असम: हिमंता सरकार ने विधानसभा में जुमे को नमाज़ ब्रेक की 90 साल पुरानी परंपरा ख़त्म की

असम विधानसभा ने शुक्रवार (जुमे) को मुस्लिम विधायकों को नमाज़ पढ़ने के लिए दिए जाने वाले दो घंटे के ब्रेक को ख़त्म कर दिया है. 90 वर्षों से चली आ रही इस प्रथा को बंद करने की आलोचना करते हुए विपक्षी दलों ने कहा कि यह फैसला मुस्लिम विधायकों की ज़रूरतों की अनदेखी करता है.

हिमंता बिस्वा शर्मा ने इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे औपनिवेशिक युग की प्रथाओं को खत्म करने की दिशा में एक कदम बताया. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: असम विधानसभा ने पिछले साल लिए गए फैसले को लागू करते हुए शुक्रवार (जुमे) को मुस्लिम विधायकों को नमाज पढ़ने के लिए दिए जाने वाले दो घंटे के ब्रेक को खत्म कर दिया है. 

ज्ञात हो कि यह परंपरा लगभग 90 वर्षों से चली आ रही थी और मौजूदा बजट सत्र के दौरान औपचारिक रूप से इसे बंद कर दिया गया है.

समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, इस कदम की विपक्षी दलों ने आलोचना की है, जिनका तर्क है कि यह फैसला मुस्लिम विधायकों की जरूरतों की अनदेखी करता है.

नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस के विधायक देबब्रत सैकिया ने बीते सप्ताह मुस्लिम विधायकों को विधानसभा की कार्यवाही से वंचित रहे बिना इबादत की अनुमति देने के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था का सुझाव दिया.

उन्होंने कहा, ‘आज मेरी पार्टी और एआईयूडीएफ के विधायक महत्वपूर्ण चर्चा में भाग नहीं ले पाए क्योंकि वे नमाज पढ़ने गए थे. चूंकि यह केवल शुक्रवार के लिए ही अनिवार्य है, मुझे लगता है कि इसके लिए प्रावधान किया जा सकता है.’ 

वहीं एआईयूडीएफ के विधायक रफीकुल इस्लाम ने सत्तारूढ़ भाजपा पर विधानसभा में अपने बहुमत का दुरुपयोग करके निर्णय थोपने का आरोप लगाया.

उनका कहना है, ‘विधानसभा में लगभग 30 मुस्लिम विधायक हैं, हमने इस कदम के खिलाफ अपने विचार व्यक्त किए थे, लेकिन उनके (भाजपा) पास बहुमत है और वे उसके आधार पर इसे थोप रहे हैं.’

इस ब्रेक को खत्म करने का फैसला विधानसभा की नियम समिति ने पिछले साल अगस्त में लिया था. इस कदम का बचाव करते हुए स्पीकर बिस्वजीत दैमारी ने कहा कि संविधान की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति को ध्यान में रखते हुए विधानसभा को किसी अन्य दिन की तरह शुक्रवार को भी काम करना चाहिए. 

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे औपनिवेशिक युग की प्रथाओं को खत्म करने की दिशा में एक कदम बताया. उन्होंने कहा कि ब्रेक की शुरुआत सबसे पहले 1937 में मुस्लिम लीग के सैयद सादुल्ला ने की थी और कहा कि इसे हटाना प्रोडक्टिविटी को प्राथमिकता देता है.