतीय है या नहीं.

मालूम हो कि असम के नागरिकों की तैयार अंतिम सूची यानी अपडेटेड एनआरसी 31 अगस्त, 2019 को जारी की गई थी, जिसमें 31,121,004 लोगों को शामिल किया गया था, जबकि 1,906,657 लोगों को इसके योग्य नहीं माना गया था.