नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने 17 महीने की कैद के बाद सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत कश्मीरी पत्रकार माजिद हैदरी की हिरासत को रद्द करते हुए फैसला सुनाया कि सरकारी नीतियों की आलोचना किसी व्यक्ति को निवारक हिरासत में रखने का आधार नहीं हो सकती है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पत्रकार और टीवी डिबेटर माजिद हैदरी (43) को 15 सितंबर, 2023 को ‘मानहानि और धमकी’ से संबंधित एक मामले में गिरफ्तार किया गया था. जब उन्हें जमानत मिली, तो पुलिस ने उन्हें रिहा नहीं किया, बल्कि 16 सितंबर, 2023 को उन पर पीएसए के तहत मामला दर्ज किया, जिसमें कहा गया कि वह ‘राष्ट्रीय सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं’.
ज्ञात हो कि पीएसए के तहत किसी व्यक्ति को जिला मजिस्ट्रेट (या डिप्टी कमिश्नर) के आदेश पर बिना किसी मुकदमे के अधिकतम दो साल तक जेल में रखा जा सकता है.
बुधवार को जस्टिस विनोद चटर्जी कौल ने फैसला सुनाते हुए खंडपीठ के फैसले को दोहराया और हैदरी के हिरासत के आदेश को रद्द कर दिया.
फैसले में कहा गया है, ‘सोशल मीडिया पोस्ट/रिपोर्टिंग के बारे में इस अदालत की एक खंडपीठ ने 9 नवंबर, 2024 के फैसले में माना है कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की सरकार की नीतियों के प्रति नकारात्मक आलोचना को किसी व्यक्ति को निवारक हिरासत में रखने का आधार नहीं माना जा सकता है, वह भी बिना किसी विशिष्ट उदाहरण के कि कैसे इस तरह की सोशल मीडिया टिप्पणियों ने सरकार के लिए कोई समस्या पैदा की, सार्वजनिक व्यवस्था की समस्या तो दूर की बात है.’
जस्टिस कौल ने कहा, ‘हिरासत के आधारों पर गौर करने से पता चलता है कि आधार अस्पष्ट और संदिग्ध हैं और उन गतिविधियों की किसी भी तारीख, महीने या वर्ष का उल्लेख नहीं करते हैं, जिनके लिए हिरासत को जिम्मेदार ठहराया गया है. हिरासत के ऐसे अस्पष्ट और संदिग्ध आधारों के आधार पर निवारक हिरासत को उचित नहीं ठहराया जा सकता है.’
फैसले में एक अन्य मामले के संबंध में खंडपीठ के फैसले का हवाला दिया गया कि पीएसए के प्रावधानों के तहत किसी व्यक्ति को हिरासत में लेना कार्यकारी विवेक का प्रयोग है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्ति को मिले अधिकार का गंभीर उल्लंघन है.
जज ने सरकारी हलफनामे का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि हैदरी ‘इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से अलगाववादी और अलगाववादी विचारधाराओं की वकालत करते हैं और भारत विरोधी भावनाओं को बढ़ावा देते हैं.’ जवाब में अदालत ने सैयद अली गिलानी और आसिया अंद्राबी जैसे अलगाववादी नेताओं के खिलाफ हैदरी के नए लेखों का जिक्र किया था.
अदालत के आदेश में कहा गया है, ‘निश्चित रूप से वर्तमान मामले में हिरासत के आधारों को देखने से पूर्वाग्रहपूर्ण गतिविधियों और हिरासत के उद्देश्य के बीच संबंध के संदर्भ में कोई ठोस स्पष्टीकरण सामने नहीं आ रहा है और परिणामस्वरूप आरोपी के हिरासत आदेश को रद्द किया जाना चाहिए.’
रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने यह भी कहा कि हैदरी की मां ने उग्रवादियों से होने वाले हमले को रोकने के लिए अलग नाम से ‘वादी की आवाज़’ रेडियो कार्यक्रम की मेजबानी की थी. यह कार्यक्रम रेडियो कश्मीर पर तब प्रसारित होता था जब 1990 के दशक की शुरुआत में सशस्त्र विद्रोह के बाद सार्वजनिक प्रसारक के गैर-स्थानीय कर्मचारी घाटी से भाग गए थे.
अदालत ने कहा, ‘जब उन्होंने स्वेच्छा से प्रति-प्रचार कार्यक्रम की मेजबानी की, तो उन्होंने बहुत साहस और देशभक्ति का उत्साह दिखाया.’ अदालत ने कहा कि अगर हैदरी जेल में नहीं होते, तो वे राष्ट्र की सेवा कर रहे होते.
अदालत ने कहा, ‘हिरासत में बंद व्यक्ति की सराहना करने के बजाय उसे निवारक हिरासत में रखा गया है. हिरासत में लिए गए व्यक्ति की मां को पुरस्कृत करने के बजाय उसे अपने बेटे को उसकी किसी भी गलती के बिना निवारक हिरासत में देखने के लिए मजबूर किया गया है.’
अदालत ने हैदरी की रिहाई का आदेश देते हुए यह भी कहा कि हैदरी के सोशल मीडिया पोस्ट से पता चलता है कि उन्होंने मोदी, शाह, सिन्हा और पुलिस अधिकारियों की प्रशंसा की थी और हुर्रियत के ‘तथाकथित’ अध्यक्ष सैयद अली गिलानी को बेनकाब किया था.